उर्मिला कोरी, मुंबई: Chhath Special: जैसे छठ को सादगी का पर्व माना जाता है, उसी तरह सादगी ही मेरा ब्रांड है. हम अपने अनुभव से यह बात कह सकते हैं. सूर्य की सादगी देखिए. प्रकृति को देखिए. सम्मोहित करने वाली सादगी है. छठ का केंद्रीय भाव भी यही है. गांव में रहते हुए और मुंबई आने के बाद अब तक इसे अपने भीतर बचा कर रखा है. मुझे पता है कि यही मेरी पूंजी है. यह किसी की भी हो सकती है. सूर्य तो सबके हैं. यह सादगी भी सबके भीतर है.
मैंने खुद पर बाजारवाद कभी हावी नहीं हो दिया
अपने निजी जीवन में मैंने बाजारवाद कभी हावी नहीं हो दिया. मेरी मूल प्रकति में ही सादगी है. हम जैसे-जैसे ब्रांड के चक्कर पड़ते हैं, हम अपने मूल भाव को खोते जाते हैं. मुझमें वह नहीं आया है. मेरा मानना है कि यह भी सूर्य की ऊर्जा से संभव हुआ. सूर्यदेव की निरंतरता से संभव हुआ. वह कहां तामझाम में फंसे. लाखों साल से वही सादगी. वैसी ही निरंतरता. इसलिए सहजता और सादगी मेरा ब्रांड है. हैंडलूम और हाथ के बने कपड़े ही मुझे पसंद हैं. चमक-दमक मुझे ज्यादा प्रभावित नहीं करते.
एक्टर होने का एक स्टैंडर्ड फाॅर्मूला मैं नहीं मानता हूं
एक्टर होने का एक स्टैंडर्ड फाॅर्मूला मैं नहीं मानता हूं. किरदारों में मैं प्रयोग कर लेता हूं. जीवन में क्यों करूंगा. आचरण और व्यवहार में जो मूल भाव है, मैं उसी को रखता हूं. कई लोग नहीं समझ पाते हैं. एयरपोर्ट और दूसरी कई जगहों पर अक्सर लोग मुझसे अंग्रेजी में बोलना शुरू करते हैं, तो मैं सोचता हूं और फिर पूछता हूं-आप कहां से हैं? कोई बताता है कि मैं यूपी से हूं, तो कोई बताता है कि बिहार से हूं. मैंने उनसे कह देता हूं, तो आपको अंग्रेजी में बात करने की क्या जरूरत है? आप खुद तो हिंदी प्रदेश से हैं. मुझे लगता है कि ये लोगों की मानसिकता है कि एक्टर मतलब अंग्रेजी में ही बात करेगा. मैं तुरंत बोल देता हूं. मैं हिंदी में बात करने को अच्छा मानता हूं.
20 साल में छठ से गहरा जुड़ाव रहा
मेरी जिंदगी के शुरुआती 20 साल में छठ से गहरा जुड़ाव रहा. ऐसे ही छठ पूजा से जुड़ी स्वच्छता, सादगी और सामूहिकता को मैंने अपनी जिंदगी में भी बनाये रखने की कोशिश की है. अभी थोड़ी देर पहले एक नाटक का रिहर्सल देख रहा था. दरअसल, मेरी पत्नी एक नाटक बना रही हैं और उसके लिए एक्टर्स तैयारी कर रहे थे. उन्होंने एक्टिंग टिप्स के बारे में पूछा. मैंने अपने अनुभव से कहा कि परफॉरमेंस उलझा हुआ नहीं, बल्कि साफ होना चाहिए. छठ भी ऐसा ही त्योहार है. मेरे घर के पीछे तालाब था, तो छठ में सुबह-सुबह जाकर उस घाट को सबके साथ मिल कर साफ करता था. सफाई और स्वच्छता छठ का अहम हिस्सा है. इसे मैंने अपने एक्टिंग परफॉरमेंस में भी उतारा है. छठ पूजा से स्वच्छता के साथ-साथ सादगी भी जुड़ी हुई है. यह सब बड़ा हुआ, तो समझा. इन सबके केंद्र में सूर्य है. वही सादगी. वही निरंतरता.
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सूर्य अपने पास आडंबर को फटकने नहीं देते
सूर्य अपने पास आडंबर को फटकने नहीं देते. उनकी कृतज्ञता में हम मनुष्य कोई चढ़वा नहीं चढ़ाते. क्यों? क्योंकि उन्हें बाजार की जरूरत ही नहीं है. घर का बना पकवान और खेतों से उपजे कंद-मूल चढ़ाते हैं. ये सब सूर्य की सादगी के अनुकूल है. सूर्यदेव सबको अपनी रोशनी देते हैं. धरती पर कोई भी प्राणी हो, उसे सूर्य अपना प्रकाश देते हैं. बगैर भेदभाव के. इसका क्या मतलब है? यही तो सामूहिकता है. छठ भी सामूहिकता का प्रतीक पर्व है. कोई जाति या जेंडर बंधन नहीं है, हर कोई इससे जुड़ सकता है. अपने वर्क प्लेस में मैंने हमेशा इसी सामूहिकता को अपनाया है. आखिरकार फिल्में अकेले नहीं बनती हैं. सूर्य व छठ से जुड़ी स्वच्छता, सादगी और सामूहिकता को सभी को अपनाना चाहिए. हमारे यहां प्रकृति की पूजा की बहुत पुरानी परंपरा रही है. अगर आप देखें, तो दुनिया को सुचारु रूप से चलाने के लिए जल और सूर्य की बहुत अहम भूमिका है. ऑक्सीजन तभी जेनरेट होगा, जब जल और धूप होगी. सूर्यदेव और प्रकृति के प्रति आभार जताने वाला यह पर्व बेहद खास है.

