Darbhanga News: सुबोध नारायण पाठक, बेनीपुर. सरकार द्वारा मखान उत्पादन को बढ़ावा देने व कीमत में आयी जोरदार उछाल के बाद से अब यहां के किसानों के लिए यह मुख्य फसल बनता जा रहा है. आलम यह है कि पूर्व में जहां मखाना की खेती सामान्यत: गहरे तालाब में ही हुआ करती थी, इसके उत्पादन पर सिर्फ मल्लाह जाति का ही एक तरह से एकाधिकार था, वहीं अब सामान्य किसान भी अपनी जोत की जमीन में धान-गेहूं के साथ-साथ मखान की भी खेती करने लगे हैं. इसे लेकर पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार तिगुने रकवा में मखान की खेती की गयी है. इससे यहां के किसानों की माली हालत में भी तेजी से सुधार होने की आश जगी है. मिथिला की मिट्टी के मखान की मांग देश-विदेश में जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है, उसी अनुपात में यहां के सामान्य किसान भी इसकी खेत के क्षेत्रफल को विस्तार दे रहे हैं. अब धान-गेहूं व दलहन-तेलहन की फसल काटकर किसान मखान का उत्पादन कर तिहरा लाभ लेने लगे हैं. कई किसानों ने बताया कि समान्यत: रबी की फसल के बाद तीन-चार माह तक खेत वैसे ही परता रह जाता था. अब उसमें मखान की खेती करने से एक ही खेत से तिहरा लाभ मिलने लगा है. वहीं अब मखान की खेती से जाति विशेष मल्लाह का भी एकाधिकार समाप्त हो गया है. कुछ साल पहले तक भले ही मखान उत्पादन को मल्लाह की पुस्तैनी पेशा समझा जाता रहा हो, परंतु वर्तमान में देश-विदेश में मांग बढ़ने से उत्साहित अन्य जाति के किसान भी इस ओर मुखातिब हुए हैं. मखान उत्पादक किसानों ने बताया कि सरकार द्वारा मखान के उत्पादन के लिए जितना बल दिया जा रहा है, उसका लाभ आज भी किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है. किसान कड़ी मेहनत कर पारंपरिक तरीके से ही मखान का उत्पादन कर रहे हैं. रोपनी के समय से लेकर तैयार लावा बेचने तक इन्हें आज भी महाजन व बिचौलियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि मखान की खेती को हाइटेक करने के लिए सरकार द्वारा दरभंगा में मखान अनुसंधान केंद्र की स्थापना दशकों पूर्व की गयी. वहां पिछले माह केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तालाबों में खुद मखान की रोपनी कर किसानों का मनोबल बढ़ाया. वर्तमान में मखान की रोपनी चल रही है. किसान पुराने तौर-तरीके से अपने स्तर से तालाब वा धान के खेतों में पौधे लगा रहे हैं. मखान की खेती के लिए न तो सरकार से किसी तरह की सहायता इन किसानों को मिल पाती है और न ही नई तकनीकी की जानकारी देने के लिए वैज्ञानिक ही खेतों की मेड़ तक पहुंचते हैं. किसानों का कहना है कि मखान की खेती में सरकारी सहायता के साथ वैज्ञानिक तकनीकी की जानकारी समय-समय पर मिले, तो निश्चित रूप से यहां के किसानों के लिए मखान की खेती वरदान साबित होगी.
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