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आधुनिकीकरण के नाम पर सिर्फ मोटी हुई फाइल

गया : 1998 से गया जेल प्रेस के आधुनिकीकरण के लिए जांच, फंड रिलीज व सरकार को रिपोर्ट देने की प्रक्रिया चल रही है. इसमें कई फाइलों का मोटापा जरूर बढ़ा. लेकिन, यहां की मशीन व अन्य चीजों का आधुनिकीकरण करने का काम अब तक शुरू नहीं हो सका है. जेल प्रेस सूत्रों की मानें, […]

गया : 1998 से गया जेल प्रेस के आधुनिकीकरण के लिए जांच, फंड रिलीज व सरकार को रिपोर्ट देने की प्रक्रिया चल रही है. इसमें कई फाइलों का मोटापा जरूर बढ़ा. लेकिन, यहां की मशीन व अन्य चीजों का आधुनिकीकरण करने का काम अब तक शुरू नहीं हो सका है.

जेल प्रेस सूत्रों की मानें, तो यहां कर्मचारियों की संख्या 500 से घट कर 40 रह गयी है. पहले यहां से सरकारी कागजात की छपाई की जाती थी. लेकिन, अब यहां पूरे प्रदेश के जिलों के लिए सिर्फ मालगुजारी रसीद की ही छपाई होती है.
छपाई के बाद कागजातों को विभिन्न जिलों में भेजने के लिए तीन ट्रक भी थे. लेकिन, ट्रकों का रखरखाव नहीं होने के कारण बैठ गये. यहां कई दशक से स्थायी तौर पर तकनीकी पदाधिकारी, सुप्रीटेंडेंट व तकनीकी कर्मचारी की व्यवस्था नहीं की गयी है.
1983 में लगी मशीन पर होती है छपाई
1983 से पहले यहां मेड इन टिमशन व मेड इन इंग्लैंड की मशीन में कागजात की छपाई होती थी. लेकिन, उस वक्त की सबसे आधुनिक मशीन 1983 में रॉटरी ऑपसेट लगायी गयी. मशीनों की लाइफ जहां 15 वर्ष होती है. वहीं इस मशीन को ही मरम्मत कर 35 वर्षों से चलाया जा रहा है.
प्रेस सूत्रों के अनुसार, जब यह मशीन आयी उस वक्त भी इसके लिए जानकार कर्मचारी को नहीं बहाल किया गया. पहले से बहाल कर्मचारी ही मशीन को चलाने का काम अब तक कर रहे हैं. बताया जाता है कि जेल प्रेस में अब छपाई का काम चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों की बदौलत होता है. क्योंकि, तकनीकी पद पर बहाल लगभग कर्मचारी रिटायर्ड हो चुके हैं. इसके कारण यहां काम ठीक तरीके से नहीं हो रहा है.
कर्मचारी व मशीन की है कमी : अधीक्षक
अधीक्षक सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं कि कर्मचारी व मशीन ढंग की नहीं होने के कारण अन्य छपाई का काम यहां बंद हो गया है. सरकार के स्तर पर किसी तरह का फैसला लिया जाना है. उन्होंने कहा कि वे गुलजारबाग व गया दोनों जगह के प्रभार में हैं.

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