हाजीपुर. शहर के ऐतिहासिक गांधी आश्रम स्थित पुस्तकालय भवन में आइपास डेवलपमेंट फाउंडेशन, औलिया अनुसंधान आध्यात्मिक केंद्र और समता ग्राम सेवा संस्थान पटना के संयुक्त तत्वाधान में शुक्रवार को एक दिवसीय मीडिया उन्मुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत समता सेवा संस्थान के सचिव रघुपति सिंह के मीडिया प्रतिनिधियों के स्वागत से हुई. उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम सांझा प्रयास नेटवर्क का हिस्सा है, जो उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न जिलों में कार्यरत है, जो एमटीपी एक्ट 1971 के प्रति समुदाय, मीडिया एवं सरकारी अधिकारियों को जागरूक करने का कार्य कर रहा है, ताकि असुरक्षित गर्भपात की घटनाओं को रोका जा सके और राज्य व देश की मातृ मृत्यु दर को कम किया जा सके. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि एमटीपी एक्ट का कार्यान्वयन पूर्व-गर्भ और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 के अनुरूप होना चाहिए. दोनों कानूनों को एकसाथ लागू करना आवश्यक है, ताकि सुरक्षित गर्भ समापन की प्रक्रिया प्रभावशाली ढंग से संपादित हो सके.
विशेषज्ञों ने दी कानूनी जानकारी
कार्यक्रम में श्री ऋषव सिंह ने एमटीपी एक्ट के तहत क्या करें और क्या न करें के साथ एक्ट की प्रमुख विशेषताओं की विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह कानून मुख्य रूप से महिलाओं की स्वास्थ्य, सुरक्षा और असुरक्षित गर्भपात को कम करने के लिए बनाया गया था. कानून के तहत बलात्कार, भ्रूण में विकृति, और महिला के जीवन या स्वास्थ्य को खतरे की स्थिति में गर्भ समापन की अनुमति है. औलिया अनुसंधान आध्यात्मिक केंद्र के वरिष्ठ शोधकर्ता परिमल चंद्रा ने वर्ष 2021 में किए गये पांच प्रमुख संशोधनों पर प्रकाश डाला. बताया कि बलात्कार पीड़िताओं, नाबालिगों और दिव्यांग महिलाओं के लिए गर्भ समापन की समय सीमा गर्भ धारण से 24 सप्ताह तक निर्धारित है. इस कानून में गोपनीयता और निजता की रक्षा, गर्भ समापन के कारणों का विस्तार, अविवाहित महिलाओं को गर्भ समापन का अधिकार दिया गया है. गर्भ समापन केवल पंजीकृत स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों से ही कराना चाहिए.
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