बक्सर. शुक्रवार को शहर से कचरा उठाने वाले लगभग एक दर्जन गाड़ियों के चालक वेतन भुगतान की मांग को लेकर हड़ताल पर चले गये. नतीजा शहर के अधिकांश जगहों से कूड़े का उठाव नहीं हुआ.
लिहाजा डंपिंग जोन पर पड़े कचरे से उठने वाली दुर्गंध से आसपास के लोगों को जीना मुश्किल हो गया है. बक्सर नप के स्वच्छता अधिकारी रवि कुमार सिंह ने कहा कि कुछ मजदूरों की मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ था, जिस कारण वे लोग हड़ताल पर चले गये थे. हालांकि उनके वेतन का भुगतान कर दिया गया है. सफाई का काम देर शाम से शुरू हो जायेगा. गौरतलब है कि शहर को स्मार्ट सिटी बनवाने की मुहिम में जुटा नगर पर्षद जनता की बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं करा पा रहा है. साफ-सफाई के नाम पर हर माह एक करोड़ 16 लाख रुपये खर्च होने के बाद भी शुक्रवार को शहर के स्टेशन रोड से कचरे का उठाव नहीं किया गया. इससे स्टेशन से बाहर निकलते ही सड़क किनारे कचरा फैला दिखा.वहीं कवलदह पार्क के सामने भी डंपिंग जोन से कचरे का उठाव नहीं किया गया, जिससे निकल रही गंदगी से आसपास के लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. शहर की साफ-सफाई की हालत किसी से छिपी नहीं है. सड़कों पर जगह-जगह लगे कचरे के ढेर तरह-तरह की बीमारियां फैला रही हैं. जिस कारण बक्सर शहर देश भर में स्वच्छता रैंकिंग में पीछे छूट गया है. जिसके कारण बक्सर को स्वच्छ रखने की पहल पर फिर एक बार सवाल खड़ा हो गया है. शहर में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां कूड़ों का अंबार नहीं लगा है. बाइपास रोड में कूड़े का ढेर लगे रहने के कारण वातावरण प्रदूषित होने का खतरा बढ़ गया है.
डोर-टू-डोर कचरा उठाव का सही से नहीं हो रहा प्रबंधन
शहर की साफ-सफाई को लेकर हर माह करीब एक करोड़ 16 लाख रुपये खर्च होता है. इनमें डोर-टू-डोर कूड़ा उठाव और शहर की गली एवं सड़कों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी एनजीओ को दी गयी है. बावजूद इसके डोर-टू-डोर कचरा प्रबंधन का कार्य बेहतर नहीं होता है. शहर के अधिकांश वार्ड में डोर-टू-डोर कचरा उठाव में दो कर्मी लगाये गये हैं. लेकिन, किसी भी वार्ड में लगभग पांच सौ से अधिक घर होने के कारण ये कर्मी हर रोज घरों तक नहीं पहुंच पाते हैं. ऐसे में गृहस्वामी घर के कचरे को सड़क पर फेंकने के लिए विवश हो जाते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

