बक्सर : जिले की हवा में यहां के जर्जर वाहन जहर घोल रहे हैं. यह जहर सांसों से फेफड़ों में पहुंचकर जिंदगियों को लील रहा है. इस जहर को रोकने के लिए सरकार कई कानून भी बना रही है. लेकिन, जिले के मातहतों की लापरवाही और आमलोगों की जागरूकता के अभाव में इस पर पूरी तरह अंकुश लगाना एक चुनौती भरा काम है. इस चुनौती को स्वीकार करने की पहली कड़ी जिले के डीटीओ कार्यालय के अधिकारियों की है. लेकिन दुखद यह है कि जिस पर ज्यादा भरोसा रहता है वही दगाबाज साबित हो जाता है.
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शहर की आबोहवा में जहर घोल रहे जर्जर वाहन
बक्सर : जिले की हवा में यहां के जर्जर वाहन जहर घोल रहे हैं. यह जहर सांसों से फेफड़ों में पहुंचकर जिंदगियों को लील रहा है. इस जहर को रोकने के लिए सरकार कई कानून भी बना रही है. लेकिन, जिले के मातहतों की लापरवाही और आमलोगों की जागरूकता के अभाव में इस पर पूरी […]
इसका उदाहरण मंगलवार को डीटीओ कार्यालय में प्रभात खबर अखबार की टीम के पहुंचने पर मिला. कार्यालय के किसी भी कर्मी ने जिले की सड़कों पर चले रहे वाहनों की संख्या तक बताने में असमर्थता जतायी. वाहनों से संबंधित किसी भी तरह की सूचना देने में वे नाकाम रहें. सभी कर्मचारियों ने ऑफलाइन और ऑनलाइन की बात कहकर सड़कों पर फर्राटा भर रहे वाहनों की जानकारी देने से कन्नी काट ली.
हाल ऐसा कि सांस रोक कर चलना पड़ता है सड़क पर
नगर के कई ऐसे चौक-चौराहे हैं, जहां आप खुली हवा में सांस तक नहीं ले सकते. आपको अपनी सांस थाम लेनी होगी वरना आप आपकी सांसें जहरीली गैसों से भर गुब्बारे की तरह फुल जायेंगी और आपकी मौत तक हो सकती है.
इन जगहों में गोलंबर का नाम पहले आता है. यहां ट्रकों और अन्य वाहनों का आवागमन ज्यादा है. धूल और खराब वाहनों के धुएं से भरा यह जगह हवा में जहर घोलता है. इसके अलावा किला मैदान के पीछे वाला हिस्सा है.
यहां कूड़े की डपिंग होती है. पहले इस रास्ते से लोग गुजरते थे लेकिन इस रास्ते में कूड़ा डपिंग के कारण यहां गुजरना लोगों ने छोड़ दिया है. लेकिन आश्चर्य यह कि यहां की बस्तियों में आज भी लोग दमघुटने के बाद भी रहने को विवश हैं. इसे नप की मानवीय हीनता से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है. इसके अलावे पुलिस चौकी भी एक ऐसा जगह है जहां जीप, टेंपो और बस स्टैंड हैं.
पूरे दिन धूल और वाहन के धुएं से राहगीरों का चलना मुश्किल हो जाता है. बहरहाल, शहर अपने हालात पर चल रहा है. खुद की सुरक्षा के लिए लोग दिल्ली की तर्ज पर नाक पर मास्क लगाना अब शुरू कर दिये हैं. यदि अभी प्रशासन से लेकर आमजन तक नहीं चेते तो बक्सर को दिल्ली की हवा बनने से नहीं रोका जा सकता.
डंपिंग ग्राउंड पर ही फूंका जाता है कचरा
कूड़े कचरे का निस्ताकरण करने के लिए नगर पर्षद के पास प्लान तैयार है. प्रशासन ने इन्हें बनाया था तो क्रियान्वयन करने के लिए मगर बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. लिहाजा शहर में जगह-जगह डंपिंग ग्राउंड से लेकर शहर भर में कूड़े में आग लगाकर होता है निस्तारण.
जिस कारण पर्यावरण प्रदूषित होता है. शासन के निर्देश और एनजीटी की सख्ती के बाद कूड़े का सही ढंग से निस्तारण नहीं किया जाता है. वहीं शहर में निजी अस्पतालों में बायो मेडिकल कचरे का निस्तारण करने की भी कोई योजना नहीं है.
इस कारण निजी अस्पताल से निकले बायो मेडिकल कचरे शहर की नालियों में फेंके जाने से प्रदूषण बढ़ने का खतरा बढ़ गया है. नाडिल, सीरिंज, पट्टियां, प्लास्टर के अलावे ऑपरेशन से निकलनेवाला कचरा नालियों में बहा दिया जाता है. बायो मेडिकल कचरा सड़कों की पटरियों पर भी फेंका जाता है.
क्या कहते हैं लोग
इसके लिए जितना लापरवाह प्रशासन है उससे ज्यादा लापरवाह आम आदमी है. पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकने की जिम्मेदारी सबकी है. हर आदमी को पेड़ लगाना चाहिए. खराब वाहनों को स्वयं ही छोड़ देना चाहिए. प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. सरकार को इस पर कोई ठोस नीति अपनानी होगी.
धीरेंद्र कुमार चौधरी, समाजसेवी, मल्लाह टोली, बक्सर
अधिसंख्य लोग 15 वर्षों से अधिक पुरानी गाड़ियों को धड़ल्ले से चला रहे हैं. इसकी जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है. यदि जांच अभियान चलाया भी जाता है तो केवल जुर्माना का आंकड़ा दिखाने के लिए. प्रशासन के लोग स्वयं ऐसे जगहों पर खड़ा होकर दिखाएं जहां आम आदमी पूरे दिन धूल और धुएं में काम करता है.
राहुल राज, समाजसेवी, स्टेशन रोड, बक्सर
सरकार एवं सभी संबंधित स्थानीय विभाग प्रदूषण कम करने के उपाय करें चाहे व स्थानीय स्तर पर हो या वैश्विक स्तर पर तभी मानव जाति का अस्तित्व बचा रहेगा. किला के पीछे डंपिंग कूड़े को अक्सर जलाया जाता है और यह काम नगर पर्षद के स्तर पर होता है. इससे बक्सर की हवा जहरीली होती जा रही है.
प्रियंका कुमारी, शिक्षिका, बुधनपुरवा, बक्सर
तमाम राजनीतिक वादों एवं सरकारी योजनाओं के बावजूद प्रदूषण अपना विकराल रूप धारण करते जा रहा है. इससे पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक कुप्रभाव पड़ेगा और हमारी पीढ़ी को विनाशकारी मूल्य चुकाना पड़ेगा. लोगों में इस समस्या को लेकर िचंता बनी हुई है.
राजेश कुमार शर्मा, शिक्षक, ठठेरी, बक्सर
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