राजगीर.
नालंदा विश्वविद्यालय में आयोजित हिमालयन बॉर्डर : इंडो-नेपाल-तिब्बत की सीमा सुरक्षा और राजनीतिक व सांस्कृतिक संबंधों को लेकर गहन चर्चा की गयी. इस दो दिवसीय सेमिनार में एससीएच : हिमालय की सीमाएं भारत का अपने पड़ोसियों के साथ संबंध विषय को लेकर विचार साझा किया गया है. सेमिनार के दौरान मध्य कमांड प्रमुख द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में पौधारोपण भी किया गया. इस अवसर पर मध्य कमांड के जेनरल ऑफीसर इन कमांड लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता (पीवीएसएम, यूवाइएसएम, एवीएसएम, वाइएसएम) ने भारत और हिमालयीय देशों के संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि भारत से तिब्बत और नेपाल का संबंध आने वाले समय में और प्रगाढ़ होने की संभावना है. वक्ताओं ने कहा कि हिमालय की सीमाएं भारत के पड़ोसी देशों चीन, नेपाल और तिब्बत प्राकृतिक सीमा है. यह पर्वत शृंखला न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि रणनीतिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सुरक्षा रूप से भी भारत के संबंधों को प्रभावित करती है. हिमालय भारत और चीन के बीच एक प्रमुख विभाजन रेखा है. हालांकि वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर विवाद हैं. विशेष रूप से तिब्बत, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख. इसके कारण दोनों देशों के बीच कई बार तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है. नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अभय कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि नेपाल, तिब्बत और भूटान हिमालयी देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध घनिष्ठ रहे हैं. भारत इन देशों के बुनियादी ढांचे और सुरक्षा में सहयोग करता है. जम्मू कश्मीर के लेह लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक नेपाल और तिब्बत की सीमा लगती है. जम्मू-कश्मीर क्षेत्र सीमा विवाद और सुरक्षा संबंधी मुद्दे लगातार बने रहते हैं. हिमालय भारत के भौगोलिक और पर्यावरणीय सुरक्षा में न केवल सहायक है, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को भी प्रभावित करता है, जिससे रणनीतिक और कूटनीतिक महत्व बढ़ जाता है.भारत-तिब्बती परंपराएं, मध्य क्षेत्र और पश्चिमी तिब्बत विषय पर बोलते हुए क्लाउड अर्पी ने कहा कि भारत-तिब्बती परंपराएं धर्म, व्यापार और सांस्कृतिक विनिमय से गहरी जुड़ी हैं. मध्य क्षेत्र (उत्तराखंड, हिमाचल) में बौद्ध मठ, तिब्बती शरणार्थी और व्यापारिक मार्ग महत्वपूर्ण हैं. पश्चिमी तिब्बत में कालापानी-लिपुलेख मार्ग से ऐतिहासिक व्यापार होता था. बौद्ध धर्म, तांत्रिक परंपराएं और तिब्बती भाषा भारत के हिमालयी क्षेत्रों से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हैं.
तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार में नालंदा विश्वविद्यालय की भूमिका की चर्चा करते हुए नालंदा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ प्रांशु समदर्शी ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार का प्रमुख केंद्र था. सातवीं-11वीं शताब्दी के बीच नालंदा के विद्वानों, जैसे आचार्य शांतिदेव, आचार्य पद्मसम्भव और आचार्य अतीश दीपंकर, ने तिब्बत में बौद्ध शिक्षा, तंत्र विद्या और महायान परंपरा का प्रचार किया. उन्होंने संस्कृत ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया. नालंदा के प्रभाव से तिब्बत में महायान और वज्रयान बौद्ध परंपराएं विकसित हुईं, जो आज भी वहां प्रचलित हैं.भारत-नेपाल संबंध ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध के बारे में अशोक सज्जनहार ने कहा कि भारत-नेपाल संबंध इतिहास, धर्म और संस्कृति की गहरी जड़ों से जुड़े हैं. प्राचीनकाल में मिथिला और मगध जैसे क्षेत्रों का घनिष्ठ संबंध था. गौतम बुद्ध और भगवान राम नेपाल और भारत की साझा विरासत हैं.
रंजीत राय ने कहा कि धार्मिक रूप से, नेपाल सनातन हिंदू संस्कृति का केंद्र है, जहां पशुपतिनाथ मंदिर और भारत में काशी व जनकपुर श्रद्धा के स्थल हैं. सांस्कृतिक रूप से, भाषा, भोजन, संगीत और परंपराएं समान हैं. रोटी-बेटी संबंध विवाह संबंधों के रूप में प्रचलित हैं.इतिहास और संस्कृति के इस गहरे संबंध ने भारत-नेपाल को मित्र और सहयोगी बना रखा है. भारत के विकास का इतिहास में हिमालयी सीमा के महत्व की चर्चा करते हुये दिलीप सिन्हा ने कहा कि भारत के विकास में हिमालयी सीमाएं रणनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण रही हैं. प्राचीनकाल में ये व्यापार मार्ग थी. मध्यकाल में रक्षात्मक ढाल बनीं, और अब सुरक्षा व जल स्रोतों का आधार है। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ ) द्वारा बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है. चीन और नेपाल से जुड़ी सीमाएं भू-राजनीतिक चुनौतियां भी प्रस्तुत करती हैं.
भारत-नेपाल सैन्य संबंध की साझेदारी और चुनौतियां विषय को रेखांकित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि भारत और नेपाल के सैन्य संबंध ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ और मजबूत रहे हैं. दोनों देशों की सेनाओं के बीच गोरखा रेजिमेंट जैसी परंपराएं हैं. उनके द्वारा संयुक्त सैन्य अभ्यास जैसे सूर्य किरण का आयोजन किया जाता रहा है. भारत नेपाली सैनिकों को प्रशिक्षण और रक्षा उपकरण भी प्रदान करता है. हालांकि इन संबंधों में चुनौतियां भी हैं. नेपाल की तटस्थ विदेश नीति और भारत के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता कभी-कभी रिश्तों में तनाव पैदा करती है. फिर भी दोनों देशों की रोटी-बेटी की परंपरा और सांस्कृतिक कायम है. दो दिनों तक चली चर्चा में हिमालयी देशों के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों, बुनियादी ढांचे और व्यापार में सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा की गयी.सेमिनार में ये भी रहे मौजूदइस सेमिनार में भारतीय सेना के मध्य कमांड के जेनरल ऑफीसर इन कमांड लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता, लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, मेजर जनरल विकास भारद्वाज, लेफ्टिनेंट जनरल पीएस शेखावत (एएमएस), लेफ्टिनेंट जनरल डीजी मिश्रा, एवीएसएम, अभिजीत हलधर, एडीजी कुन्दन कृष्णनन, मेजर जनरल जॉय बिस्वास, ब्रिगेडियर एन,के सांगवान, कर्नल एनजी शिमरई, लेफ्टिनेंट कर्नल इमरान खान, लेफ्टिनेंट कर्नल शेखावत (एएमएस), मेजर नवीन (एडीसी), कर्नल अंकुर सिंह, कर्नल रश्मी, कर्नल पंकज दहिया, ब्रिगेडियर आरके सिंह, रिशम मेहांग, चंडीगढ़ के कैप्टन अरमान वर्मा एवं अन्य प्रमुख हस्तियां शामिल हुए.
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