Chhath 2025: लोक आस्था के महापर्व छठ पर पारंपरिक भक्ति के साथ सामाजिक-राजनीतिक चेतना के स्वर भी गूंज रहे हैं. भोजपुरी पार्श्व गायिका प्रियंका सिंह ने अपने नए गीत ‘पलायन के दर्द सुन ए छठी मैया..’ के जरिए सीधे तौर पर सरकार और जनप्रतिनिधियों से युवाओं के लिए रोजगार का सवाल किया है. वहीं, गायिका मनीषा ने अपनी धुन के माध्यम से बाढ़ में विस्थापन और बेटी के अधिकार पर बात की. जबकि, लोकगायिका देवी के रिलीज गीत में व्रती अपने पति की नौकरी की प्रार्थना कर रही हैं. यह बेरोजगारी के सामाजिक दबाव का चित्रण करता है. जबकि चंदन तिवारी ने 1961 की पहली मगही फिल्म ‘भैया’ के दुर्लभ छठ गीत को रिकॉर्ड कर लोक-संस्कृति के संरक्षण का सराहनीय प्रयास किया है.
प्रियंका सिंह: गीत के जरिए रोजगार और पलायन के दर्द को बयां की
भोजपुरी पार्श्व गायिका प्रियंका सिंह ने अपने नए छठ गीत के जरिए एक गंभीर सामाजिक और राजनीतिक सवाल खड़ा किया है. मनोज भावुक द्वारा लिखित उनके गीत ‘पलायन के दर्द सुन ए छठी मैया..’ आस्था के साथ रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों को सीधे सरकार और जनप्रतिनिधियों को संबोधित करता है. गीत के बोल इस चुनावी माहौल में श्रोताओं को सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर कब तक युवा रोजी-रोजगार के लिए पलायन का दुख झेलते रहेंगे. गाने की मार्मिक पंक्तियां ‘कब ले पलायन के दुख लोग झेले.. कब ले सुतल रहिहें एमपी-एमएलए?’. यह गीत छठी मैया से अरदास करता है कि गांव में कल-कारखाने खुलें और लोगों को अपने क्षेत्र में रोजगार मिले.
प्रियंका सिंह का यह प्रयास भोजपुरी संगीत की पारंपरिक धारा को लोकहित के महत्वपूर्ण मुद्दों से जोड़ताहै. वह कहती हैं कि लंबे समय से बिहार अत्यल्प अवसंरचनात्मक विकास और बेहतर शिक्षा-स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण पलायन झेल रहा है. इस विधानसभा चुनाव और छठ के पावन अवसर पर उन्होंने छठी मईया के चरणों में यह गीत समर्पित किया है, ताकि प्रदेश की समस्याओं को जड़ से समाप्त करने हेतु शीर्ष नेतृत्व और नौकरशाहों तक बात पहुंच सके. करीब नौ साल से लगातार बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर का अवार्ड जीत चुकी प्रियंका बाहुबली वन और टू (हिंदी संस्करण) तथा जय भीम जैसी फिल्मों के लिए भी गा चुकी हैं. उन्होंने इस साल कई कंपनियों के लिए 25 से 30 छठ गीत गाए हैं.
गीतों के माध्यम से समाज की रुढ़ीवादी विचारधारा को तोड़ने पर दे रही जोर
छठ महापर्व के पारंपरिक गीतों को सामाजिक संदेश के साथ जोड़ने की कोशिश में गायिका मनीषा ने बेटियों को महत्ता देने पर जोर दिया है. उनका कहना है कि पिछले दो सालों से वह छठ गीतों के माध्यम से समाज की रूढ़िवादी विचारधारा को तोड़ने का काम कर रही हैं. मनीषा ने बताया कि बिहार में आज भी कई जगह यह परंपरा है कि छठ में दउरा (बांस की टोकरी) बेटी के माथे पर नहीं उठाया जाता. लेकिन जब बेटियां हर क्षेत्र में लड़कों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, तो वे दउरा क्यों नहीं उठाएंगी? उनके गीतों को लाने का मकसद इसी सोच को बदलना था.
मनीषा ने अपने गीतों में छठी मैया को धन्यवाद देते हुए कहा है कि उनकी कृपा से बेटी हुई और अब वह बेटी चुल्हा-चौका से लेकर चांद तक का सफर कर रही है. घर से लेकर संसद और खेत से लेकर कार्यालय तक संभाल रही है. इसलिए अब वह घाट पर दउरा लेकर आ रही है. पिछले साल उनका गीत ‘छठी माई दिहलीएगो हीरा जइसनबेट” काफी लोकप्रिय हुआ था. दर्शकों की मांग पर इस वर्ष उन्होंने इसका अगला भाग ‘छठी माई दिहली हीरा जइसन बेटी 2.0’ जारी किया है. इसके अलावा, मनीषा ने बिहार में बाढ़ के कारण विस्थापित हुए लोगों की पीड़ा को भी अपने गीत ‘कईसे होई छठ के बरतिया’ के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है.
देवी ने छठ गीत के जरिए नौकरी के लिए छठी मैया से की गुहार
लोकगायिका देवी के छठ गीत काफी पसंद किए जाते हैं. वह हर साल छठ गीत रिलीज करती हैं. हालांकि, इस वर्ष गीत रिलीज नहीं हुए हैं. परंतु कुछ साल पहले रिलीज छठ गीत ‘सईया के सर्विस दे दी’ पारंपरिक आस्था के साथ-साथ आज के समाज के बड़े दर्द, बेरोजगारी को भी दर्शाता है. छठ गीतों में जहां संतान प्राप्ति की कामना होती है, वहीं देवी का यह गीत छठी मैया से पति के लिए नौकरी मांगने की मार्मिक प्रार्थना है.
