- दो वर्षों से कलस्टर आधारित कार्यक्रम के लिए नहीं की गयी कोई पहल
- दूसरे समुदाय के मुकाबले मांझी समुदाय के बच्चे बाल श्रम के ज्यादा शिकार
- गया जंक्शन से चंद कदमों का फासला तय कर ये बच्चे चाइल्ड लाइन के कार्यालय में आते हैं
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गया : बालश्रम मुक्त करने का सपना दूर की कौड़ी
दो वर्षों से कलस्टर आधारित कार्यक्रम के लिए नहीं की गयी कोई पहल दूसरे समुदाय के मुकाबले मांझी समुदाय के बच्चे बाल श्रम के ज्यादा शिकार गया जंक्शन से चंद कदमों का फासला तय कर ये बच्चे चाइल्ड लाइन के कार्यालय में आते हैं आशीष गया : जनवरी से मार्च व सितंबर से दिसंबर इन […]
आशीष
गया : जनवरी से मार्च व सितंबर से दिसंबर इन महीनों में गया स्टेशन पर ट्रेनों से कंधे पर बैग लिये बच्चे काफी संख्या में उतरते हैं. इनके साथ श्रम विभाग व समाज कल्याण विभाग के अधिकारी होते हैं. गया स्टेशन से चंद कदमों का फासला तय कर ये बच्चे चाइल्ड लाइन के कार्यालय में आते हैं.
जहां उन्हें सुरक्षा व पुनर्वास के लिए रखा जाता है. यह सिलसिला पिछले कई सालों से देखा जा रहा है. बावजूद इसके बाल श्रम का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है. वजह चाहे जो भी हो सरकार की योजनाएं भी कारगर साबित नहीं हो रही है. मसलन बच्चों को बाल श्रम के लिए नहीं रोक पा रही हैं.
इस मामले में बच्चों से बातचीत होती है वह कुछ बातों को बताना नहीं भुलते हैं. मसलन वे जहां रहते हैं वहां रोजगार नहीं है. घर की माली हालत खराब है. इसलिए काम के सिलसिल में बाहर जाना पड़ता है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि गया जो प्रदेश में बाल श्रमिकों के मामले में सबसे ऊपरी पायदान पर है, वह बाल श्रम मुक्त जिला कब बन सकेगा.
समुदाय आधारित कार्यक्रम चला, लेकिन फिलहाल बंद : वर्ष 2016 में समाज कल्याण निदेशालय ने बाल संरक्षण के मद्देनजर तीन स्वयंसेवी संस्थाओं से करार किया था. इसमें सेव द चिल्ड्रेन, जस्टिस एंड केयर व जस्टिस वेंचर्स शामिल है. इसके पीछे मंशा यह थी कि इन संगठनों के जरिये समुदाय आधारित कार्यक्रम चलाना. ताकि लोकल स्तर पर ऐसा माहौल बन सके, जिससे बच्चे बाल श्रम की और न मुड़े.
इस संबंध में जस्टिस एंड केयर के स्टेट समन्वयक पीयूष बताते हैं कि इस कार्यक्रम का अच्छा असर देखने को मिला. इन तीनों संस्थानों ने मानपुर व बेलागंज में काम किया. इसके बाद जब करार समाप्त हो गया तो अभी समुदाय आधारित कार्यक्रम बंद है.
दलालों का बड़ा नेटवर्क सक्रिय
वर्ष 2015-16 में जयपुर से छुड़ा कर लाये गये बच्चों में कई ऐसे बच्चे भी शामिल थे, जो दुबारा जयपुर गये थे. इस मामले को लेकर समाज कल्याण निदेशालय के अधिकारियों ने चिंता जतायी थी.
इस संबंध में जिला बाल संरक्षण इकाई के पूर्व सहायक निदेशक आलोक कुमार बताते हैं कि निदेशालय के स्तर पर कहा गया था कि दलालों का बड़ा नेटवर्क बाल श्रमिकों के नाम पर मिलनी वाली राशि को लूटने में लगा है. इसे रोकने के लिए प्रयास किया जाये. वहीं सूत्रों की मानें तो जिला से लेकर मुख्यालय स्तर पर दलालों का बड़ा नेटवर्क है. कुछ संगठनों के नाम भी सामने आये थे जो बच्चों के संरक्षण के नाम पर पैसा की उगाही करते हैं. हालांकि इसका एक पहलू यह भी कि कई बार बच्चों के अभिभावक ही सगे संबंधियों के कहने पर या गांव के किसी व्यक्ति को कुछ पैसों के नाम पर बाहर काम कराने के लिए भेजे गये थे.
गया में बालश्रम के कारण
रिमोट एरिया में संसाधनों का अभाव.
रोजगार के पर्याप्त साधन नहीं
ऐसे परिवार जिसमें घर के मुखिया (मर्द) की मौत हो चुकी है.
गांव में सक्रिय दलाल.
छुड़ा कर लाये गये बाल श्रमिकों की मॉनीटरिंग में लापरवाही.
फैमिली के साथ हर वर्ष यहां से होनेवाला पलायन.
बाल श्रमिकों के कुछ प्रमुख क्षेत्र
गया के इमामगंज प्रखंड, चंदौती, बेलागंज, मोहनपुर, अतरी, खिजरसराय, शेरघाटी, मानपुर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां से पिछले कई वर्षों से हजारों बच्चे जयपुर, कोलकाता व दूसरे राज्यों में काम कराने के लिए भेजे गये हैं. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015-16 में तेलांगना से छुड़ा कर लाये गये बाल श्रमिकों में मानपुर के 40, बेलागंज के 42 बच्चे शामिल थे. इसी प्रकार जयपुर से छुड़ाकर लाये गये बच्चों में 30 बच्चे चंदौती के थे. इसके अलावा पिछले वर्ष 2018 के दिसंबर में जयपुर से छुड़ाकर लाये गये 37 बाल श्रमिक शामिल थे. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में बाल मजदूरी के काम में 10 लाख बच्चे शामिल थे. इनकी आयु पांच वर्ष से लेकर 14 वर्ष है.
क्या कहते हैं अधिकारी
बाल संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन काफी गंभीर है. सरकार ने बच्चों को बाल मजदूरी से हटाने के लिए तीन स्तरीय कमेटी बनायी है. प्रखंड, वार्ड व पंचायत स्तर पर गठित कमेटी बाल संरक्षण की दिशा में काम कर रही है. इसके अलावा जो बच्चे बाहर से छुड़ा कर लाये जाते हैं उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ा जा रहा है. ऐसा माहौल बनाने की कोशिश है कि कोई भी बच्चा बाल श्रमिक न बने.
डॉ अर्पणा, उप श्रमायुक्त, मगध प्रमंडल
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