Darbhanga News: दरभंगा. लनामिवि के पीजी संगीत एवं नाट्य विभाग तथा नदी मित्र संस्था की ओर से ””””””””संगीत एवं नाट्य सृजन में नदी की भूमिका”””””””” विषय पर मंगलवार को संगोष्ठी हुई. मुख्य वक्ता सह नदी विशेषज्ञ व फिजी में भारत के पूर्व सांस्कृतिक राजनयिक डॉ ओम प्रकाश भारती ने कहा कि मिथिला की नदियां सृजनधर्मी हैं. यहां के संगीत, नाट्य एवं नृत्य परंपराओं को यहां की नदी संस्कृति ने समृद्ध किया है. किसी नदी के किनारे लोक देव कारू खिरहर, कमला नदी के किनारे लोक देव बाबा बखतौर तथा नटुआ दयाल की लोक कथाएं गाई जाती है. कोसी, कमला तथा बलान की गीत धुनों ने मैथिल शास्त्रीय संगीत परंपरा को अंगीकार किया गया है. मैथिल कोकिल विद्यापति, फणीश्वर नाथ रेणु, मायानंद मिश्र, चंद्रकिशोर जायसवाल, सुरेन्द्र श्रृंध जैसे साहित्यकारों की रचनाओं में मिथिला की नदी संस्कृति मुखर है.
लुप्त होने की स्थिति में है कमला की धारा
डॉ ओम प्रकाश ने चिंता जताते हुए कहा कि आज कमला की धारा लुप्त होने की स्थिति में है. इसी तरह बलान, बैंती और तिलयुगा नदियां लुप्त होने के क्रम में है. इसके पीछे कई कारण हैं. पर्यावरणीय परिवर्तन, मानवीय हस्तक्षेप, नदियों में प्रदूषण, जलकुंभी का फैलाव और नदियों के प्राकृतिक मार्ग में बदलाव आदि प्रमुख कारण है. नदियों के किनारों पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण ने उनके प्राकृतिक मार्ग को बाधित किया है. बदलते मौसम और कम वर्षा ने नदियों के जलस्तर को प्रभावित किया है.नदियों के संरक्षण के ठोस प्रयासों की कमी
कहा कि सरकारी स्तर पर नदियों के संरक्षण और पुनर्जनन के ठोस प्रयासों की कमी है. इसके कारण नदियां लुप्त हो रही है. कोसी तथा उसकी सहायक धाराएं हिमालय के चीन तथा तिब्बत के पठार से निकलती हैं. हिमालय की नदियों पर चीन उच्च बांध बना रहा है. अरुण कोसी पर वह बांध बना चुका है. बांध क्षेत्र में हजारों वर्गमील में विशाल झील बन चुका है. यदि कभी यह बांध टूटता है, तो उत्तर बिहार में प्रलयकारी बाढ़ आयेगी. इस बांध ने कोसी की धारा को प्रभावित किया है. सूखे के दिनों में कोसी नदी में पर्याप्त पानी नहीं होता है. इससे पहले चीन ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी को बांध चुका है. चीन की इस नीति के प्रति लोगों को जागरूक करना आवश्यक है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस मुद्दे को जीवित रखना होगा, नहीं तो ड्रैगन धीरे धीरे नदियों को निगल जायेगा.करायी जायेगी नदियों की गणना
इस अवसर पर नदी मित्र द्वारा बिहार की नदियों के सांस्कृतिक मानचित्रण का सामूहिक संकल्प लिया गया. इसमें नदियों की गणना के साथ नदियों से जुड़े मिथक, कहानी, गीत तथा ऐतिहासिक विवरणों को एकत्र किया जाएगा. साथ ही नदियों के किनारे बसे समुदायों, तीर्थस्थलों, सांस्कृतिक स्थल, पर्व, त्यौहार तथा अनुष्ठानों का अध्ययन होगा. स्थानीय लोगों और विद्वानों से साक्षात्कार के माध्यम से मौखिक परंपराओं का संकलन एवं संरक्षण किया जायेगा. भौगोलिक सूचना प्रणाली द्वारा नदियों का ‘डेटाबेस’, ‘डिजिटल आर्काइव’ तथा संग्रहालय के निर्माण की योजना भी बनाई गई है. अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो. लावण्य कीर्ति सिंह ””””””””काव्या”””””””” तथा धन्यवाद ज्ञापन संकायाध्यक्ष प्रो. पुष्पम नारायण ने किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है