देवी बताती हैं कि गीत में व्रती तीन साल से कठिन व्रत करने का उल्लेख करते हुए कहती है कि अब छठी मैया को उनकी हालत बदलनी चाहिए. यह गीत सीधे तौर पर उस सामाजिक दबाव और आर्थिक संकट को दिखाता है, जब घर का मुखिया बेरोजगार होता है. व्रती आंचल पसार कर भीख मांगते हुए छठी मैया से पति को सर्विस (नौकरी) देने की गुहार लगाती है. गीत में कहा गया है कि नौकरी मिल जाने पर वह बड़े जलसे का आयोजन कराएगी और खुद देवी को गीत गाने के लिए बुलाएगी.
साल 1961 की फिल्म मैया के गीत को चंदन तिवारी ने गाया
लोकगायिका चंदन तिवारी का मानना है कि छठ के गीत इस महापर्व के शास्त्र और मंत्र दोनों की भूमिका निभाते हैं. इसलिए इन्हें गाते समय सचेत रहना जरूरी है. उनके अनुसार, कजरी, फाग या चैती की तरह छठ गीतों में प्रयोग की ज्यादा गुंजाइश नहीं होती, और इसके मूल भाव उत्तम स्वास्थ्य, निरोगी काया की कामना को शाश्वत बनाए रखना चाहिए.
चंदन तिवारी ने बताया कि इस पर्व के गीतों में नदी, पोखर, सूर्य, छठी मइया, दउरा और सूप जैसे तत्व प्रमुख होते हैं. चंदन ने इस साल एक खास प्रयोग किया है. उन्होंने उस पहले छठ गीत को रिकॉर्ड किया है, जिसे किसी फिल्म में फिल्माया गया था. यह गीत मगही सिनेमा की पहली फिल्म ‘भैया’ (1961) की शुरुआत में है. इस गीत का मूल भाव है कि अगर इतना बड़ा व्रत ठाना है, तो वह पार होकर ही रहेगा.
इसके अलावा, चंदन तिवारी ने अपने साथियों के साथ इस बार बैठकी लगाकर उन सभी पारंपरिक गीतों को सरल भाव में रिकॉर्ड किया है, जो पीढ़ियों से मंत्र की तरह उपयोग होते आ रहे हैं, जैसे कांच ही बांस के बहंगिया. इन गीतों की तलाश में सिपाही सिंह श्रीमंत द्वारा दशकों पहले प्रकाशित दुर्लभ संकलन ‘छठपरमेश्वरी’ की भूमिका रही है. इस किताब से करीब दर्जन भर गीतों को लेकर रिकॉर्ड किया गया है, ताकि लोग आसानी से छठ गीत सीख सकें. पिछले साल उन्होंने बिंध्यवासिनी देवी के उन गीतों को भी गाने की कोशिश की थी.
यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में शामिल कराने की विशेषज्ञ समिति में शामिल हैं मनोज भावुक
भारत सरकार ने लोक आस्था के महापर्व छठ को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इस पहल को मजबूती देने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है. जिसमें भोजपुरी साहित्यकार एवं फिल्म गीतकार मनोज भावुक को भी सदस्य के रूप में शामिल किया गया है.
समिति का मुख्य कार्य छठ से जुड़े सभी सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को इकट्ठा करना और उनका सुदृढ़ दस्तावेजीकरण करना है, ताकि यूनेस्को के पास भेजे जाने वाले प्रस्ताव को तत्काल स्वीकृति मिल सके. मनोज भावुक ने बताया कि इस महापर्व को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के उन सभी देशों से भी प्रयास शुरू किए गए हैं जहां पूर्वांचल के लोग बसे हुए हैं. यह बहुराष्ट्रीय दृष्टिकोण इस पर्व के वैश्विक स्वरूप को प्रदर्शित करता है.
समिति के सदस्य के तौर पर मनोज भावुक इस प्रयास में छठ के व्यापक सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व को उजागर कर रहे हैं. हाल ही में उन्होंने अपने छठ गीत ‘पलायन के दर्द: सुन ए छठी मइया..’ के माध्यम से यूपी-बिहार के लोगों की पलायन की विवशता और गांव से जुड़ाव के दर्द को भी प्रमुखता से उठाया है. उनका मानना है कि छठ गांव कनेक्शन का पर्व है और यूनेस्को में शामिल होने से इस लोकपर्व की महिमा और समृद्ध होगी.
प्रोफेसर ध्रुव ने बतायी छठ की महत्ता
राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् व भू-आर्थिक विश्लेषक प्रोफेसर ध्रुव कुमार ने छठ को हमारी सबसे प्राचीन वैदिक परंपराओं में से एक बताया. उन्होंने कहा कि हमें प्रकृति, सूर्य और मनुष्य के पवित्र संबंध से जोड़तीहै. उन्होंने कहा कि यह पर्व संयम, संतुलन और समर्पण सिखाता है. साथ ही, याद दिलाता है कि अंधकार के बाद हमेशा उजाला आता है. प्रोफेसर ध्रुव ने छठ की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह पर्व आधुनिक युग में भी प्रकृति के प्रति सम्मान, संयम और एकता जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को सिखाता है. उन्होंने छठी मइया से सभी के घरों में स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देने की कामना की.

