8 अप्रैल-बक्सर-ट्रवल शूटर-1 अधिवक्ता दिग्विजय कुमार सिंह से बातचीत फोटो-11-दिग्विजय कुमार सिंह वरीय अधिवक्ताप्रश्न 1-मैं पत्नी से अलग रहना चाहता हूं क्या करु?-संतोष कुमार, राजपुर उत्तर-आप कुटुंब न्यायालय में अगर पत्नी राजी हो, तो विवाह विच्छेद का संयुक्त आवेदन दे सकते हैं अन्यथा तलाक का मुकदमा उसी न्यायालय में दाखिल कर सकते हैं.प्रश्न 2-मेरे पिता पैतृक संपत्ति को मेरे एक भाई के प्रभाव में आकर बरबाद कर रहे हैं, क्या करना चाहिए?-रंजन कुमार, चौसाउत्तर-आप अपने हिस्सेदारी के लिए अपने क्षेत्राधिकार के व्यवहार न्यायालय में बंटवारा का मुकदमा दाखिल कर अपनी हिस्सेदारी अलग करा सकते हैं. अगर आपके अपने हिस्से से अधिक जमीन की बिक्री कर दिये हैं, तो आप इन कबालों को रद्द कराने के लिए उसी मुकदमे में अनुतोष प्राप्त कर सकते हैं.प्रश्न 3-अगर दुर्घटना के दिन वाहन वीमित नहीं था, तो वैसी परिस्थिति में पीड़ित के परिवार को हर्जाना कैसे दिलाया जा सकता है?-रिंकी कुमारी, धनसोईउत्तर-अगर वाहन दुर्घटना के पूर्व किसी भी बीमा कंपनी से वीमित था, तो वैसी परिस्थिति में उसी बीमा कंपनी से अंतरिम राहत का दावा किया जा सकता है.प्रश्न 4 -सड़क दुर्घटना में हुए मौत के बाद बीमित व्यक्ति को क्या लाभ मिलता है? इसके लिए दावा कैसे किया जा सकता है-ललन ठाकुर, बक्सरउत्तर-सड़क दुर्घटना में अगर कोई व्यक्ति अपंग हो जाये या मौत हो जाये, तो उसके लिए सरकारी राहत देने का प्रावधान है.अपंग होने पर तत्काल 25 हजार रुपये की राशि और मृत्यु होने पर 50 हजार रुपये का अंतरिम राहत बीमा कंपनी से मिल सकता है.दुर्घटना के दिन मृतक की आमदनी एवं भविष्य की आमदनी को जोड़ कर तथा उसके व्यक्तिगत खरचे की राशि घटा कर उम्र के हिसाब से भुगतान किया जायेगा. इसमें राहत राशि की कोई सीमा नहीं है.प्रश्न 5-आकस्मिक मौत और हादसे में मौत या अपंग होने पर सरकारी लाभ देने का क्या प्रावधान है? -मनीष कुमार, इटाढ़ीउत्तर-आकस्मिक मौत पर अथवा अपंग होने की स्थिति में सरकारी लाभ प्रति व्यक्ति चार लाख रुपये तक देने का प्रावधान है. इसके लिए संबंधित क्षेत्र के बीडीओ, सीओ तथा श्रम अधिकारी की अनुशंसा के बाद राशि सरकार द्वारा आवंटित होती है. साथ ही हादसे के तुरंत बाद राहत के लिए अथवा अंतिम संस्कार के लिए भी राशि दी जाती है. इसकी प्रक्रिया से गुजरना होता है.प्रश्न 6-चिकित्सक ने मेरा एक ऑपरेशन गलत तरीके से कर दिया. इसके लिए हर्जाना का दावा कैसे हो सकता है? और क्या प्रावधान है-संजय कुमार, नावानगरउत्तर-माननीय उच्च न्यायालय द्वारा चिकित्सकों की सेवा को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत रखा गया है. ऐसी परिस्थिति में गलत ऑपरेशन करने पर उपभोक्ता न्यायालय में अधिकतम 20 लाख रुपये तक का हर्जाने का दावा कर सकते हैं. साथ ही अगर मौत होती है, तो चिकित्सक के खिलाफ अन्य कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है और न्यायालय में इसके लिए मामले दायर किये जा सकते हैं.प्रश्न 7-प्लेटफॉर्म पर बने गड्ढे में गिर जाने से मेरा हाथ टूट गया है क्या करें?-रंजीत कुमार, बक्सरउत्तर- अगर किसी रेलवे प्लेटफॉर्म पर बने गड्ढे में गिर जाने से हाथ-पैर टूट जाता है, तो दो वर्षों के भीतर उपभोक्ता फोरम न्यायालय में परिवाद दाखिल किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त रेलवे कोर्ट में भी मामले दायर हो सकते हैं. इसके लिए जरूरी है कि यात्रा टिकट, गवाह और यात्रा के कारणों के दस्तावेज आदि प्रस्तुत किये जायें. प्रश्न 8-मेरे घर के पास सरकारी सड़क है, जिस पर लगे पेड़ की जड़ें मेरे दीवार में घुस गयी हैं और दीवार कमजोर हो रही है. इसके लिए क्या करें?-गौतम सिंह, चक्की उत्तर-इसके लिए वन विभाग के अधिकारी के पास आवेदन दिया जा सकता है. अगर वन विभाग संतोषजनक कार्य न करें, तो फिर संबंधित क्षेत्र के अनुमंडल पदाधिकारी के यहां फरियाद की जा सकती है. इसके लिए विरोधी पक्ष पर धारा 133 के अंतर्गत कार्रवाई का प्रावधान है, जिसमें सजा और कैद दोनों संभावित है.