बक्सर. पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार के निर्वाण तिथि पर नयी बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में चल रहे 56वें सिय-पिय मिलन महोत्सव के चौथे दिन शुक्रवार को अन्य दिनों की भांति विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये गये.
श्रीराम चरितमानस के सामूहिक नवाह्न परायण से कार्यक्रम का शुभारंभ सुबह में हुआ, तो देर रात श्रीराम लीला के मंचन से विराम दिया गया. इस दौरान श्रीकृष्ण लीला, श्रीराम कथा एवं भगवान श्रीराम व जानकी की झांकी के साथ श्री मिथिला का सीताराम विवाह पद गायन हुआ, जिसमें मिथिलावासियों के गाये गीतों से माहौल मिथिलामय हो गया. वहीं दमोह की संकीर्तन मंडली द्वारा नौ दिवसीय अष्टयाम संकीर्तन जारी रहा. सुबह से लेकर देर रात चले इन भक्ति कार्यक्रमों में दर्शक गोता लगाते रहे. इस बीच दिन में श्रीकृष्ण लीला में भीष्म प्रतिज्ञा एवं श्रीराम लीला में सीता जन्म, विश्वामित्र आगमन एवं अहिल्या उद्धार प्रसंग का मंचन किया गया.भीष्म ने लिया आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा
श्रीकृष्ण लीला के भीष्म प्रतिज्ञा प्रसंग में देवव्रत ने आजीवन ब्रह्मचर्य का कठिन प्रतिज्ञा लेकर सबको चौंका दिया. गंगा के स्वर्ग चले जाने के बाद शांतनु को निषाद कन्या सत्यवती से प्रेम हो जाता है. वे सत्यवती के प्रेम में व्याकुल रहने लगते हैं. महाराज शांतनु की इस दशा को देखकर देवव्रत को चिंता होती है. जब उन्हें मंत्रियों द्वारा पिता की इस प्रकार की दशा होने का कारण पता चलता है तो वे निषाद राज के घर पहुंचकर निषाद से कहते हैं कि हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शांतनु के साथ कर दें. जवाब में निषादराज कहते हैं कि आप हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी हैं, सो राज्य का ताज तो आपको मिलेगा और सत्यवती के पुत्र आपके दास होंगे. इस पर देवव्रत कहते हैं कि मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी पुत्री के गर्भ से जन्म लेने वाला बालक ही राज्य का उत्तराधिकारी होगा. कालांतर में मेरी कोई संतान आपकी पुत्री के संतान का अधिकार छीन न पाये इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजन्म अविवाहित रहूंगा. उनकी इस प्रतिज्ञा को सुनकर निषाद हाथ जोड़कर कहते हैं कि ””हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है.”” इतना कहकर निषादराज ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मंत्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया और महाराज शांतनु से शादी हो गयी.सीता जी के जन्म से जनकपुर में खुशी
रामलीला में दिखाया जाता है कि जनकपुर में सुखाड़ के कारण मिथिला में हाहाकार मच जाता है. इससे महाराज जनक चिंतित होते हैं. बारिश के देवता इंद्र की कृपा के लिए ऋषि-मुनियों के सलाह पर वे खेत में हल चलाते हैं. हल चलाते समय खेत में गड़े एक कलश से फाल टकरा जाता है. जिसकी खुदाई करने पर उस कलश से एक कन्या निकलती है. उसी कन्या का नाम सीता रखा जाता है. सीता के जन्म के बाद जनकपुर में खुशी का माहौल हो जाता है. दूसरी ओर यज्ञ की रक्षा के लिए महर्षि विश्वामित्र महाराज दशरथ के पास अयोध्या पहुंचते हैं. अयोध्या नरेश से महर्षि विश्वामित्र यज्ञ रक्षार्थ श्रीराम व लक्ष्मण की मांग करते हैं. महाराज इंकार कर देते हैं. इसके बाद गुरु वशिष्ठ के समझाने पर महाराज दशरथ जी दोनों भाइयों को भेजने पर राजी होते हैं. वहां से श्रीराम व लक्ष्मण को लेकर महर्षि विश्वामित्र बक्सर पहुंचते हैं और ताड़का व सुबाहु का वध कर सफलता पूर्वक यज्ञ संपन्न कराते हैं. यह के बाद महाराज जनक के आमंत्रण पर धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए दोनों भाइयों संग जनकपुर के लिए रवाना होते हैं. रास्ते में पत्थर बनी अहिल्या का प्रभु श्रीराम उद्धार करते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

