बक्सर : 42 लाख 41 हजार 24 रुपये की लागत से बना मुक्ति धाम जीर्णोंद्धार की बाट जोह रहा है. शहर के चरित्रवन स्थित गंगा घाट के किनारे छह शैया वाले लकड़ी चालित शव गृह मूलभूत सुविधाओं से अछूता है. जबकि यहां प्रतिदिन 40 शव शाहाबाद के सभी जिलों समेत पड़ोसी जिला गाजीपुर व बलिया से भी आते हैं.
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सुकून तलाशती ”अंतिम विदाई”
बक्सर : 42 लाख 41 हजार 24 रुपये की लागत से बना मुक्ति धाम जीर्णोंद्धार की बाट जोह रहा है. शहर के चरित्रवन स्थित गंगा घाट के किनारे छह शैया वाले लकड़ी चालित शव गृह मूलभूत सुविधाओं से अछूता है. जबकि यहां प्रतिदिन 40 शव शाहाबाद के सभी जिलों समेत पड़ोसी जिला गाजीपुर व बलिया […]
मगर लाखों रुपये के खर्च के बावजूद भी शव के साथ पहुंचे लोगों को बैठने की व्यवस्था तक नहीं है. बरसात में शव को शवदाह गृह के अंदर जलाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं है. नगर पर्षद की उदासीनता व विभागीय लापरवाही की भेंट चढ़ी शवदाह गृह का शेड गायब है. लिहाजा शव खुले आसमान के नीचे जलाये जाते हैं. यहां तक कि गंगा किनारे तक जाने के लिए घाट तक नहीं बने हैं.
लोग घुटने भर गंदे कीचड़ से होकर गंगा का जल आचमन करने जाते हैं. जबकि छह शैया वाले लकड़ी चालित शवदाह गृह 2011 में 42 लाख 81 हजार 24 रुपये खर्च कर बनाया गया था. दूरदराज से पहुंचे शव का दाह संस्कार करने वाले लोगों का कहना है कि चापाकल व सामुदायिक भवन नहीं होने के चलते रात में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. शवदाह गृह का करकट उखड़ जाने के कारण शव को खुले आसमान के नीचे जलाया जाता है.
जबकि श्मशान घाट पर सांसद क्षेत्र विकास योजना वित्तीय वर्ष 2015-16 में 6 लाख 76 हजार 200 रुपये की राशि से चबूतरा व शेड का निर्माण कराया गया था. मगर यह भी जर्जर हालत में है.सामुदायिक भवन की दीवारें जगह-जगह ध्वस्त हो गयी हैं. जिस कारण स्थानीय दुकानदारों ने सामुदायिक भवन में बांस-बल्ला लगाकर लोगों का प्रवेश वर्जित कर दिया है, ताकि किसी को इससे नुकसान न पहुंचे. छत जर्जर है, दीवारें जगह-जगह टूट गयी है. बावजूद इसके नगर पर्षद का ध्यान इस तरफ नहीं है.
समस्या
शव के साथ पहुंचे लोगों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं
लोगों की बेबसी
स्थानीय लोगों का कहना कि यहां आना तो बहुत कम होता है, तो हम इसकी शिकायत विभाग से क्यों करें. वहीं इस कार्य में लगे लोगों का कहना कि हम तो रोज यहां काम करते हैं, हम लोगों को परेशानी हो रही है
बोले लोग, गंगा के घाट तक जाने के लिए गंदगी के बीच से होकर पड़ता है गुजरना
गंगा के किनारे श्मशान घाट पर मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. शवदाह गृह से गंगा के घाट तक जाने के लिए लोगों को गंदगी के बीच से होकर गुजरना पड़ता है.
पोंगा बाबा
-कचरा-पाकी से परेशान होने के कारण लोग गंगा में स्नान करने से कतराते हैं. साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं है. जबकि लाखों रुपये शव का रजिस्ट्रेशन करने से नगर पर्षद को हर माह प्राप्त होता है.
मंटू पांडेय
-गंगा किनारे घाट नहीं होने के कारण लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. साथ ही पानी पीने के लिए एक भी चापाकल नहीं है, जिससे यहां शव जलाने पहुंचे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
छोटेलाल पांडेय
-शौचालय व पीने के पानी का व्यवस्था नहीं होने के कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. शौचालय जो बना भी है वह उद्घाटन से पहले ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गया है.
क्या कहते हैं अधिकारी
स्थानीय जनप्रतिनिधि समस्याओं की मांग को नप के बोर्ड की बैठक में रखें . इसके बाद फैसला लेकर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश की जाएगी.
रोहित कुमार, इओ, नप बक्सर
मल-मूत्र त्यागने की नहीं है व्यवस्था
श्मशान घाट पर शौचालय तो बनाये गये हैं मगर जर्जर हालत में है. शौचालय के दरवाजे टूट चुके हैं. हर जगह गंदगी ही गंदगी दिखायी पड़ता है. इस कारण लोग शौचालय में जाने से कतराते हैं. शौचालय के बगल में एक नया बनाया गया सामुदायिक भवन का उद्घाटन का बांट जोह रहा है. उद्घाटन नहीं होने के पहले ही सामुदायिक भवन को स्थानीय लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है.
जगह-जगह मिली शराब की बोतलें
श्मशान गृह के आसपास जगह-जगह शराब की बोलतें फेंकी हुई थी. जो यह साबित करता है कि शराबबंदी के बावजूद यहां शरीब पी जाती है. जाहिर सी बात है कि यहां खरीद-बिक्री होने के कारण ही शराब की खाली बोतल पड़ी रहती है, जो यह अपने आप में कई सवाल खड़ा कर रहा है. श्मशान घाट पर प्रतिदिन 40 शव जलाये जाते हैं.
एक शव जलाने के लिए नगर पर्षद 30 रुपये रजिस्ट्रेशन शुल्क वसूलती है. जबकि एक शव जलाने में अमूमन चार से पांच हजार रुपये खर्च पड़ता है. शव को जलाने के लिए लकड़ी का रेट तय नहीं है. इस कारण शव का अंतिम संस्कार करने पहुंचे लोगों को लकड़ी लेने के लिए मुंहमांगी रकम देनी पड़ती है.
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