डुमरांव : धनगाई घराना यानी डुमरांव घराना की लगभग चार सौ साल से चली आ रही परंपरा को विमेलश दुबे की तीनों बेटियां संजो रही हैं. पहली बेटी प्रियंबदा दुबे जो संगीत में प्रभाकर की डिग्री प्राप्त करने के बाद एक निजी स्कूल में संगीत का ज्ञान बच्चों को दे रही हैं. दूसरी पुत्री रूपम दुबे 2018 में मैट्रिक परीक्षा दे रही हैं. तीसरी बेटी रितम दुबे दशम वर्ग में है. तीनों अपने पिता के साथ सुबह-शाम रियाज करती हैं. तबले पर सात सुरों को छेड़नेवाले ध्रुपद घराने के धरोहर विमलेश दूबे आज तबले पर थाप देने के बजाय अपने परिवार के भरन पोषण के लिए चार पहिया वाहन के स्टेयरिंग थामे हैं.
पहली बेटी शिक्षा ग्रहण, तबले व हारमोनियम पर रियाज, निजी विद्यालय में संगीत की टीचर के अलावे घर में अपनी माता करुणा देवी के गृह कार्यों में हाथ बंटाती हैं. एक साथ तीनों बेटियों के साथ पूरा परिवार रहता है. प्रियंबदा, रूपम व रितम अपने माता-पिता के सान्निध्य में संगीत की शिक्षा ग्रहण करती हैं.
कार्यक्रम के दरम्यान माता-पिता उपस्थित रहते हैं. प्रदेश में तीन घरानों के नाम ध्रुपदीय संगीत जगत में विख्यात हैं. इनमें दरभंगा घराना, बेतिया घराना व धनगाई यानी डुमरांव घराना शामिल है. डुमरांव की प्रसिद्धि कलिष्ठ बंदिशों के कारण अपने ढंग ही निराली ही कही जायेगी, जिसे वाद्य यंत्रों पर बजा लेना अब भी कठिन है.
विश्व प्रसिद्ध शहनाई उस्ताद भारत रत्न बिस्मिल्ला खां की जन्मस्थली डुमरांव शुरू से ही कला संस्कृति की उर्वरा भूमि रही है. पंडित प्रभाकर दुबे, पंडित गोपालजी दूबे, पंडित नंदलाल जी, पंडित रामजी मिश्र तथा अवधेश कुमार दूबे व उनके दो बेटे प्रोफेसर कमलेश कुमार दुबे उत्तरप्रदेश के लखनऊ के भारतखंडे विश्वविद्यालय में संगीत प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. उनके छोटे बेटे विमलेश कुमार दुबे इस घराने के ऐसे चिराग हैं जो परंपरा को संजोये रखे हैं.
उनके गुरु व पिता की परंपरा के बारे में पूछा जाता है तो उनकी आंखों से बरबस आंसू निकल जाते हैं. पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी आने के कारण दूसरे के यहां मजदूरी करनी पड़ी. आज तक बिहार सरकार द्वारा इस परिवार को कोई सहायता प्रदान नहीं की गयी. बड़ी बेटी अनुमंडल, जिला मुख्यालय सहित राज्य स्तर के कार्यक्रमों में भाग लेने के साथ पुरस्कृत भी हुई है. इसके अलावे दोनों बेटियां भी संगीत के क, ख, ग से लेकर ज्ञ तक संगीत लेने को उत्साहित रहती हैं.