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hajipur news. संकट में लालगंज का काष्ठ कला उद्योग, जो पहले थे व्यापारी, अब कर रहे मजदूरी

लालगंज के कारीगरों द्वारा तैयार टेबल, कुर्सी, चकला-बेलन, मचिया, चौकी, खड़ाऊ, दलघोटनी आदि नेपाल तक में लोकप्रिय थीं

लालगंज. एक समय था जब लालगंज के काष्ठ कला उद्योग की चमक दूर-दूर तक फैली हुई थी. यहां के कारीगरों द्वारा तैयार किये गये टेबल, कुर्सी, चकला-बेलन, मचिया, चौकी, खड़ाऊ, दलघोटनी, बच्चों की लकड़ी की गाड़ियां और पीढ़ियां न केवल देश में, बल्कि नेपाल तक में लोकप्रिय थीं. विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में भी इन उत्पादों की अच्छी मांग थी. लेकिन बदलते वक्त के साथ यह उद्योग अब लगभग समाप्ति की कगार पर पहुंच चुका है. लालगंज के कई गांवों में पहले हजारों लोग लकड़ी उद्योग से जुड़े थे, लेकिन अब उनकी संख्या काफी कम हो गयी है. कारीगरों का कहना है कि लकड़ी की कमी और आरा मिलों पर लगी पाबंदी से उनका काम प्रभावित हुआ है. इसके अलावा, आधुनिकता और सस्ते विकल्पों के चलते काष्ठ कला उद्योग की मांग भी घटी है. इस उद्योग से जुड़े नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड संख्या 04 के निवासी राजकुमार शर्मा, अरविंद कुशवाहा, अजय शर्मा सहित कई कारीगरों का कहना है कि लालगंज में लगभग 70 लोग काष्ठ कला से जुड़े हैं और इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है. पहले लकड़ी से बने सामानों की काफी मांग थी, इसलिए वे कारीगर रखकर बड़े पैमाने पर उत्पादन करते थे. लेकिन अब केवल मांग के अनुसार सीमित उत्पादन किया जाता है. कारीगरों को अब व्यापारी द्वारा उपलब्ध करायी गयी लकड़ी पर ही मजदूरी करनी पड़ती है, जिससे उनका जीविकोपार्जन मुश्किल हो गया है.

क्या कहते हैं लोग

पहले लकड़ी की मचिया का खूब प्रचलन था. लोग लालगंज बाजार से मचिया खरीदकर अपने लिए लाते थे और रिश्तेदारों को भी भेजते थे. लेकिन आज यह मचिया बाजार से लगभग विलुप्त हो गयी है. इसका मुख्य कारण चीनी और प्लास्टिक की मचिया का सस्ते दामों पर उपलब्ध होना है. –

एकलव्य कुमार

लालगंज बाजार को काष्ठ कला उद्योग का गढ़ माना जाता था और यह यहां के लोगों का मुख्य पेशा था. लेकिन लकड़ी की महंगाई, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध और आरा मिलों पर लगी पाबंदी के कारण यह उद्योग अब संकट में है. जो लोग पहले व्यवसायी थे, वे आज मजदूरी करने को मजबूर हैं. –

डॉ बिपीन कुमार

आज भी कुछ लोग लकड़ी के सामानों के शौकीन हैं और आर्डर देकर विशेष रूप से बनवाते हैं, चाहे कीमत कितनी भी हो. लकड़ी के बने सामान महंगे होते हैं, लेकिन लोग सस्ते विकल्पों की तलाश में रहते हैं, जिससे यह उद्योग प्रभावित हो रहा है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. –

अजय शर्मा

आम लोगों को काष्ठ कला यानी लकड़ी से बने सामानों का अधिक उपयोग करना चाहिए, ताकि इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का विकास हो और उनका जीविकोपार्जन चलता रहे. लकड़ी के सामानों की सुंदरता और महत्व किसी अन्य वस्तु में नहीं होता. इसे बढ़ावा देने की जरूरत है. –

आलोक कुमार सिंह

क्या कहते हैं पदाधिकारी

लालगंज में काष्ठ कला से जुड़े कई लोगों को सरकार की विश्वकर्मा योजना या अन्य उद्यमी योजनाओं की जानकारी दी जा रही है. ताकि वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें. कुटीर उद्योग की मजबूती के लिए सरकार और प्रशासन पूरा प्रयास कर रही है.

नीलम कुमारी, बीडीओ, लालगंज

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