प्रश्न 9-सड़क पर चलने के क्रम में अगर किसी वाहन से टकरा कर किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो उसके हर्जाना का दावा कैसे हो सकता है?-मोहित कुमार, बक्सरउत्तर-सड़क पर चलने के क्रम में हादसे होने पर गाड़ी के बीमा कंपनी से लाभ लिया जा सकता है. इसके लिए दुर्घटना करनेवाली गाड़ी के खिलाफ ट्रैफिक थाने में मामला दर्ज कराया जा सकता है, जहां से गाड़ी जब्ती और बीमा कंपनी से राहत राशि लिये जाने तक की कार्रवाई संभव है.प्रश्न 10-जमीन के विवादों के कारण आम दिनचर्या प्रभावित हो जाती है. क्या ऐसे विवादों के लिए कोई सुलह का रास्ता नहीं है?-कोमल प्रसाद, डुमरांवउत्तर-जमीन के विवादों से दोनों पक्ष के लोग परेशान होते हैं. अगर विवादों से बचने के लिए दोनों पक्ष चाहे, तो क्षेत्र के संबंधित थाने में जाकर आपसी सहमति पर समझौता तैयार किया जा सकता है, जिससे विवाद खत्म हो जायेगा और न्यायिक परेशानियों से मुक्ति भी मिल जायेगी.हमें भी कुछ कहना हैडायवर्सन पर धूल से मुक्ति दिलाने का नगर पर्षद करें प्रयासप्रो. अनिरुद्ध सिंह प्राध्यापक महात्मा बुद्ध इंटर कॉलेज के सचिव और प्राध्यापक प्रो. अनिरुद्ध सिंह कहते हैं कि पुलों के टूटने के बाद दोनों डायवर्सनों पर इतना धूल उड़ता है कि कपड़े गंदे हो जाते हैं. स्कूल-कॉलेज में पढ़ने जाने के लिए सुबह में जब छात्र-छात्राएं निकलते हैं, तो धूल से उनके कपड़े गंदे हो जाते हैं. इसके लिए जरूरी है कि नगर पर्षद पानी का छिड़काव दोनों डायवर्सनों पर करे. इसके लिए अगर नगर पर्षद चाहे, तो टैंकर की जरूरत नहीं पड़ेगी. नहर में बह रहे पानी को छोटे मोटर से खींच कर सड़क पर पानी का छिड़काव करवा सकती है. धूल के कारण न सिर्फ स्कूली बच्चे, बल्कि आमजन को भी परेशानी होती है. डायवर्सन के आसपास रहनेवाले इलाकों में भी धूल का हिस्सा दिन भर उठता रहता है और लोग परेशानी महसूस करते हैं. डायवर्सन पर जिस तरह कच्चा छोड़ दिया गया, अगर वैसा नहीं छोड़ा जाता तो निश्चित रूप से धूल की समस्या नहीं होती. बरसात के दिनों में इस डायवर्सन पर गुजरना मुश्किल होगा. इसके अतिरिक्त फाल्स बिजली बिल की गंभीर समस्या शहर के उपभोक्ताओं को झेलनी पड़ती है. खर्च करें या न करें बिजली बिल मनमाना विभाग को देना पड़ता है. गोल मिर्च हो गया लोगों के जीवन से गोल बसंत कुमार किराना व्यवसायी किराना व्यवसायी बसंत कुमार कहते हैं कि महंगाई इतनी बढ़ गयी है कि 20 हजार रुपये से प्रतिमाह कम कमानेवाले संकट में जी रहे हैं. सिर्फ तीन साल का आंकड़ा देखें, तो 350 रुपये से 400 रुपये प्रति किलो बिकनेवाली गोल मिर्च की कीमत 960 रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक प्रति किलो हो गयी है. आलम यह है कि गोल मिर्च लोगों के जीवन से ही गोल हो गया है और अब न गोल मिर्च लोग खाते हैं और न ही खरीदते हैं. हर घर में इसका प्रचलन ही खत्म होता जा रहा है. गाहे-बगाहे लोग 10 रुपये से लेकर 20 रुपये तक में छोटी पुडि़या लेकर खाने को स्वाद दे देते हैं. न सिर्फ गोल मिर्च, बल्कि अन्य किराना सामान के दाम में भी काफी इजाफा हो गया है. यूं कहा जाये, तो बढ़ती महंगाई की जड़ में बेरोजगारी है. अगर रोजगार रहेगा, तो हर हाथ को पैसे रहेंगे और फिर महंगाई फुर्र हो जायेगी. महंगाई के कारण आम लोगों की दिनचर्या प्रभावित हो गयी है. यही हाल गरीबों की थाली से रहर दाल जाने का भी है. रहर दाल के साथ-साथ अन्य किराना सामग्रियों की भी कीमतें आसमान छू रही है. गरीब तबका सबसे ज्यादा परेशान है. क्योंकि जिस तरह महंगाई बढ़ी उस तरह छोटे-छोटे काम कर पेट पालनेवाले लोगों का पारिश्रमिक नहीं बढ़ा और पारिश्रमिक न बढ़ने से उनकी खरीद की क्षमता अपेक्षा अनुरूप नहीं बढ़ी. पांच-सात साल पहले की महंगाई ऐसी थी कि लोग बरदाश्त कर लेते थे और उस महंगाई को झेल लेते थे. क्योंकि तब की महंगाई और प्रति व्यक्ति आमदनी दोनों में बहुत ज्यादा का फासला नहीं था.
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