हाजीपुर. पातेपुर समेत विभिन्न प्रखंडों के किसान रंग-बिरंगी फूलों की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना रहे हैं. जलवायु की अनुकूलता के कारण यहां के किसान बड़े पैमाने पर रजनीगंधा, पिला गेंदा, सफेद गेंदा, लाल गेंदा एवं लीली जैसे फूलों की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे है. इसके लिए आत्मा की ओर से किसानों को विशेष प्रशिक्षण के लिए भी समय समय पर अन्य प्रदेशों में भेजा जा रहा है. आंकड़े के अनुसार जिले के पातेपुर प्रखंड में लगभग 35 एकड़ में फूल की खेती की जा रही है.
जिले में पारंपरिक खेती के साथ-साथ किसानों का झुकाव फूलों की खेती के तरफ काफी तेजी से हो रहा है. फूलों की खेती के लिए प्रयुक्त मिट्टी एवं अनुकूल जलवायु के कारण किसान बड़े पैमाने पर खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना रहे है. हालांकि, फूलों के लिए स्थानीय बाजार नहीं होने के कारण किसानों को अपना उत्पाद बेचने के लिए अधिक खर्च कर अन्य शहरों में जाना पड़ता है. इसके साथ ही औद्योगिक क्षेत्र में फूलों से बनने वाले अन्य उत्पाद की व्यवस्था नहीं रहने के कारण किसानों को इस क्षेत्र में बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है. जिससे किसान सजावट एवं पूजा पाठ के लिए उपयोग होने तक ही सीमित रह गए है. पातेपुर के किसान फूल उत्पादन कर पटना, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर समेत अन्य शहरों में भी सप्लाई करते है.पश्चिम बंगाल से किसान मंगाते है फूलों के पौधे
पातेपुर के किसान नीरज प्रकाश, प्रमोद भगत, मनोज कुमार मालाकार, महुआ के संतोष मालाकार आदि ने बताया कि फूलों की खेती के लिए पश्चिम बंगाल से विभिन्न वेरायटी के फूलों के पौधे मंगाए जाते है. जिससे कई बार पौधे नुकसान होने से किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ता है. फूलों की खेती में सबसे बड़ी समस्या कीट एवं फंगस के प्रकोप से होता है. इसके लिए किसानों को समय-समय कीटाणुनाशक दवा का छिड़काव करना पड़ता है. हालांकि यहां की मिट्टी उपयुक्त होने तथा बाजार से अच्छी कीमत मिलने से अच्छी आमदनी हो जाती है. खासकर लगन के समय फूलों की अच्छी कीमत किसानों को मिलती है.आत्मा दे रही किसानों को सहयोग
इस संबंध में आत्मा के उप परियोजना निदेशक रमण कुमार ने बताया कि फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए जिले के सभी प्रखंडों से दो-दो किसानों का चयन कर विशेष प्रशिक्षण के लिए सरकारी खर्च पर सिल्लीगुड़ी भेजा जा रहा है. बताया कि फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए आत्मा की ओर से किसानों को काफी सहयोग किया जा रहा है. इसके लिए फूल उत्पाद किसानों का कल्स्टर बनाकर समय-समय पर विशेष प्रशिक्षण के साथ उद्यान विभाग से अनुदान दी जाती है. जाति कैटेगरी के अनुसार किसानों को 50 से 80 प्रतिशत तक अनुदान देने का प्रावधान है. जिले के वैशाली तथा पटेढ़ी बेलसर प्रखंड में भी लगभग 50 एकड़ में फूलों की खेती के लिए दो कलस्टर बना कर खेती करायी जा रही है.
एक साल में तीन बार फूल की फसल की बुआईसाल में तीन बार फूल की फसल की बुआई
किसान नीरज प्रकाश ने बताया कि एक साल में तीन बार फूल की फसल की बुआई होती है. गरमा सीजन में पहला फसल किसान मार्च-अप्रैल में लगाते है. इसमें मई, जून तथा जुलाई तक फूल लगते है. इसके बाद दूसरी फसल की बुआई अगस्त-सितंबर में होती है. जिससे अक्टूबर तक किसान उत्पादन का लाभ लेते है. वहीं शीतकालीन मौसम में तीसरी फसल की बुआई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है. बताया गया कि मौसम अनुकूल रहने पर किसान प्रति एकड़ 50 से 60 क्विंटल फूल का उत्पादन करते है. जिससे किसानों को एक सीजन में 50 से 60 हजार रुपये प्रति एकड़ आमदनी होती है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

