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पितृपक्ष : दिख रही अनेकता में एकता

गया : इन दिनों गयाधाम में अनेकता में एकता का नमूना देखने को मिल रहा है. पितृपक्ष एक ऐसा अवसर है, जब देश-विदेश के लोग सनातन संस्कृति का अनुसरण करते हैं. पितरों से जिन्हें प्रेम व श्रद्धा है, वे निश्चित रूप से चले आते हैं. यही कारण है कि बुधवार तक गयाधाम में करीब सवा […]

गया : इन दिनों गयाधाम में अनेकता में एकता का नमूना देखने को मिल रहा है. पितृपक्ष एक ऐसा अवसर है, जब देश-विदेश के लोग सनातन संस्कृति का अनुसरण करते हैं. पितरों से जिन्हें प्रेम व श्रद्धा है, वे निश्चित रूप से चले आते हैं. यही कारण है कि बुधवार तक गयाधाम में करीब सवा लाख तीर्थयात्री पहुंच चुके हैं. इनमें एक दिवसीय, तीन दिवसीय, सात दिवसीय व 17 दिवसीय श्राद्ध करनेवाले शामिल हैं. एक दिवसीय श्रद्धालु हर रोज आते-जाते रहते हैं. तीन दिवसीय श्राद्ध करनेवाले भी बुधवार तक लौट जायेंगे. लेकिन, जाने के साथ आनेवालों का भी सिलसिला जारी है.

बुधवार को आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया के दिन पिता महेश्वर स्थित उत्तर मानस वेदी व सरोवर, दक्षिण मानस (सूर्यकुंड) स्थित तीन वेदियां उदीचि, कनखल व दक्षिण मानस के अलावा जिह्वालोल पिंडवेदी पर पिंडदानियों ने विधानपूर्वक श्राद्ध किया. गया में इन दिनों पश्चिम बंगाल, ओडि़शा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु व महाराष्ट्र, पड़ोसी देश नेपाल व बांगलादेश के अलावा जापान व नीदरलैंड आदि देशों के तीर्थयात्री अपने-अपने देश की वेश-भूषा के साथ पिंडदान करने पहुंचे हैं.

ताज्जुब तो यह है कि उनके स्टेट, देश व भाषा के अनुसार पंडों का भी बंटवारा है. ब्राह्मण भी विभिन्न भाषा के जानकार हैं, जो पिंडदानियों को उनकी ही भाषा में पिंडदान करा रहे हैं. विभिन्न वेदियों व घाटों पर एक-दूसरे की संस्कृति का आदान-प्रदान. यह विरले ही संभव होता है.

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