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Darbhanga News: महाकवि विद्यापति ने जिस तरह का साहित्य सृजन किया, वह उनकी स्याही से ही था संभव

Darbhanga News:ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मैथिली विभाग में मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति की पुण्यतिथि ''विद्यापति स्मृति दिवस'' के रूप में मनायी गयी.

Darbhanga News: दरभंगा. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मैथिली विभाग में मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति की पुण्यतिथि ””विद्यापति स्मृति दिवस”” के रूप में मनायी गयी. विभागाध्यक्ष प्रो. दमन कुमार झा की अध्यक्षता में महाकवि को पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ जय- जय भैरवी देवी गीत से शब्दांजलि अर्पित की गयी. कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ. पहले सत्र में विद्यापति के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार रखा गया. दूसरा सत्र काव्य पाठ पर केंद्रित रहा. प्रो. अशोक कुमार मेहता ने कहा कि मैथिली भाषा और संस्कृति विश्व भर में फैली है. जिस तरह महाकवि विद्यापति ने साहित्य सृजन किया, सौंदर्यबोध से ओतप्रोत काव्य लिखें, वह उनकी स्याही से ही संभव था. कहा कि विद्यापति की रचनाओं में मिथिला की संस्कृति बोलती है.

विद्यापति सौंदर्यबोध के अप्रतिम कवि- प्रो. उमेश

पीजी हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार ने विद्यापति को सौंदर्यबोध का अप्रतिम कवि कहा. उन्हें जन सामान्य का कवि बताया. कहा कि उनकी रचनाओं में श्रृंगार और भक्ति के भाव महीनियत से घुले हैं. भारतीय समेकित साहित्य में उनके सरीखा रस मर्मज्ञ मिलना कठिन है.

विद्यापति मैथिली साहित्य के प्राण वायु- डॉ सुरेश

डॉ सुरेश पासवान ने कहा कि विद्यापति मैथिली साहित्य के प्राण वायु हैं. विद्यापति नहीं होते तो मैथिली भाषा आज इतनी समृद्ध नहीं रहती. उन्होंने शृंगारिक एवं भक्ति विषयक कई गीत रचें, जो वर्षो से जन – जन के कंठों में विराजमान हैं. मिथिला का लोक संस्कार विद्यापति के गीतों के बिना अधूरा है.

सांस्कृतिक जागरण के अग्रदूत थे विद्यापति- प्रो. दमन

अध्यक्षता करते हुए प्रो. दमन ने कहा कि महाकवि विद्यापति सांस्कृतिक जागरण के अग्रदूत थे. उनके गीतों का प्रभाव पूर्वी भारत के राज्यों में विद्यमान हैं. इसी काव्य कला की महानता के कारण बंगला, उड़िया और असमिया के कवि उन्हें अपना बनाने के लिए उद्यत थे. उनके एक- एक पद भाव – बोध से ओत- प्रोत हैं. शब्दार्थ, भावार्थ एवं विशेषार्थ से परिपूर्ण उनके प्रत्येक पद सैकड़ों वर्षो के बाद भी आज नवीनता लिए हुए है. कहा कि जब तक विद्यापति के श्रृंगारिक एवं भक्ति पद रहेंगे, तब तक विद्यापति जीवित रहेंगे. डॉ अभिलाषा कुमारी ने कहा कि विद्यापति मैथिली साहित्य के विशाल वट वृक्ष हैं, जिनपर मैथिली साहित्य वर्षो से टिका हुआ है. डॉ सुनीता कुमारी ने कहा कि विद्यापति मैथिल समाज के पथ प्रदर्शक थे. उनकी अधिकांश रचनाओं में तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति को देखा जा सकता है.

कवियों ने सुनायी अपनी रचनाएंद्वितीय सत्र में प्रो. उमेश कुमार, प्रो. अशोक मेहता, प्रो. दमन कुमार झा, कंचन, आकृति झा ने काव्य पाठ किया. माैके पर विभाग के शोधार्थी नेहा, अम्बालिका, शीला, पवन, मनोज पंडित, प्रवीण कुमार, मनोज, मिथिलेश, काजल समेत अन्य छात्र- छात्राएं एवं भारती और निरेन्द्र उपस्थित थे.

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