बक्सर. एक तरफ सरकार किसानों की आय दोगुना करने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही है. बीज अनुदान से लेकर कृषि यंत्र तक किसानों को अनुदान दे रही है.
लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि ये सब अनुदान तो किसानों को मिल रहा है, लेकिन किसानों की खेतों की सिंचाई के लिए जो जिले में 325 राजकीय नलकूप लगाये गये हैं, उनमें से 164 लगभग पांच साल से बंद पड़े हैं. हालांकि ये राजकीय नलकूप फरवरी 2019 में ही लघु सिंचाई विभाग के द्वारा पंचायती राज्य के जिम्मे दे दिया गया था. विभागीय जानकारी के अनुसार चार फरवरी 2019 के हस्तांतरण के समय कुल 86 नलकूप खराब थे. मगर एक दो माह के अंदर यह संख्या 164 तक पहुंच गया. पांच फरवरी 2024 में जिले में खराब नलकूप की मरम्मत के लिए पैसा आवंटित किया गया. मगर हकीकत तो यह है कि पांच साल में ये खराब नलकूप चालू नहीं हुए, जिसकी वजह से 1640 हेक्टेयर कृषि भूमि पर सिंचाई का संकट है. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई की वर्षों पुरानी समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है. राज्य सरकार द्वारा किसानों की सिंचाई की समस्या दूर करने के उद्देश्य से शुरू की गयी नलकूप योजनाएं अब खुद ही भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ चुकी हैं. सरकारी वेबसाइट पर दिखाया गया आंकड़ा दावा करता है कि 161 नलकूप चालू स्थिति में हैं, लेकिन वर्ष 2024-25 के वित्तीय दस्तावेज के अनुसार, सिंचाई केवल 153 नलकूपों से ही हुई है. यह न केवल आंकड़ों की हेराफेरी को उजागर करता है, बल्कि विभागीय निगरानी प्रणाली की गंभीर खामियों को भी सामने लाता है.बिना ऑपरेटर के चलाये जा रहे नलकूप
2019 में जब पंचायती राज्य के जिम्मेदारी दिया गया तो उसी समय गाइडलाइन जारी की गयी थी कि राजकीय नलकूपों की मरम्मत, रखरखाव, संचालन, अनुश्रवण और बिजली बिल का भुगतान पटवन शुल्क से किया जाना है, जो कि उपविकास आयुक्त की अध्यक्षता में लघु सिंचाई विभाग के कार्यालय के सभागार में 20 अगस्त 2019 के बैठक में यह तय किया गया था कि 50 रुपये प्रति घंटा के दर से पटवन शुल्क लिया जायेगा और उसी राशि से नलकूप का बिजली बिल व ऑपरेटर के मानदेय का भुगतान किया जायेगा. लेकिन हकीकत तो यह कि न किसी नलकूप पर ऑपरेटर रखा गया है न ही किसी नलकूप से एक रुपये भी पटवन शुल्क वसूला गया है. सबसे गंभीर बात यह है कि चालू बताये जा रहे 161 नलकूपों में से अधिकांश बिना नियमित ऑपरेटरों के ही चलाये जा रहे हैं. किसी भी तकनीकी निगरानी और मरम्मत व्यवस्था के अभाव में ये नलकूप किसी भी दिन पूरी तरह बंद हो सकते हैंं. किसान बताते हैं कि कई जगह तो गांव के ही युवक निजी तौर पर इन्हें चला रहे हैं, जिनकाे कोई तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है.मुखिया के भरोसे मरम्मत, पर परिणाम शून्य
सरकार द्वारा फरवरी 2019 से ही पंचायत के मुखिया को नलकूपों की मरम्मत एवं देखरेख की जिम्मेदारी सौंप दी गयी थी. इसके लिए प्रत्येक पंचायत को मरम्मत कार्य के लिए फंड भी उपलब्ध कराया गया. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज तक इन 164 नलकूपों में से एक भी नलकूप पूरी तरह चालू नहीं हो पाया है. कई स्थानों पर नलकूप के पैनल जले हुए हैं, मोटर खराब पड़ी हैं या फिर पाइपलाइन क्षतिग्रस्त हैं. बावजूद इसके, संबंधित पंचायतों द्वारा विभाग को अभी तक 145 नलकूप योजनाओं का उपयोगिता प्रमाण पत्र यूसी नहीं दिया गया है.
