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buxar news : राजस्व महाभियान : कर्मचारियों से अधिक निजी मुंशी रहे सक्रिय

buxar news : रैयतों के न बैठने की और न ही पीने के पानी की थी पर्याप्त व्यवस्था

बक्सर. राजस्व विभाग द्वारा चलाये जा रहे राजस्व महाभियान के तहत सदर सीओ प्रशांत शांडिल्य के नेतृत्व में दो विशेष शिविर का आयोजन किया गया. ये शिविर जासो पंचायत सरकार भवन और कमरपुर में आयोजित किये गये, जिनका उद्देश्य ऑनलाइन जमाबंदी में सुधार से संबंधित समस्याओं का समाधान करना था. जब प्रभात खबर की टीम जासो पंचायत सरकार भवन पर आयोजित शिविर का जायजा लेने पहुंची, तो देखा गया कि भवन में पहले से ही चुनाव आयोग का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य इवीएम से संबंधित प्रक्रिया चल रही थी. ऐसे में दोनों कार्यों के एक साथ चलने से न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित हो रही थी, बल्कि आम रैयतों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. शिविर स्थल पर रैयतों की भीड़ देखी गयी, जो शहर के विभिन्न वार्डों से आये हुए थे. लोग अपने दस्तावेजों के साथ घंटों लाइन में लगे रहे. भीषण गर्मी और पानी की समुचित व्यवस्था न होने के कारण कई लोग असुविधा में दिखे. हालांकि, उनकी समस्याओं को सुनने और समाधान करने में राजस्व विभाग के कर्मचारी लगे रहे, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि राजस्व कर्मचारी से अधिक संख्या में उनके साथ आये निजी मुंशी ही फील्ड में अधिक सक्रिय नजर आये. ये मुंशी न सिर्फ रैयतों को फॉर्म भरने और दस्तावेज तैयार करवाने में मदद कर रहे थे, बल्कि कुछ मामलों में वे खुद दस्तावेज लेकर रैयतों से बात करते दिखे. इससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या सरकारी व्यवस्था में निजी मुंशी की भूमिका इतनी प्रभावशाली होनी चाहिए. शिविर में कुल 584 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से अधिकांश ऑनलाइन जमाबंदी में नाम, खाता संख्या, रकबा आदि में सुधार से संबंधित थे. इसके अतिरिक्त कई लोग नामांतरण, रसीद वितरण जैसे मुद्दों को लेकर भी आवेदन देने पहुंचे थे. वहीं देखा गया कि जो जमांबदी रैयतों के घर पर पहुंचाना था उस जमांबदी को इसी तरह नीचे फेंक दिया गया था. अपनी जमांबदी को खोजने के लिए रैयत परेशान थे. इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जनसुविधा का जिस स्तर पर ध्यान रखा जाना चाहिए था, उसमें स्पष्ट रूप से खामियां नजर आयीं. न तो पर्याप्त बैठने की और न ही पीने के पानी की व्यवस्था थी. शिविर में आये बलि मिश्रा ने बताया कि राजस्व महाभियान का उद्देश्य भले ही सराहनीय हो, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत तभी सुधरेगी, जब कार्यप्रणाली में सुधार लाया जायेगा और निजी मुंशियों की अनौपचारिक भूमिका को सीमित कर सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही बढ़ायी जायेगी, तभी रैयतों का भरोसा व्यवस्था पर बना रहेगा.

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