गया : धरती मां का पेट खाली हो गया है. उन्हें बुखार लगने लगा है. यही वजह है कि जल संकट के साथ हीट वेव चलने लगे हैं और लोग लू के कहर से मरने लगे हैं.
बुखार को उतारने के लिए धरती को पानी की पट्टी लगाने की जरूरत है. खास बात यह है कि यह काम प्रशासन से कभी भी पूरा नहीं हो सकता है. इसके लिए गांवों के लोगों को जल नीति तैयार कर काम करना होगा. उक्त बातें शुक्रवार की सुबह जिले में बढ़ते जल संकट को दूर करने पहुंचे वाटर मैन राजेंद्र सिंह ने सीताकुंड से रसलपुर तक करीब आठ किलोमीटर की जल यात्रा शुरू करने से पहले कहीं.
इससे पूर्व उन्होंने सीता कुंड मंदिर और फल्गु का दर्शन किया और फल्गु नदी का जल हाथ में लेकर जिले के जल संकट को दूर करने का संकल्प लिया. साथ ही रसलपुर स्थिति साढ़े छह एकड़ में पसरे तालाब को गोद लेने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि देश में पानी, जवानी व किसानी पर संकट आ गया है. इस संकट को यदि दूर करना है और गया जिले को पानीदार बनाना है, तो भगवान के दिये हुए पानी की बूंदों को वहीं रोकना होगा.
उसे वहीं किसी तालाब में रोकना होगा. फिर वह पानी धरती के पेट में जायेगा, तो उस पानी को धरती के पेट से सूरज नहीं सुखा सकेगा, फिर कोई हीट वेव नहीं आयेगा और न ही कहीं पानी का संकट होगा.
उन्होंने कहा कि गया की धरती के तापमान को ठीक करने के लिए धरती के ऊपर पानी की पट्टी रखनी होगी और पानी की पट्टी तालाब, आहर पोखर, कुंआ और पइन हैं. एक जमाना था जब किसान बुआई के लिए बारिश की राह देखते थे, वे वर्षा के आने के समय की गणना के आधार पर फसलों का चयन कर बुआई करते थे. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अब किसान वर्षा की गणना करना भूल गये हैं.