Darbhanga News: दरभंगा. एमएलएसएम कॉलेज में “द साइंस ऑफ द स्काई : हाउ द एटोम्सफेयर एंड क्लाउड्स वर्क ” विषय पर प्रधानाचार्य डॉ शंभु कुमार यादव की अध्यक्षता में सेमिनार हुआ. प्रधानाचार्य डॉ यादव ने कहा कि बादल का निर्माण वातावरणीय कारक पर निर्भर करता है. बदलते पर्यावरण व बढ़ते प्रदूषण के दौर में इसका असंतुलन बढ़ता जा रहा है. इसके प्रभाव से रेगिस्तानी क्षेत्र में बारिश हो रही है और जहां सदैव बारिश होती थी, वहां सूखा पड़ रहा है.
मानसून की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही- डॉ अभिषेक
भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के डॉ अभिषेक गुप्ता ने कहा कि वातावरण में बादलों का निर्माण प्रकृति की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो जल और वायु के संयोग से उत्पन्न होता है. जब सूर्य अपनी ऊष्मा से पृथ्वी पर अवस्थित जल के विभिन्न स्रोत नदियों, समुद्रों, झीलों और वनस्पतियों में विद्यमान जल को गर्म करता है, तो वह वाष्प के रूप में आकाश की ओर उड़ जाता है. यह अदृश्य वाष्प ऊंचाई पर पहुंचकर ठंडी वायु के स्पर्श से शीतल हो जाती है. इस शीतलता के प्रभाव से जलवाष्प सूक्ष्म कणों में परिवर्तित होकर हवा में तैरते धूलकणों या लवणकणों पर संघनित हो जाती है. धीरे-धीरे ये सूक्ष्म बूंदें एक-दूसरे से मिलकर समूह बनाती हैं. यही समूह बादल कहलाते हैं. कहा कि ग्लोबल वार्मिंग से जहां प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है. धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है. मानसून की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही. इसका सीधा असर मनुष्य, जीव-जंतु, पेड़-पौधों के साथ-साथ खाद्यान्न उत्पादन पर असर पड़ रहा है.
दुनिया अब कृत्रिम बारिश पर कर रही शोध
कहा कि दुनिया अब कृत्रिम बारिश पर शोध कर रही है. विमान या रॉकेट के माध्यम से बादलों के भीतर कुछ विशेष पदार्थ जैसे सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राइ आइस का छिड़काव करते हैं. ये कण बादलों के अंदर जाकर संघनन केन्द्र का कार्य करते हैं, यानी जलवाष्प इन कणों के चारों ओर इकट्ठा होकर बूंदों में बदल जाते हैं. जब पर्याप्त बूंदें एकत्रित हो जाती हैं और उनका भार बढ़ जाता है, तो वे धरती पर वर्षा बनकर गिरने लगती हैं. कहा कि कृत्रिम बारिश वक्त की जरूरत है. इसे कराने में वैज्ञानिक अगर शत-प्रतिशत सफल रहते हैं, तो यह इस सदी का इस क्षेत्र में सबसे बड़ा अनुसंधान होगा. डॉ अनिल कुमार चौधरी ने भी विचार रख. संगोष्ठी में डॉ भारतेंदु कुमार, डॉ रंजन कुमार, अजय कुमार, राहुल कुमार झा आदि मौजूद थे. संचालन डाॅ विवेक कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ आनन्द मोहन झा ने किया.
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