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बिहार: मगध का हिमालय के नाम से ये पहाड़ मशहूर, सम्राट अशोक ने गुफा का करवाया था निर्माण, जानिए खासियत

अशोक कुमार, जहानाबाद: बिहार के जहानाबाद जिले में वाणावर पहाड़ है. यह मगध के हिमालय के नाम से मशहूर है. यहां एक मंदिर भी स्थित है. इसे सिद्धनाथ तीर्थ के रूप में जाना जाता है. यह काफी मशहूर है. यहां दूर- दूर से लोग आते हैं.

अशोक कुमार, जहानाबाद: बिहार के जहानाबाद जिले में वाणावर पहाड़ स्थित है. यह धर्म और इतिहास का साक्षी है. यहां बाबा सिद्धनाथ मंदिर स्थित है. सावन के माह में हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन जलाभिषेक करने आते है. संपूर्ण भारत में अनेक प्राचीन शिव मंदिर हैं. लेकिन, जब बात प्राचीनतम शिव मंदिर की हो तो जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड के वाणावर पहाड़ पर स्थित सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर का नाम सर्वप्रथम आता है. इसे सिद्धनाथ तीर्थ के रूप में जाना जाता है. इसे मगध का बाबाधाम भी कहा जाता है. मंदिर महाभारत कालीन जीवंत कृतियों में से एक है. आज भी पुरातन शिल्पकृतियों में महिमामंडित प्राचीन आदर्शों से युक्त पूजन परंपरा को जीवित रखे हुए है. पहाड़ के शिखर पर अवस्थित बाबा सिद्धेश्वरनाथ को नौ स्वयंभू नाथों में प्रथम कहा जाता है. इनकी पूजन कथा शिवभक्त वाणासुर से संबंधित होने के कारण इसे ‘वाणेश्वर महादेव भी कहा जाता है. धार्मिक ग्रन्थ शिव पुराण के अनुसार सोनपुर (सोनितपुर) मगध के महान शासक बाणासुर मंदिर में पूजा अर्चना करता था ,जिसे भोलेनाथ से आशीर्वाद प्राप्त हुआ था ,जिससे उसका पराक्रम दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा था. मंदिर तक जाने के लिए राज्य सरकार ने पताल गंगा इलाके से सीढीयां बनाई है. वही गऊघाट हथियाबोर और बावन सीढिया इलाके से भी मंदिर जाया जाता है. राज्य सरकार ने मंदिर तक जाने के लिये रोपवे निर्माण की स्वीकृति कई वर्ष पूर्व में ही दिया था. लेकिन, अब तक निर्माण नहीं हो सका है.

मगध का हिमालय है वाणावर पहाड़

वाणावर पहाड़ भारतवर्ष के पुरातन ऐतिहासिक पर्वतों में एक है. 1200 फुट ऊंचे वाणावर पर्वत को मगध का हिमालय भी कहा जाता है. यहां सात अदभुत गुफाएं भी बनी हुई है. जिनका पता अंग्रेजों के शासनकाल में चला . इनमें से चार गुफाएं वाणावर पहाड़ एवं बाकी तीन गुफाएं नागार्जुन पहाड़ स्थित है. भारत में पहाड़ों को काट कर बनाई गयी ये सबसे प्राचीन गुफाएं है. पर्यटन के लिहाज से भी ये काफी उपयुक्त स्थान है. ये पर्वत सदाबहार सैरगाह के रूप में प्राचीन काल से ही चर्चित है. किंवदंतियों के अनुसार पर्वत पर बनी गुफाएं प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के ध्यान साधना लगाने के लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनाई गई थी.

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पहाड़ काटकर बनाई गयी है गुफाएं

गया एवं जहानाबाद के सीमा पर स्थित अशोककालीन गुफाओं में कर्ण चौपड़ गुफा, सुदामा गुफा, लोमस ऋषि गुफा, विश्व झोपड़ी गुफा ,वापीक गुफा नागार्जुन गुफा सहित सात गुफायें हैं. जिसे पहाड़ को काटकर बनाया गया था ,आश्चर्य कि बात है कि कर्ण चौपड़ सुदामा और लोमस ऋषि गुफा एक ही चट्टान को काटकर बनाई गई हैं. इनमें से अधिकांश गुफाओं का संबंध मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) से है और कुछ में अशोक के शिलालेखों को देखा जा सकता है. देखने में अद्भुत लगने वाली ये गुफाएं प्राचीन समय की कलाकारी को दर्शाती हैं. गुफा के भीतर तेज आवाज में चिल्लाने पर काफी देर तक प्रतिध्वनियों को सुनकर आने वाले पर्यटक काफी रोमांचित होते हैं.

