Durga Puja 2022: बिहार एवं उत्तर प्रदेश सीमा पर वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के घने जंगलों के बीच स्थित सिद्धिदात्री मां मदनपुर देवी स्थान आने पर मां भगवती पिंडी रूप का दर्शन श्रद्धालुओं को होता है. सभी फलों को देने वाला नवरात्र में यूपी बिहार सहित नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर देवी माता का दर्शन करते हुए मनत मांगते हैं. मान्यता है कि मां के दरबार में सच्चे मन से मनत मांगते वाले भक्त निराश नहीं लौटा हैं. यही कारण है कि शारदीय नवरात्र ही नहीं बल्कि प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को मां के दरबार में श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है. बगहा पुलिस जिला से लगभग 17 किलोमीटर पर मदनपुर वन क्षेत्र के घनघोर जंगलों के बीच मां मदनपुर देवी का स्थान है.
स्थान के पुजारी के मुताबिक मदनपुर देवी स्थान कभी राजा मदन सिंह के राज्य के अधीन आता था. जहां राजा कभी कभार इस जंगल में शिकार करने आया करते थे. इसी दौरान राज्य को सूचना मिली कि रहषु गुरु नामक साधु उनके राज्य क्षेत्र में जंगलों के बीच बाघ के गले में सांप बांधकर धान की दवनी करता है. यह सुनकर राजा सैनिकों के साथ मौके पर पहुंच गए और अपनी आंखों से देख अचंभित हो गये. उसके बाद राजा ने रहषु गुरु से जानकारी लेते हुए देवी मां को सामने बुलाने को जिद पर आ गये. इस पर रहषु गुरु ने देवी के आने के साथ ही राज पाठ का सर्वनाश होने की बात करते हुए राजा को समझाने का काफी प्रयास किये. लेकिन राजा उसे सजा देने की बात करते हुए अपनी बातों पर अटल रहे. तब रहषु गुरु ने देवी का आह्वान किया.
बताया जाता कि देवी कामाख्या से चलकर खंडवा में विश्राम करती हुई थावे पहुंची. देवी के थावे पहुंचने के बाद रहषु गुरु ने एक बार राजा को फिर चेताया. लेकिन राजा नहीं माने. इसी दौरान देवी मां भक्त रहषु गुरु के सिर आते हुए हाथ का कंगन दिखाया. जिसे देख राजा मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े और फिर नहीं उठे. उसके बाद राजा का परिवार एवं सारा समाज ही तहस-नहस हो गया.
मदनपुर देवी पीठ के पुजारी ललन दास कहते हैं कि बाघों के आशियाने के बीच घने जंगल में स्थित मां के दरबार में दिनों दिन बढ़ती संख्या मां की महिमा का प्रमाण है. मां का दरबार मदनपुर देवी स्थान के रूप में इतिहास में कायम है. माता के इस दरबार में मां का वाहन बाघ प्रतिदिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं. आज भी रात्रि में यहां किसी को रुकने को अनुमति नहीं है. पुजारी संध्या भोग के बाद माता का आसन लगाते हैं और खुद अपने निवास कोच में चले जाते हैं, जो सुबह ही बाहर आते हैं. इसी क्रम में मां का वाहन बाघ अपनी सेवा में आते हैं और मां के पास कुछ समय रुक कर पुनः घने जंगलों में चले जाते हैं. सर्वाधिक है कि आज तक मां के दरबार में आने वाले भक्तों के साथ किसी जानवर या असामाजिक तत्वों से कोई अनहोनी नहीं होती है. बदलते समय के साथ मंदिर को मॉडर्न तो बनाया गया लेकिन मां की शक्ति और उनके प्रति लोगों का आस्था बरकरार है.