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तमाम बुराइयों से बचने का नाम है रोजा

गोपालगंज : रोजे की हालत में एक आदमी कुछ क्षण के लिए फरिश्ता बन जाता है, क्योंकि फरिश्ते न तो खाते हैं न पीते हैं. ठीक इसी तरह एक मुसलमान रोजेदार, रोजे की हालत में बिना खाये-पीए अल्लाह की इबादत में लगा रहता है. दरगाह शरीफ के मौलाना ने कहा कि रोजे का मकसद दिल […]

गोपालगंज : रोजे की हालत में एक आदमी कुछ क्षण के लिए फरिश्ता बन जाता है, क्योंकि फरिश्ते न तो खाते हैं न पीते हैं. ठीक इसी तरह एक मुसलमान रोजेदार, रोजे की हालत में बिना खाये-पीए अल्लाह की इबादत में लगा रहता है. दरगाह शरीफ के मौलाना ने कहा कि रोजे का मकसद दिल में खुदा का खौफ पैदा करना है.
आदमी को दुनिया में जिन चीजों से खुदा ने बचने को कहा है उस पर हर सूरत में अमल किया जाये. रात का अंधेरा हो या दिन का उजाला, हर स्थिति में खुदा से डरता रहे, क्योंकि खुदा का वजूद हर जगह है और खुदा ने जिन कामों को करने का हुक्म दिया उसे जरूर किया जाये.
उन्होंने हदीस का हवाला देते हुए कहा कि एक हदीस में है कि इस मुबारक माह में नफिल का सवाब फर्ज के बराबर और एक फर्ज 70 फर्जों का मुकाम हासिल कर लेता है. दरअसल रोजा ऐसी इबादत है कि रोजेदार चाहे सोया रहे या जागता रहे दोनों ही सूरत में इबादत ही है.
दूसरी बात यह है कि रसूले खुदा ने बयान किया है कि जो मुसलमान बिना किसी कारण एक रोजा भी छोड़ देगा, अगर इसके बदले पूरी जिंदगी रोजा रखता रहे तो भी रमजानुल मुबारक के एक रोजे के बराबर सवाब नहीं पा सकेगा. उस बदनसीब के लिए जमी व आसमां तमाम मखलूक भी बंद दुआ करती रहती है.
एक हदीस में बयान किया गया है कि खुदा तीन तरह की दुआएं कभी रद्द नहीं करते. पहला रोजेदार की दुआ इफ्तार के समय, दूसरा आदिल बादशाह यानी दूध का दूध, पानी का पानी फैसला करने वाला, तीसरा वह मजलूम जिसे जमाने ने सताया हो और वह बेसहारा पड़ा रह कर रब के दरबार में अपनी परेशानी को जाहिर करता है, तो इसकी दुआ जरूर पूरी की जाती है.
हर मुसलमान भाई को फर्ज है रोजा रखना

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