Biharsharif News: बिहारशरीफ जिले में इन दिनों प्रशासनिक व्यवस्था का अजीब मॉडल देखने को मिल रहा है. सरकारी कार्यालयों के लिए हर महीने लाखों रुपये निजी मकानों का किराया दिया जा रहा है, जबकि जिले में कई सरकारी भवन सालों से खाली और बेकार पड़े हैं. जिला परिषद परिसर में दो बड़े भवन खाली पड़े हैं. पश्चिम छोर पर एक बिल्कुल नया निर्माण, दूसरा पूर्वी उत्तरी छोर पर वह भवन, जहां कभी जिला बंदोबस्त कार्यालय चलता था. दोनों भवन वर्षों से उपयोग के इंतजार में खड़े हैं. शहर के अस्पताल चौक स्थित श्रम कल्याण मैदान का भवन भी लंबे समय से खाली है.
करीब आधा दर्जन भवन खाली
संयुक्त श्रम विभाग का नया कार्यालय सदर प्रखंड परिसर में बन जाने के बाद यह भवन पूरी तरह उपेक्षित हो गया. वियवानी का बीड़ी अस्पताल वर्षों से बंद होने के कारण जर्जर हो चुका है. स्थानीय लोगों के अनुसार इसका उपयोग नहीं होने से यह असामाजिक तत्वों के जमावड़े का अड्डा बनता जा रहा है.
पंचायत राज विभाग की नई इमारत, सदर प्रखंड परिसर के कई भवन इनका भी पूर्ण उपयोग नहीं हो रहा है. सदर अस्पताल परिसर में करीब आधा दर्जन भवन खाली पड़े हैं, जिनमें आसानी से कई विभागों के कार्यालय संचालित किए जा सकते हैं.
इसके बावजूद प्रशासन इन भवनों के उपयोग की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा. इसके उलट, बिना मानक और बिना सुविधाओं वाले निजी मकानों में मोटी राशि खर्च कर वर्षों से सरकारी कार्यालय चलाए जा रहे हैं. स्थानीय लोगों का सवाल है कि जब सरकारी भवन उपलब्ध हैं, तो आखिर निजी मकानों को ही तरजीह क्यों दी जा रही है. यह तो जांच की बात हैं.
स्थानीय लोगों ने क्या कारण बताया
हर महीने लाखों रुपये किराये के रूप में खर्च किए जाते हैं. निजी मकानों में सुरक्षा मानकों की भारी कमी देखने को मिलते हैं. अधिकांश किराये के मकानों में आग सुरक्षा का अभाव, भूकंप रोधी संरचना नहीं, एंबुलेंस और फोरव्हीलर तक पहुंचने की सुविधा नहीं जैसी गंभीर कमियां मौजूद हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई मकान मालिक अपने भवनों में सरकारी कार्यालय खुलवाने के लिए ऊंची पैरवी और मोटी रकम तक खर्च करते हैं. लोगों का आरोप है कि प्रशासन और मकान मालिक की मिलीभगत से किराये का यह खेल वर्षों से चलता आ रहा है.
संकरी गलियों में इसलिए किराये के कई दफ्तर
एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई विभागों में वर्षों से जमे कर्मियों का इन निजी मकान वाले कार्यालयों पर विशेष दबदबा है. उनका कहना है कि वरीय अधिकारियों की नियमित निगरानी से बचने के लिए जानबूझकर उन मकानों को चुना जाता है, जो संकरी गलियों और मुश्किल रास्तों में हों. ऐसे स्थानों पर अधिकारियों का निरीक्षण पहुंचना आसान नहीं होता. लोगों का कहना है कि जब इतने सरकारी भवन खाली पड़े हैं, तो आखिर प्रशासन निजी मकानों को ही क्यों बढ़ावा दे रहा है.
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