उचकागांव. स्थानीय प्रखंड क्षेत्र से होकर गुजरने वाली बाण गंगा नदी (दाहा नदी) अब अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर है. बरसों से जल संसाधन विभाग की ओर से इस नदी की सफाई के लिए कोई पहल नहीं की गयी है.
ऐतिहासिक धरोहर में शामिल दाहा नदी को संजीवनी देने के लिए जल संसाधन विभाग ने 165 करोड़ की डीपीआर तैयार कर गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग, जल शक्ति मंत्रालय को भेजा था. सामग्रियों के रेट बढ़ जाने के कारण मुख्य अभियंता द्वारा सीवान प्रमंडल को डीपीआर को नये रेट से रिवाइज कर बनाने का आदेश दिया, जो आजतक फाइलों में दम तोड़ रही. भगीरथ प्रयास के बाद जल संसाधन विभाग की टीम ने जुलाई, 2023 में ही जल संसाधन विभाग की टीम ने एक्सपर्ट से महीनों होमवर्क करने के बाद 179 किमी लंबी नदी को नया जीवन देने के लिए तैयार डीपीआर की टेक्निकल सेल से मंजूरी भी ले ली थी. इस प्रोजेक्ट पर एनडब्ल्यूडीए (नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी) से भी सहमति बन चुकी है. अब रेट के रिवाइज होने के बाद प्रोजेक्ट को गंगा जल शक्ति बोर्ड के पास मंजूरी के लिए भेजा जायेगा. मंजूरी मिलने के साथ ही इस पर काम भी शुरू हो सकता है.यूपी से निकलती है दाहा नदी
दाहा नदी यूपी के अहिरौलीदान से निकलकर जिले के सल्लेहपुर से होकर उचकागांव ब्लॉक के बदरजीमी के पास सीवान जिले में प्रवेश करती है. इसके बाद सीवान शहर से गुजरते हुए 179 किमी की दूरी तय कर सारण के जई छपरा होकर ताजपुर के फुलवरिया में सरयू नदी में समाहित होती है.दोनों नदियों को मिलन के लिए भगीरथ प्रयास
नारायणी नदी से दाहा को कनेक्ट कर सीवान होकर सारण जिले के मांझी ब्लॉक में जाकर सरयू नदी में समाहित होगी. 179 किमी लंबी इस नदी को जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता रहे अशोक कुमार रंजन, अधीक्षण अभियंता गोपालगंज शशिकांत सिन्हा, बाढ़ संघर्षात्मक बल नवल किशोर सिंह, कार्यपालक अभियंता कुमार बृजेश, अमित कुमार, सहायक अभियंता वीरेंद्र प्रसाद, एकता कुमारी, सिमरन आनंद, विंध्याचल प्रसाद, चंद्रमोहन झा, विजय कृष्णा, कनीय अभियंता विभाष कुमार गुप्ता, मो मजीद सहित ग्रामीणों की मौजूदगी में विभाग की ओर से डीपीआर तैयार की. उसके बाद मंजूरी के अभाव में दम तोड़ रहा.बरसात का मौसम खत्म होते ही सूखने लगती है नदी
बरसात का मौसम खत्म होते ही बाण गंगा नदी सूखने लगती है, जिसके कारण इसके छाड़न पर स्थानीय लोगों द्वारा कब्जा कर खेती करना शुरू कर दिया गया है. कई जगहों पर तो नदी के बीच में ही मिट्टी भरकर इसकी धारा को भी मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके कारण अब यह अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर पहुंच गयी है.नदी के धार्मिक महत्व को भी समझें
इतिहास पर नजर डालें, तो दाहा नदी की उत्पत्ति भगवान राम का बारात जनकपुर से अयोध्या लौट रही थी, तो ऐसा माना जाता है कि माता सीता को प्यास लगी. तब लक्ष्मण ने बाण मार कर धरती की छाती को भेदा. उसमें से निकले पानी से सभी लोगों ने अपनी प्यास को बुझाया था. दाहा नदी का पानी पवित्र माना जाता था. इसके पानी से पशु-पक्षी, जीव-जंतु भी प्यास बुझाते थे, तो किसानों के खेतों की प्यास बुझती थी. उपेक्षा के कारण नदी सूख गयी. अपना अस्तित्व भी खो गया.कार्तिक पूर्णिमा पर इटवा और बदरजीमी में लगता था मेला
उचकागांव प्रखंड के घोड़ा घाट, तीन मुहानी, इटवा और बदरजीमी से सहित कई स्थानों पर स्नान मेला लगता था. जैसे-जैसे नदी सूखने लगी, वैसे-वैसे स्नान मेला भी विलुप्त हो गया.शीघ्र मंजूरी के लिए जायेगी डीपीआर : विभाग
मुख्य अभियंता प्रमोद कुमार से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि सीवान प्रमंडल में रेट रिवाइज पर काम हो रहा. जल्द ही मंजूरी के लिए सरकार के पास डीपीआर भेजी जायेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है