834 हैंडपंप बेकार, कैसे बुझे प्यास
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गरमी की शुरुआत में ही पेयजल आपूर्ति को लगा झटका, इंतजाम नाकाफी
834 हैंडपंप बेकार, कैसे बुझे प्यास गरमी की शुरुआत में ही पेयजल आपूर्ति को झटका लगा है. विभाग की ओर से लगाये गये 834 हैण्डपंपों ने पानी उगलना बंद कर दिया है. लिहाजा गरमी में प्यास बढ़ी है और इस प्यास को बुझाने के इंतजाम नाकाफी दिख रहे हैं. नतीजा पानी की किल्लत तय है. […]
गरमी की शुरुआत में ही पेयजल आपूर्ति को झटका लगा है. विभाग की ओर से लगाये गये 834 हैण्डपंपों ने पानी उगलना बंद कर दिया है. लिहाजा गरमी में प्यास बढ़ी है और इस प्यास को बुझाने के इंतजाम नाकाफी दिख रहे हैं. नतीजा पानी की किल्लत तय है.
बेतिया : शहर से लेकर गांव-देहात तक शुद्ध पानी पहुंचाने में विभाग नाकाम दिख रहा है. ग्रामीणों के अनुसार, पीएचईडी की ओर से लगायी गयी हैण्डपंपों में से 80 फीसदी खराब पड़े हैं. जबकि विभाग खुद मान रहा है 25 फीसदी सरकारी हैण्डपंप यानि 834 चापाकल पानी नहीं उगल रहे हैं. लिहाजा गरमी आते ही पेयजल को लेकर दिक्कत शुरू हो गयी है.
विभागीय रिकार्ड तस्दीक करते हैं कि जिले के 18 प्रखंडों में र्पीएचईडी की ओर से कुल 3336 हैण्डपंप लगवाये गये हैं. इसमें से 1417 इंडिया मार्का हैण्डपंप-टू व 1919 इंडिया मार्का हैण्डपंप-थ्री है. विभागीय सर्वे के मुताबिक मौजूदा समय में से 25 फीसदी हैण्डपंप पानी नहीं दे रहे हैं. यानि 3336 हैण्डपंप में से 834 खराब पड़े है.
सरकार की ओर से लगाये गये हैण्डपंप यूं ही नहीं खराब हो रहे है, बल्कि इसकी देखरेख नहीं की जा रही है. जबकि समय-समय पर इन हैण्डपंपों की मरम्मत के लिए सरकार लाखों रुपये आवंटित करती है, लेकिन इन पैसों का बंदरबांट कर कागजों में ही चापाकल ठीक कर दिया जाता है और हकीकत में ये खराब पड़े होते हैं. खराब पड़े हैण्डपंपों का ठीक नहीं करा पाने के पीछे विभाग मिस्री की कमी गिना रहा है. उसका कहना है कि मिस्री के पद रिक्त होने से समस्या आ रही है.
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