पटवन के अभाव में फसलें हो रहीं बर्बाद
इस लापरवाही और उदासीनता का सीधा असर किसानों पर पड़ा है. समय पर सिंचाई न होने के कारण किसानों को या तो फसल बदलनी पड़ी है या फिर निजी डीजल पंप सेट के सहारे महंगी सिंचाई करनी पड़ी है. जिले के किसान रामविलास पासवान कहते हैं कि हम गरीब किसान हैं. सरकारी नलकूप से उम्मीद थी लेकिन वो तो सालों से खराब पड़ा है. अब तो निजी मोटर से पानी खींचते हैं, जिसमें डीजल का खर्चा व बिजली बिल बहुत हो जाता है. मुनाफा तो दूर, लागत भी नहीं निकलती.विभागीय अधिकारी किसानों के प्रति उदासीन
यह पूरा मामला विभागीय उदासीनता और जवाबदेही की कमी को दर्शाता है. न तो विभाग की ओर से समय-समय पर निरीक्षण किया जाता है और न ही पंचायतों द्वारा किये गये कार्यों की समीक्षा होती है. ऐसे में पंचायत प्रतिनिधियों और संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका को नकारा नहीं जा सकता. बिना उपयोगिता प्रमाण पत्र दिए हुए भी पंचायतों को बार-बार मरम्मत के लिए राशि भेजना सरकारी धन के दुरुपयोग का बड़ा उदाहरण है. ग्रामीणों के बार-बार शिकायत करने के बावजूद न तो किसी उच्चस्तरीय जांच बैठायी गयी है और न ही दोषियों पर कोई कार्रवाई हुई है. यह चुप्पी भी जिला प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़ा करती है.राजनीतिक लाभ का साधन बनी नलकूप योजना
पंचायत स्तर पर यह योजना अब राजनीतिक लाभ का साधन बन चुकी है. मरम्मत कार्य में अपने लोगों को ठेका देना, फर्जी बिलों के जरिये सरकारी धन की निकासी और बिना उपयोगिता रिपोर्ट दिये राशि हजम कर लेना आम होता जा रहा है. कई जगह तो नलकूप के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं यानि कागज पर नलकूप दिखाये जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में वे हैं ही नहीं. 164 नलकूपों का वर्षों से बंद पड़ा रहना, बिना ऑपरेटरों के नलकूपों का संचालन, फर्जी आंकड़े, और उपयोगिता प्रमाण पत्र का अभाव ये सब मिलकर एक बहुत बड़ी प्रशासनिक विफलता की ओर इशारा करते हैं. यह न केवल राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, बल्कि किसानों का सरकारी व्यवस्था से विश्वास भी डगमगा रहा है. जब तक इस व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और नियमित निगरानी नहीं जोड़ी जाती, तब तक यह योजना भी अन्य योजनाओं की तरह भ्रष्टाचार की बलि चढ़ती रहेगी.समस्या के प्रति पल्ला झाड़ रहे जिम्मेदार
लघु सिंचाई विभाग के कार्यपालक अभियंता रंजीत कुमार से इस बाबत सवाल किया गया तो वे गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ते नजर आये. लघु सिंचाई विभाग के कार्यपालक ने कहा कि नलकूप की देखरेख व ऑपरेटर रखना पंचायत के मुखिया का काम है. उन्होंने कहा कि पंचायत को दी गयी राशि के लिए लगातार उपविकास आयुक्त की अध्यक्षता में पंचायत के मुखिया और पंचायत सचिव के साथ बैठक की गयी. लेकिन अभी तक उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया. ऐसे में अगले किस्त की राशि देना संभव नहीं है. नलकूप योजना का जिम्मा अब पंचायती राज व्यवस्था के तहत आ गया है. हम केवल तकनीकी सहयोग दे सकते हैं, कार्यान्वयन अब पंचायत के माध्यम से होता है. यदि उपोगिता प्रमाण पत्र नहीं आता है, तो अगली किश्त नहीं दी जायेगी.
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