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चुनाव में नहीं चला जातीय समीकरण का खेल

मोतिहारीः कई मायनों में 16वीं लोकसभा चुनाव पूर्व के अन्य चुनावों से अलग था. इस चुनाव की एक अहम बात यह भी रही कि इस बार जातीय संगठनों एवं जाति के ठेकेदारों को मुंह की खानी पड़ी. पूर्वी चंपारण में चुनाव जातीय समीकरण के आधार पर ही लड़ने की परंपरा रही है. पार्टियां भी कमोबेश […]

मोतिहारीः कई मायनों में 16वीं लोकसभा चुनाव पूर्व के अन्य चुनावों से अलग था. इस चुनाव की एक अहम बात यह भी रही कि इस बार जातीय संगठनों एवं जाति के ठेकेदारों को मुंह की खानी पड़ी. पूर्वी चंपारण में चुनाव जातीय समीकरण के आधार पर ही लड़ने की परंपरा रही है. पार्टियां भी कमोबेश जातीय समीकरण को ही आधार मान कर प्रत्याशियों को टिकट देती रही हैं.

खेली गयी जातियों की गोटी

चुनाव प्रक्रिया के दौरान जातीय गोटी भी खूब खेली गयी. हर जाति को गोलबंद करने का प्रयास किया गया. विभिन्न जातीय संगठनों के प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के नेता बुलाये गये. सभी ने अपने समाज के अस्तित्व की रक्षा के लिए एकमत होकर अपने प्रत्याशी को वोट करने की अपील की. इतना ही नहीं कई जातीय संगठनों की बैठकें होने लगी. इसका कभी नाम भी नहीं सुना गया था. वैसे संगठन भी अपील करने लगे कि जो दल उनकी जाति व समाज के कल्याण के लिए काम करेगी उसे ही समर्थन दिया जायेगा.

संगठनों की होती रही बैठक

कई जगह जातीय बैठकें हुई. संवाददाता सम्मेलन बुला कर अपने समाज को जागृत करने का प्रयास किया गया. वहीं, परदे के पीछे भी बड़े-बड़े गेम होते रहे. विभिन्न जाति के ठेकेदारों की पूछ भी तत्काल बढ़ गयी. मान-सम्मान के साथ खुश करने का सिलसिला भी चलता रहा. सूत्रों की माने तो इस गेम मे लाखों रुपये पानी की तरह बहाये गये. जो कल तक दूसरे का विरोधी था वो एकाएक समर्थक बन गया. चाय की चौपाल पर अपने चहेते की जीत की डुगडुगी बजाने लगी.

जातीय ठेकेदारों की नहीं सुनी मतदाताओं ने

चुनाव परिणाम ने ऐसे जातीय ठेकेदारों की पोल ही खोल दी. उनके पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी. प्रत्याशियों ने भी आकलन किया तो पता चला कि जातीय ठेकेदार के गांव में 800 वोट में उन्हें मात्र 75.80 ही मत मिले हैं. ये जनता है सब जानती है, को मतदाताओं ने चरितार्थ कर दिया. अब तो मुश्किल इन तथाकथित जातीय ठेकेदारों की बढ़ गयी है. आखिर जवाब क्या दें. ठेका लिया था पूरा नहीं कर सके, जबकि मेहनताना एडवांस में ही ले लिया था. इतना ही नहीं, कुछ ठेकेदार तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने एक ही काम का दो जगहों से ठेका लिया लिया था. अब ऐसे लोगों के कुरता का कलफ टूटने लगा है. अबकी के सुनामी में लगाता है सब चला जायेगा, अब वे जायें तो जायें कहां. राम तो मिले नहीं, आई माया भी जाने वाली है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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