बक्सर. दिसंबर महीने के दूसरे सप्ताह में जिले में तापमान लगातार नीचे गिर रहा है. अधिकतम और न्यूनतम तापमान में लगभग पांच से छह डिग्री सेल्सियस की कमी आयी है. ठंड के इस मौसम में आलू की फसल में झुलसा रोग (पछेती अंगमारी) का खतरा बढ़ जाता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जिले में बड़े पैमाने पर आलू की खेती होती है और रोग के कारण पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है. सहायक निदेशक पौधा संरक्षण संस्कृति बी. मौर्या ने बताया कि दिसंबर और जनवरी के दौरान तापमान गिरने से आलू की फसल में झुलसा रोग लग सकता है. खेत में खर-पतवार और मरे हुए पौधे रोग के फैलने का कारण बनते हैं. इसके अलावा ठंड के मौसम में कीटों के फैलने का भी खतरा रहता है. यदि समय पर बचाव न किया गया, तो फसल पूरी तरह से चौपट हो सकती है. संस्कृति बी. मौर्या ने किसानों को सलाह दी कि फसल का नियमित निरीक्षण करें. जिन क्यारियों में मरे हुए पौधे या खर-पतवार के अवशेष हों, उन्हें खेत से निकाल कर किसी गड्ढे में दबा दें. रोग से बचाव के लिए जब फसल एक महीने की हो जाये, तो मैंकोजेब 75 प्रतिशत फफूंदीनाशक, लगभग 800 ग्राम प्रति एकड़ खेत के हिसाब से छिड़काव करें. यदि आलू की फसल में तना गलन दिखाई दे, यानी पौधे का नीचे का हिस्सा गलकर काले रंग का हो जाये और पौधा मुरझाने लगे, तो स्ट्रेप्ट्रोसाइक्लिन की छह ग्राम मात्रा लगभग 25 लीटर पानी में घोल बनाकर दो-तीन छिड़काव करें. प्रत्येक छिड़काव के बीच 18-20 दिन का अंतर होना चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार समय पर सावधानी और सही उपचार से झुलसा रोग और कीटों से फसल को काफी हद तक बचाया जा सकता है. किसानों को चाहिए कि वे नियमित निरीक्षण और आवश्यक उपचार अपनाकर अपनी फसल की सुरक्षा सुनिश्चित करें और आर्थिक नुकसान से बचें.
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