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युवाओं ने लिया ऐतिहासिक सप्तऋषि आश्रम का जीर्णोद्धार करने का जिम्मा

बरौली/सिधवलिया. पुराणों में वर्णित मोक्षदायिनी नारायणी की कलकल धारा के साथ सदियों से कदम से कदम मिलाकर खामोशी से किसी तारणहार का इंतजार कर रहा ऐतिहासिक मठ सप्तऋषि आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है.

बरौली/सिधवलिया. पुराणों में वर्णित मोक्षदायिनी नारायणी की कलकल धारा के साथ सदियों से कदम से कदम मिलाकर खामोशी से किसी तारणहार का इंतजार कर रहा ऐतिहासिक मठ सप्तऋषि आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है. इसका इंतजार अब खत्म होने को है. खोरमपुर के युवाओं ने इस ऐतिहासिक सप्तऋषि आश्रम, जो खाकी बाबा के मठिया के नाम से भी जाना जाता है, उसके जीर्णोद्धार का जिम्मा उठा लिया है. वर्षों से बदहाली का दंश झेल रहे इस मठिया की स्थिति ऐसी है कि यहां ठाकुरजी तथा भगवान महावीर की मूर्ति जमीन पर स्थापित है, जहां लोग पूजा-पाठ करते हैं. इस सप्तऋषि आश्रम से खोरमपुर, दीपउ, टंडसपुर, टेंगराही, पड़रिया सहित अन्य कई गांव के लोगों की आस्था सदियों से जुड़ी है. आसपास के गांव में कोई शुभ कार्य होता है, तो उसकी शुरुआत से पहले ग्रामीण मठ में जाकर पूजन करके ही काम की शुरुआत करते हैं. करीब दो सौ बरस पुराने इस मठ का भवन पूरी तरह खंडहर हो चुका है. ग्रामीणों की आस्था तथा मठ के इतिहास को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से खोरमपुर के युवाओं ने मठ पर एक बैठक की तथा फैसला लिया कि मठ का कायाकल्प कराया जाये. गांव के युवक नीलेश उर्फ रिंकू पांडेय ने जीर्णोद्धार का जिम्मा लिया और तत्काल रंगरोगन तथा पुराने ढांचे को बदलने का काम शुरू हो गया तथा चबूतरा भी बनाने की तैयारी हो गयी. कल तक जिस मठ में शांति पसरी रहती थी. वहां से अब पूरे दिन लाउडस्पीकर से भजन की गूंज शुरू हो गयी. गांव के अन्य युवा सुनील पांडेय, सुजीत पांडेय, ब्रजेश पांडेय, राजद जिला उपाध्यक्ष पिंटू पांडेय, चुनमुन मिश्रा भी आगे आये तथा वे भी इस कार्य में भागीदार हो गये. मात्र दो दिन के काम में ही सप्तऋषि आश्रम अब अपने पुराने रंगत में लौटने लगा है. ग्रामीणों ने निर्णय लिया कि यहां बहुत जल्द एक महायज्ञ का आयोजन भी कराया जाये, जिसके लिए सहमति बन गयी. ग्रामीणों ने बताया कि सप्तऋषि आश्रम के पुजारी सिस्टम बाबा 17 वर्ष से केवल फलाहार करते हैं. वे जंगली जानवर तथा कीड़े-मकोड़ों की भाषा वे समझते हैं तथा वे उनको कभी हानि नहीं पहुंचाते. बाबा के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था है. यहां ऐसे भी पुजारी थे, जो खड़ाउं पहनकर नदी पार कर जाते थे. फिलहाल मठ के जीर्णोद्धार से क्षेत्र में खुशी है और लोग युवाओं की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

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