शेखपुरा. अरियरी प्रखंड के घुसकुरी गांव में पिता की मृत्यू के बाद रूढ़िवादी परंपरा का परित्याग कर चार बेटों और एक बेटी सहित पांच लोगों ने एक साथ मुखाग्नि देकर उन्हें अंतिम विदाई दी. इसके साथ ही पारंपरिक रीति-रिवाजों का त्याग कर विभिन्न कर्मकांडों बाल मुंडन और धूप अगरबती, जालने की परम्परा से दूर रहते हुए परिवार के लोगों ने चौथे दिन श्रदांजलि सभा का आयोजन कर पिता के श्राद्ध कार्य को पूरा किया. जिसकी चर्चा इलाके में जोरों पर हो रही है. दरअसल अरियरी प्रखंड के घुसकुरी गांव निवासी मदन मोहन प्रसाद का निधन 22 अप्रैल की रात को गांव में हो गया. इसके बाद परिवार के लोगों ने उनका दाह संस्कार ही गांव में किया. सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में उनके चार बेटों और एक बेटी ने पिता को मुखाग्नि देकर पिता को विदा किया. इस दौरान मृत्यू के बाद सारे कर्मकांडों का पूरी तरह से परित्याग करते हुए चौथे दिन श्रदांजलि सभा आयोजित की. जिसमे परिवार,रिश्तेदार और गांव के लोग एकत्रित हुए लेकिन इस मौके पर भोज का परित्याग किया गया. केवल जो दूर से लोग पहुंचे थे उनके लिए सादे भोजन की व्यवस्था की गई. इस सम्बन्ध में उनके पुत्र और स्कूल संचालक शशिकांत निराला ने बताया कि मानव सेवा की हमारा मुख्य उदेश्य हैं. दिखावे के कर्मकांड से किन्हीं का भला नहीं होता है. ऐसें में पुरे परिवार के निर्णय से यह संभव हुआ है. पिता संत निरंकारी समाज से जुड़े थे. इसमें परिवार के साथ ही समाज के सभी लोगों का सहयोग मिला. इससे यह बात दिखती है कि कर्मकांड और मृत्यू भोज जैसे रीति रिवाजों का परित्याग लोग करना चाहते हैं. लेकिन लोग इसके लिए हिम्मत नहीं जूटा पाते हैं. शशिकांत ने बताया कि वर्तमान समय में पूर्व की तरह से तेरहवीं और विभिन्न कर्मकांडो की परम्परा का पालन करना वर्तमान में संभव नहीं दिखा रहा है. व्यस्ततम जिन्दगी में काम काज छोड़कर महज दिखावे के रूढ़िवादी परम्परा को ढो रहे हैं.सामजिक कार्यकर्ता कमलेश कुमार मानव ने भी मृत्यू भोज और तेरहवीं तक श्राद्ध कार्य की रुढ़िवादी परम्परा को बोझ बताया और इसे लोगों से त्यागने की अपील की.
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