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मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें किसान

बुआई की सीजन चल रहा है. खाद एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के साथ-साथ अनिवार्य रूप से जैव उर्वरकों का भी समावेश करें.

बिहारशरीफ. बुआई की सीजन चल रहा है. खाद एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के साथ-साथ अनिवार्य रूप से जैव उर्वरकों का भी समावेश करें. इससे लागत में कमी आयेगी और उत्पादन भी अधिक होगी़ प्राकृतिक खेती के जिला निगरानी समिति के सदस्य वीर अभिमन्यु सिंह ने नुरसराय प्रखंड के कठनपुरा गांव में कृषि चौपाल के दौरान कहा कि वैज्ञानिकों के अनुसार खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग हमेशा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर करना चाहिए़ चौपाल में नुरसराय की बीटीएम सुप्रिया भारती ने प्राकृतिक खेती, जैविक खेती, स्वीट कॉर्न, बेबी कार्न, फसल अवशेष प्रबंधन, बीज वितरण योजना, यांत्रीकरण योजना, आत्मा योजना, मृदा जांच, औद्यानिकी फसलों पर अनुदान, पीएम किसान सिंचाई योजना, ड्रिप इरिगेशन एवं स्प्रिंकलर जैसे योजनाओं की जानकारी दी. कम लागत में जैव उर्वरकों से बीजोपचार करें किसान :

गेहूं में एजोटोबैक्टर तथा फास्फेट घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) कल्चर से बीजोपचार करें। 10 से 15 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से प्रयोग करें. बीजोपचार से क्रमशः 15 – 20 प्रतिशत तक नेत्रजन तथा फास्फोरस की बचत होगी. मृदा में रासायनिक उर्वरक जैसे डी.ए.पी., एस.एस.पी., एन.पी.के., विशेषकर (12:32:16) आदि का लगातार प्रयोग करने से भूमि में लगभग 80 से 85 प्रतिशत तक फास्फोरस अनुपलब्ध अवस्था में पड़ा रहता है जो पौधों को आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाता हैं. यदि जैविक उर्वरकों जैसे ट्राईकोडर्मा फफूंदनाशक एवं पी.एस.बी. को प्रति एकड़ 2.0 कि.ग्रा. मात्रा को 100 किलो पुराने गोबर की खाद में मिलाकर एक सप्ताह तक छाया में रखें. 40 प्रतिशत नमी रहने पर अंतिम जुताई के साथ नमी अवस्था में प्रयोग करने से भूमि की दशा में सुधार होती है. रासायनिक उर्वरकों की बचत होगी साथ ही लागत में कमी भी कमी आयेगी.

अंधाधुंध उर्वरकों और कीटनाशी दवाओं का प्रयोग बनी चुनौती :

उन्होंने कहा कि मनमानी तरीके से अंधाधुंध रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशी दवाओं का प्रयोग भारत के लिए चुनौती बन गई है. रसायनिक खेती के भयावह दुष्परिणाम सामने आने लगी है. खेतों से होकर हर घर तक पहुंचाने वाले अन्नदाता वर्तमान ही नहीं बल्कि भावी पीढ़ी को भी बीमार कर रहे हैं. श्री सिंह ने कहा कि किसानों की मेहनत से हमने अन्न का रिकॉर्ड उत्पादन किया है, जिससे देश के लाखों भूखे पेट की रोटी की जरूरत पूरी हुई. लेकिन अब समय आ गया है कि हम क्वालिटी पूर्ण फसलों का उत्पादन करें, ताकि तेजी से पनप रही कैंसर, बीपी और डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव किया जा सके. इसका एकमात्र उपाय ऑर्गेनिक खेती को अपनाना है. उन्होंने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि यदि हमारे देश के किसान समय पर नहीं चेते तो वर्ष 2040 तक 30 प्रतिशत आबादी इन बीमारियों का शिकार हो जाएगी.

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