दरभंगा/कमतौल : दीपावली से लेकर कार्तिक पूर्णिमा स्नान तक कई ऐसे पर्व आते हैं, जिनमें अक्षय नवमी भी एक है़ कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाये जाने वाले इस पर्व में आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है़
आंवले के पेड़ के नीचे भोजन आदि पकाकर केले के पत्तों पर सामूहिक रूप से भोजन करने का भी विधान है़ आचार्य डा़ संजय कुमार चौधरी का कहना है कि अक्षय नवमी का महत्व ऐसा है कि जो प्राणी अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करेगा, एकाग्र हो कर ध्यान करेगा, उसे तपस्या का फल मिलेगा़ यही नहीं शास्त्रों में ब्रह्म हत्या को घोर पाप बताया गया है़
यह पाप करने वाला अपने दुष्कर्म का फल अवश्य भोगता है, लेकिन अगर वह अक्षय नवमी के दिन स्वर्ण, भूमि, वस्त्र एवं अन्नदान करे और वह आंवले के वृक्ष के नीचे लोगों को भोजन कराये तो इस पाप से मुक्त हो सकता है़ पौराणिक ग्रंथों में अक्षय नवमी को लेकर कई किंवदंतियां हैं.
प्राचीन काल में प्राचीपुर के राजकुमार मुकुंद देव जंगल में शिकार खेलने गये हुए थे़ तभी उनकी नजर एक सुंदरी पर पड़ी़ उन्होंने युवती से पूछा, तुम कौन हो और तुम्हारा नाम क्या है? युवती ने बताया- मेरा नाम किशोरी है मैं इसी राज्य के व्यापारी कनकाधिप की पुत्री हूं, लेकिन आप कौन हैं ?
मुकुंद देव ने अपना परिचय देते हुए उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की़ इस पर किशोरी रोने लगी़ मुकुंद देव ने उसके आंसू पोछे और रोने का कारण पूछा़ उसने उत्तर दिया, मैं आपकी मृत्यु का कारण नहीं बनना चाहती़ वैधव्य की पीड़ा बड़ी भयंकर होती है़ मेरे भाग्य में पति सुख लिखा ही नहीं है़ राज ज्योतिषी ने कहा है
कि मेरे विवाह मंडप में बिजली गिरेगी और वर की तत्काल मृत्यु हो जायेगी़ लेकिन मुकुंद देव को अपनी बात पर अडिग देख किशोरी ने कहा – राजन, आप कुछ समय प्रतीक्षा करें, मैं अपने अाराध्य देव की तपस्या करके उनसे अपना भाग्य बदलने की प्रार्थना करुंगी़ कई माह पश्चात शिवजी प्रसन्न होकर किशोरी के समक्ष प्रकट हुए और वर मांगने को कहा़ किशोरी ने अपनी व्यथा सुनाई़ शिवजी बोले, गंगा स्नान करके सूर्य देव की पूजा करो तभी तुम्हारी भाग्य रेखा बदलेगी और वैधव्य का योग मिटेगा़
किशोरी गंगा तट पर आकर रहने लगी़ वह नित्य गंगा के जल में उतरकर सूर्य देव की आराधना करने लगी़ उधर राजकुमार मुकुंद देव भी गंगा के किनारे एक कुटी में रहकर ब्रह्म मुहूर्त में गंगा में प्रवेश कर सूर्य के उदय होने तक प्रार्थना करने लगे़ इसी बीच एक दिन लोपी नामक दैत्य की ललचाई नजर किशोरी पर पड़ी़
वह उस पर झपटा़ तभी सूर्य भगवान ने अपने तेज से उसे भस्म कर डाला और किशोरी से कहा कि कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को तुम आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव के साथ विवाह रचाना़ तब वैधव्य योग हटेगा और दांपत्य सुख पाओगी़
किशोरी और मुकुंद देव ने मिलकर मंडप बनवाया और उस अवसर पर देवताओं को भी आमंत्रित किया़ विवाह रचाने के लिए महर्षि नारद जी आये. फेरों के दौरान आकाश से गड़गड़़ाहट के साथ बिजली गिरी, लेकिन आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया और किशोरी के सुहाग की रक्षा की़ वहां उपस्थित लोग जय-जयकार करने लगे़ तभी से आंवले के वृक्ष को पूजनीय माना जाने लगा. कहा जाता है आज भी आंवले के वृक्ष के नीचे कार्तिक शुक्ल की अक्षय नवमी के दिन देवतागण एकत्रित होते हैं और अपने भक्तगणों को आशीर्वाद देते हैं.