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सतघरवा के नाम से प्रसिद्ध है वाणावर की गुफाएं

वाणावर पहाड़ में बने गुफाएं सतघरवा के नाम से प्रसिद्ध है गुफाओं के अंदर की गयी पोलिश की चमक आज भी बरकरार है ,गुफाओं के बारे में कहा जाता है की इसका निर्माण सम्राट अशोक एवं उनके पौत्र राजा दशरथ ने बनवाए थे, जो आजीवक समाज को दान में दे दिया था.

मिश्र शैली से गुफाओं का हुआ निर्माण

सुदामा गुफा का निर्माण सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बारहवें वर्ष में आजीवक साधुओं के लिए बनवाया था. इस गुफा में एक आयताकार मण्डप के साथ वृत्तीय मेहराबदार कक्ष बना हुआ है. लोमस ऋषि की विख्यात गुफा का निर्माण भी अशोक ने किया था. इन गुफाओं का निर्माण मिश्र शैली में किया गया है तथा उस समय के भारतीय कारीगरों के उत्कृष्ट कलाकारी एवं वास्तु विशेषज्ञता का परिचायक है. मेहराब की तरह के आकार वाली ऋषि गुफाएं लकड़ी की समकालीन वास्तुकला की नकल के रूप में हैं. द्वार के मार्ग पर हाथियों की एक पंक्ति स्तूप के स्वरूपों की ओर घुमावदार दरवाजे के ढांचों के साथ आगे बढ़ती है. यहां कई गुफाओं के अंदर भी गुफाएं है जहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है. यहां मौजूद कर्ण चौपड़ गुफा को सुप्रिया गुफा भी कहा जाता था. अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 19वें वर्ष में इसका निर्माण कराया था. उस समय के लिखे गये शिलालेख आज भी यहां मौजूद हैं. शिलालेखों के अनुसार इस पहाड़ी को सलाटिका के नाम से भी जाना जाता था. इन गुफाओं का निर्माण भी मिश्र शैली से किया गया है. यहां चिकनी सतहों के साथ एक एकल आयातकार कमरे का रूप बना हुआ है.

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विश्व जोपरी गुफा में दो आयातकार कमरे मौजूद

पहाड़ के ऐतिहासिक सप्त गुफाओं में बनी वापिक गुफा में अंकित तथ्यों से ज्ञात होता है. मंदिर परिक्षेत्र में पाषाण खंडों पर की गयी उत्कीर्ण कलाकृति इस पूरे क्षेत्र को प्राचीन शिव अराधना क्षेत्र के रूप में स्थापित करती है. एक अन्य मत के अनुसार आदिकाल में कौल संप्रदाय का मगध पर जो वर्चस्व था, उसका केन्द्र इसी पर्वत को बताया जाता है. इसकी उत्पत्ति ई.पू. 600 के लगभग मानी जाती है. इन्हें दशरथ द्वारा आजीविका के अनुयायियों को समर्पित किया गया था. विश्व जोपरी गुफा में दो आयातकार कमरे मौजूद हैं, जहां चट्टानों को काटकर बनाई गई है जो अशोका सीढियां के द्वारा पहुंचा जा सकता है. नागार्जुन के आसपास की गुफाएं बराबर गुफाओं से छोटी एवं नयी है. गोपीका गुफा और वापिया का गुफा लगभग 232 ईसा पूर्व में राजा दशरथ द्वारा आजीविका संप्रदाय के अनुयायियों को समर्पित की गई थी. वाणावर पहाड़ में अवस्थित इन गुफाओं को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है. जिस विशाल चट्टान को खोदकर गुफाएं बनाई गई है, उस पर लोगों की आवाजाही बनी रहती है.

Sakshi Shiva
Sakshi Shiva
Worked as Anchor/Producer from March 2022 to January 2023 at DTV Bharat TV channel. Have worked with Sixth Sense weekly newspaper from August 2021 to January 2022. Have done 21 days internship at Clinqon India as a Social media intern. Post Graduated in Journalism and Mass Communication from Central University of South Bihar, Gaya. Graduated in English from Purnea Mahila College, Purnea.

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