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भागवत कथा श्रवण से तन व मन दोनों पवित्र हो जाता है : गोविंद कृष्ण

भागवत कथा सुनने से मनुष्य तन और मन दोनों पवित्र होता है. पवित्र मन में ही ईश्वर का वास होता है. नारद की सहायता से इस भागवत की रचना व्यास जी ने की थी

चौसा. भागवत कथा सुनने से मनुष्य तन और मन दोनों पवित्र होता है. पवित्र मन में ही ईश्वर का वास होता है. नारद की सहायता से इस भागवत की रचना व्यास जी ने की थी. जिससे भक्ति ज्ञान वैराग्य पुष्ट हो, सबसे पहले नारायण ने ब्रम्हा को भागवत सुनाया था. इसके बाद ब्रम्हा जी ने नारद को सुनाया. जिसे नारद ने व्यास जी को सुनाया. नारद से कथा सुनने के बाद व्यास ने उसे सुकदेव को बताया और सुकदेव ने परीक्षित को हरिद्वार में कथा सुनाई. आखिरकार क्यों सात दिन सुनने के लिए बताया गया है. क्या हम सब सात दिन ही जीने वाले हैं, आठवां दिन कोई नहीं है. बोले कि कैसा भी पापी व्यक्ति हो अगर वह भागवत की कथा सुने तो सात दिन में वह पवित्र हो जाता है. इसलिए आसपास यदि भागवत कथा हो रहा हो तो वहां जरूर जाना चाहिए. क्योंकि भागवत कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते है. उक्त बातें रामपुर में चल रहे भागवत कथा सुनाते हुए वृन्दावन के कथावाचक गोविंद कृष्ण महाराज ने राजा परीक्षित का प्रसङ्ग सुनाते हुए कहा. आगे कहा कि दुनिया में किसी प्राणी को पता नहीं होता कि उसकी मृत्यु कब होगी, लेकिन पांडव वंश के राजा परीक्षित को श्राप मिला था कि ठीक सातवें दिन सर्प के डसने से उसकी मौत होगी. अपनी मौत की तारीख निश्चित जानकर राजा परीक्षित ने शुकदेव महाराज से श्रीमद्भागवत कथा सुनी. कथा समाप्त होने के सातवें दिन तक्षक नाग ने फूलों की माला के रूप में महल के भीतर प्रवेश किया और राजा के गले में पहनाते ही अपने असली रूप में आकर राजा को डस लिया. कथा सुनने के प्रभाव से राजा परीक्षित को मोक्षधाम की प्राप्ति हुई. दुराचारी कंस का अंत से ब्रजमंडल में दौड़ी खुशी की लहर

चौसा. प्रखंड के रामपुर में श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में चल रही रासलीला के अंतिम दिन वृंदावन की रासलीला मंडली द्वारा अत्याचारी कंस वध प्रसंग का मंचन किया गया. कलाकारों ने अत्याचारी कंस के विभिन्न कृत्यों के मंचन करते हुए भगवान श्री कृष्ण की लीला का भी शानदार मंचन कर श्रद्घालुओं का मन मोह लिया. लीला में दिखाया गया कि कंस को जब यह भरोसा हो गया कि श्रीकृष्ण ही उसके परम शत्रु हैं. तो उसने श्रीकृष्ण को मारने का बहुत उपाय किया. लेकिन जब किसी उपाय में सफलता नहीं मिल पाई तो उसने एक योजना के तहत श्रीकृष्ण व बलराम को अपने राजमहल बुलाया. प्रभु भी इस बात को जान गए कि कंस का अंत समय आ गया है और उन्हें उसका वध करना है. इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ मथुरा के लिए चल देते हैं. ब्रज से कंस के राजमहल के बीच भगवान श्रीकृष्ण ने अक्रुरजी को ज्ञान दिया व रजक धोबी, माली, दर्जी, हाथी सहित कई का उद्धार भी किया. फिर दोनों भाइयों ने कंस के सारे अभिमान को चूर किया. श्रीकृष्ण ने अपने एक ही प्रहार से अत्याचारी कंस का अंत कर दिया.

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