बिहारशरीफ. जिले के बेन प्रखंड के बभनियामा गांव की दर्जनों महिलाओं ने मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने की ठानी है. इसलिये यहां घर घर में प्राकृतिक खाद बनेगा. खेती में कुछ नया ईजाद करने और रसायनिक खादों को लात मारकर इसकी जगह प्राकृतिक खाद का उपयोग करेगी़ गांव की कुमारी प्रीति सिन्हा, सुषमा कुमारी, श्यामा देवी, प्रिया देवी, सुनीता देवी, मुन्नी देवी, शिवा कुमारी, अमेरिकी देवी, सुविधा कुमारी सपना कुमारी, शांति देवी, मुनकी देवी, सुधा देवी, मानो देवी, मीना देवी, गिरिजा देवी, देवंती देवी, मीरा देवी, सविता देवी, विद्या भारती समेत दो दर्जन महिला किसानों ने प्राकृतिक खाद बनाने और इसका उपयोग करने का संकल्प लिया है. तत्पश्चात, इस गांव में प्राकृतिक खाद निर्माण के लिये महिलाएं घर की चौखट को लांघ रही है. दो सप्ताह के अंदर तकरीबन 100 क्विंटल प्राकृतिक खाद निमर्ताण करने का संकल्प भी लिया है. मकसद है प्राकृतिक खाद निर्माण में नालंदा को मॉडल जिला बनाने की ताकि यह मॉडल सूबे के अन्य जिले भी अपना सके. जिला कृषि विभाग भी महिलाओं के इस हौसले को उड़ान दे रहा है. 2 जून डेडलाइन व 5 जून को घोषित होगा प्राकृतिक खाद निर्माण गांव : बभनियामा गांव मे तकरीबन पचास घर है. अधिकांश घरों में किसान ही हैं खेतों में रसायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग से चितिंत भी है क्योंकि घट रही उर्वरा शक्ति का सीधा असर फसलों पर हो रहा है. अनुमान की तुलना में फसलों की कम पैदावार से किसानों को घाटा हो रहा है. इसलिये गांव की महिला किसानों ने 2 जून तक 100 क्विंटल प्राकृतिक खाद बनाने का संकल्प भी लिया है. 5 जून तक इस गांव को पूरी तरह से प्राकृतिक खाद निर्माण के लिये मॉडल बनाने का भी निर्णय लिया गया है. शनिवार को प्रज्ञा कृषक हित समूह तिलैया की टीम बेन प्रखंड के बभनियामा गांव पहुंची, जहां आत्मा अध्यक्ष सुविधा कुमारी के घर पर दो दर्जन से अधिक महिला कृषकों को गुंड़ गोबर और मट्ठा व अन्य उत्पादों से प्राकृतिक खाद बनाने का दो दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया. इस दौरान वभनियामा निवासी कृष्णा प्रसाद और उनकी पत्नी बेन आत्मा अध्यक्ष सुविधा कुमारी ने गुंड़ गोबर और मट्ठा से करीब 800 किलोग्राम प्राकृतिक खाद बनाया. मट्ठा में विदयमान लाभकारी बैक्टीरिया मिट्टी के स्वास्थ्य के लिये वरदान : प्रज्ञा कृषक हित समूह तिलैया के अध्यक्ष वीर अभिमन्यु सिंह ने बताया कि गुड़ गोबर और मट्ठा से बनी प्राकृतिक खाद एक तरह का प्रोबायोटिक्स है. इसके प्रयोग से खेतों में लाभदायक जीवाणु की बढ़ोतरी होती है और दूश्मन कीटों फफूंदों का नाश करती है. इसमें युरिया, फास्फेट, डीएपी , आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम, पोटेशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो पौधों की वृद्धि के लिए जरूरी होते हैं. मट्ठा, गुड़ और गोबर के मिश्रण से फसल अवशेषों का प्रबंधन किया जा सकता है. मट्ठा में लाभकारी बैक्टीरिया होते हैं जो मिट्टी की स्वस्थ वृद्धि मंव मदद करते हैं. मट्ठा में एंजाइम होते हैं जो पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देते हैं. मट्ठा का उपयोग करने से रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग कम हो जाता है, जो पर्यावरण के लिए बेहतर है.
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