जमुई. लोक आस्था का महापर्व छठ को मन्नतों का त्योहार भी कहा जाता है. मान्यता है कि छठ पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. शनिवार को नहाय खाय के साथ ही चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत की गयी. नहाय-खाय के दिन छठव्रतियों ने अहले सुबह अपने नजदीकी नदी या तालाब में स्नान ध्यान करने के उपरांत पूरे नेम नेष्ठा से अरवा चावल का भात, चना दाल तथा कद्दू का सब्जी बनाकर इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. छठव्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद पूरे परिवार द्वारा कद्दू भात ग्रहण किया. पूजा चार चरणों में संपन्न होती है इस व्रत को लेकर कई अनुश्रुतियां प्रचलित हैं. साल में दो बार आने वाले इस त्योहार को सिर्फ बिहार व यूपी ही नहीं, बल्कि देश के अन्य भागों व विदेशों में भी मनाया जाता है.
व्रत को लेकर प्रचलित हैं कई कथाएं
व्रत के पीछे कई मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि देवासुर लड़ाई में जब देवता हार गये तो देव माता अदिति ने पुत्र प्राप्ति के लिए देव के जंगलों में मैया छठी की पूजा अर्चना की थी. इस पूजा से खुश होकर छठी मैया ने आदित्य को पुत्र दिया और उसके बाद छठी मैया की देन इस पुत्र ने सभी देवतागण को जीत दिलायी, तभी से मान्यता चली आ रही कि छठ मैया की पूजा-अर्चना करने से सभी दुखों का निवारण होता है. इसके अलावा एक और कथा प्रचलित है बताया जाता है कि माता सीता ने भी भगवान सूर्य की आराधना की थी. इस कथा के अनुसार कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता जब 14 वर्ष का वनवास काट कर लौटे थे तब माता सीता ने इस व्रत को किया था.
आज शाम से 36 घंटे का निर्जला उपवास
नहाय खाय छठ पूजा का पहला दिन होता है. इस दिन व्रती तालाब, नहर या नदी में स्नान करते हैं. नहाय खाय के दिन कद्दू भात का प्रसाद आदि खाने की परंपरा है. छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन व्रती खीर बना कर खाती हैं. इसके बाद से 36 घंटे तक व्रती का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. इस दौरान व्रती शुद्धता और पवित्रता का पूरा ख्याल रखती हैं. खरना के अगले दिन संध्या अर्घ्य यानी शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. साथ ही छठी मैया की पूजा होती है. सभी व्रती नदी किनारे फल-फूल और पकवान बना कर सूर्य के साथ छठी मैया की पूजा करते हैं. इस दौरान लोग छठी मैया की गीत भी गाते हैं. छठ पूजा का चौथे दिन भोर या ऊषा के अर्घ का होता है. इस दिन सूर्योदय से पहले नदी के किनारे जाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ देने का उपरांत व्रत का पारण किया जाता हैं.
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