15.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Hajipur News : लालगंज के शारदा सदन पुस्तकालय में दो बार आये थे राष्ट्रपिता

जीवन में पुस्तक और पुस्तकालयों की अहमियत हमेशा से रही है और लालगंज स्थित शारदा सदन पुस्तकालय इस दिशा में एक मिसाल है. 27 जून, 1914 को स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ प्रसाद साहू द्वारा स्थापित यह पुस्तकालय आज एक विशाल ज्ञानकोष बन चुका है.

लालगंज. जीवन में पुस्तक और पुस्तकालयों की अहमियत हमेशा से रही है और लालगंज स्थित शारदा सदन पुस्तकालय इस दिशा में एक मिसाल है. 27 जून, 1914 को स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ प्रसाद साहू द्वारा स्थापित यह पुस्तकालय आज एक विशाल ज्ञानकोष बन चुका है. इसकी 85 हजार से अधिक पुस्तकों का समृद्ध संग्रह और 1200 से अधिक पंजीकृत पाठकों की सदस्यता इसे खास बनाती है. इसके समृद्ध पुस्तक भंडार ने देश-विदेश के अनेक विद्वानों को आकर्षित किया है, जिन्होंने यहां आकर अध्ययन और शोध कार्य किया. सुबह-शाम यहां स्थानीय पाठकों की चहल-पहल रहती है. कई नेता भी यहां आते रहे हैं, जिससे यह पुस्तकालय हमेशा चर्चा में बना रहा है.

1934 के भूकंप में हो गया था क्षतिग्रस्त

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इस पुस्तकालय की विशेष भूमिका रही है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वयं दो बार यहां आये थे, जो उनके इस पुस्तकालय से गहरे जुड़ाव को दर्शाता है. गांधीजी पहली बार 1917 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान यहां आये थे. उस समय यह पुस्तकालय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए गुप्त मंत्रणा केंद्र हुआ करता था. उसी वर्ष, उनके सम्मान में यहां गांधी वाचनालय की नींव रखी गयी, जो आज भी रोज खुलता है. इसमें बैठकर पाठक 40 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं पढ़ते हैं. गांधीजी दूसरी बार 1934 में बिहार में आये विनाशकारी भूकंप के बाद यहां आये. उस समय भूकंप में पुस्तकालय भवन क्षतिग्रस्त हो गया था. अपने दौरे के दौरान गांधीजी ने पुस्तकालय की विजिटर बुक में लिखा था- ””मकान तो गिरा, लेकिन विद्या का नाश नहीं हो सकता. इसलिए पुस्तकालय से विद्या धन प्राप्त करें”” इसके बाद उन्होंने पुस्तकालय के जीर्णोद्धार के लिए डॉ राजेंद्र प्रसाद से आग्रह कर रिलीफ फंड से 400 रुपये स्वीकृत करवाये थे.

स्वतंत्रता संग्राम से रहा है गहरा संबंध

शारदा सदन पुस्तकालय ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. वर्ष 1925-26 के दौरान यह स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख केंद्रों में से एक था. अंग्रेजी हुकूमत को इसकी गतिविधियां खटकती थीं, इसलिए इसे कई बार बंद कराने के प्रयास किये गये, लेकिन वे नाकाम रहे. सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी इस पुस्तकालय की महत्वपूर्ण भूमिका रही. उस दौरान पुस्तकालय के संरक्षक जगन्नाथ प्रसाद साहू और इससे जुड़े कई लोग जेल गये थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से यह पुस्तकालय निरंतर ज्ञान और सेवा का केंद्र बना हुआ है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar News Desk
Prabhat Khabar News Desk
यह प्रभात खबर का न्यूज डेस्क है। इसमें बिहार-झारखंड-ओडिशा-दिल्‍ली समेत प्रभात खबर के विशाल ग्राउंड नेटवर्क के रिपोर्ट्स के जरिए भेजी खबरों का प्रकाशन होता है।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel