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कंधे पर उठा कर एक से दूसरे वार्ड में मरीजों को शिफ्ट करने जाते हैं परिजन

दरभंगा : उत्तर बिहार का सबसे बड़ा चिकित्सा संस्थान डीएमसीएच में मरीजों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पाती. स्थिति इतनी बदतर है कि रोगियों को उनके परिजन गोद में उठा कर एक विभाग से दूसरे विभाग ले जाते हैं. अगर ट्रॉली मिल भी जाती है तो उसे खुद ही धक्का देकर एक स्थान से […]

दरभंगा : उत्तर बिहार का सबसे बड़ा चिकित्सा संस्थान डीएमसीएच में मरीजों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पाती. स्थिति इतनी बदतर है कि रोगियों को उनके परिजन गोद में उठा कर एक विभाग से दूसरे विभाग ले जाते हैं. अगर ट्रॉली मिल भी जाती है तो उसे खुद ही धक्का देकर एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना होता है. स्वभाविक रूप से इससे रोगी के परिजनों को भारी समस्या झेलनी पड़ती है. इसकी मूल वजह ट्रॉली मैन का अभाव है.

मालूम हो कि निकटवर्ती जिलों के अलावा नेपाल के तराई क्षेत्र से औसतन पंद्रह सौ से दो हजार मरीज यहां बेहतर चिकित्सा की उम्मीद के साथ पहुंचते हैं, लेकिन मरीजों व परिजनों को लचर चिकित्सा व्यवस्था के कारण रोजाना परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है. इतने बड़े अस्पताल में इंमरजेंसी एवं गायनी विभाग के मरीजों के लिये ही ट्रॉली मैन की सुविधा उपलब्ध है. सर्जरी, आर्थो एवं मेडिसीन विभागों में मरीजों को विभिन्न तरह की जांच करवाने के लिए परिजनों को खुद स्ट्रेचर पर लेकर जाना पड़ता है. वार्डों में स्ट्रेचर ढूंढने के लिए मरीज के परिजन इधर-उधर भटकते नजर आते हैं.

सर्जरी, आॅर्थो व मेडिसिन वार्ड में समस्या: डीएमसीएच में इमरजेंसी एवं गायनी विभाग में मरीजों को एक वार्ड से दूसरे वार्ड ले जाने के लिये आउटसोर्सिंग पर ट्रॉली मैन को बहाल किया गया है. मेडिसिन, ऑर्थो, सर्जरी एवं शिशु रोग विभाग में एक भी ट्रॉली मैन नहीं है. इस कारण यह समस्या बनी हुई है. सबसे ज्यादा परेशानी ऑर्थो एवं सर्जरी विभाग में इलाज़रत मरीजों के परिजनों को झेलनी पड़ती है. सर्जरी भवन दो मंजिला होने के कारण परिजनों को स्ट्रेचर खुद से ले जाने में काफी समस्या होती है. कई बार मरीज नीचे गिरने से बाल-बाल बचते हैं.
मेडिसिन वार्ड में सबसे अधिक मरीज: मेडिसीन विभाग में रोजाना सबसे अधिक संख्या में मरीज भर्ती होते हैं. वार्ड में नित्य 50 से 60 मरीजों को लंबे इलाज के लिए भर्ती लिया जाता है. इस दौरान मरीजों को कई तरह के जांच करवाने पड़ते हैं. परिजनों को अल्ट्रासाउंड जांच करवाने के लिए खुद अपने मरीज को ट्रॉली पर लिटाकर वहां ले जाना पड़ता है.
दोपहर बाद बढ़ जाती है समस्या
अस्पताल में ट्रॉली मैन के नहीं होने के कारण वार्ड एटेंडेंट ही यह काम करते हैं. विभिन्न वार्डों में वार्ड मैन पहली पाली की ड्यूटी के बाद दोपहर एक बजे चले जाते हैं. इसके बाद मरीजों को शिफ्ट एवं अन्य चिकित्सकीय जांच के लिये अस्पताल का चक्कर काटना पड़ता है. इसके लिये इंमरजेंसी विभाग में कार्यरत ट्रॉली मैन को बुलाना पड़ता है. इससे मरीजों एवं उनके परिजनों के लिये काफी समस्या होती है. घंटों प्रतीक्षा के बाद ट्रॉली मैन वहां पहुंच पाते हैं. नहीं पहुंचने पर परिजनों को खुद ही स्ट्रेचर पर मरीजों को चिकित्सकीय कार्य के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना पड़ता है.
अधिकारी बोले
अधीक्षक डीएमसीएच डॉ संतोष कुमार मिश्र ने कहा, अस्पताल में ट्रॉली मैन का पद सृजित नहीं है. वार्ड एटेंडेंट से ही यह काम लिया जाता है. वैसे इनकी संख्या भी पर्याप्त नहीं है. इससे समस्या होती है. विभाग को इसके लिये लिखा जा रहा है.
वार्ड अटेंडेंट करते हैं ट्रॉली मैन का काम
डीएमसीएच के मेडिसीन, ऑर्थो, सर्जरी विभागों में कार्यरत वार्ड एटेंडेंट की मरीजों को ढोने का काम करते हैं. ट्रॉली मैन के नहीं होने से वार्ड एटेंडेंट वार्ड के काम को देखते हुए मरीजों को वार्ड में शिफ्ट करते हैं. कई बार मरीज एवं परिजनों को लंबे समय तक विभागों में जांच के लिए वार्ड बॉय का इंतजार करना पड़ता है. इस दौरान कई बार मरीजों के परिजन से कर्मियों की झड़प भी हो जाती है.
नित्य दो सौ मरीज होते भर्ती
डीएमसीएच में निकटवर्ती जिला के अलावा नेपाल के तराई क्षेत्र से डीएमसीएच में पंद्रह सौ से दो हजार के बीच मरीज यहां इलाज कराने पहुंचते हैं. इनमें से डेढ़ सौ से दो सौ मरीजों को लंबे इलाज के लिये विभिन्न वार्डों में भर्ती किया जाता है. वार्डों में मरीजों के लिये उपलब्ध बेड की अगर बात करें, तो शिशु रोग के विभिन्न वार्डों में 142 बेड, सर्जरी में 225 बेड, मेडिसिन विभाग के वार्डों में कुल 205 बेड, आर्थो में 70, इएनटी में 30 बेड, नेत्र रोग विभाग में 50 बेड हैं. विभिन्न विभागों के वार्डों में मरीजों के लिये एक हजार से अधिक बेड हैं.

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