Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों के बाद एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) और बिहार इलेक्शन वॉच ने नवनिर्वाचित 243 विधायकों की पृष्ठभूमि का विश्लेषण किया है. रिपोर्ट कहती है कि इस बार 130 विधायक यानी 53 प्रतिशत ने अपने शपथपत्र में आपराधिक मामलों का जिक्र किया है.
पिछले चार चुनावों की तुलना में यह संख्या कम हुई है, लेकिन पैमाना अब भी चिंताजनक है. 2020 के विधानसभा चुनाव में 68 प्रतिशत विजेताओं ने अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि घोषित की थी. इससे पहले तीन चुनावों में भी यह औसत 55–60 प्रतिशत के आसपास रहा.
कमी दर्ज हुई है, पर संख्या अब भी बताती है कि राजनीति में अपराध का दबदबा अपनी जगह बना हुआ है.
कौन से दल से कितने ‘दागी’ विधायक जीते?
राजनीतिक दलों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि लगभग हर पार्टी से ऐसे उम्मीदवार जीते हैं जिन पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. भाजपा के 89 विजेताओं में से 43 (48%) ने अपने ऊपर मामले घोषित किए हैं. जदयू के 85 में से 23 (27%) विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ केस हैं.
आरजेडी इस मामले में 56 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर खड़ी है 25 में से 14 विजेताओं पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. एलजेपी (रामविलास) के 19 में से 10 (53%) और कांग्रेस के छह में से तीन (50%) विजेताओं की पृष्ठभूमि भी ऐसी ही है.
सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा एआइएमआईएम का है पांच विजेताओं में से चार (80%) आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं. जबकि सीपीआई(एम) और अन्य छोटे दलों के चुनिंदा विधायकों पर भी गंभीर धाराओं के केस दर्ज हैं.
गंभीर आपराधिक मामलों में भी हल्की गिरावट, लेकिन चिंता बरकरार
243 नवनिर्वाचित विधायकों में से 102 यानी 42 प्रतिशत गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी हैं. 2020 में यह संख्या इससे भी ज्यादा थी, 241 विजेताओं में से 123 (51%) पर गंभीर आरोप थे. इस बार छह विधायकों ने हत्या से संबंधित मामलों का उल्लेख किया है. हत्या के प्रयास जैसे गंभीर आरोप 19 विजेताओं पर हैं. महिलाओं के खिलाफ अत्याचार से जुड़े मामलों का भी रिपोर्ट में जिक्र है.
आंकड़े गिरावट दिखाते हैं, लेकिन एक बार फिर साबित करते हैं कि बिहार की राजनीति में ‘साफ छवि’ वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने के बजाय लगातार सीमित ही बनी हुई है.
करोड़पति विधायकों की बाढ़, औसत संपत्ति 9.02 करोड़
अगर एक तरफ आधे से अधिक विधायक ‘दागी’ हैं, तो दूसरी तरफ 90 प्रतिशत विधायक ‘करोड़पति’ हैं. आय के स्तर पर बिहार विधान सभा नए रिकॉर्ड बना रही है. 243 में से 219 विधायकों की घोषित संपत्ति करोड़ों में है और औसत संपत्ति 9.02 करोड़ रुपये है.
यह स्थिति बिहार जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य में राजनीति और पैसे के संबंधों को और स्पष्ट करती है.
नए विधायकों की शिक्षा और उम्र का प्रोफाइल
नई विधानसभा के चेहरे पढ़े-लिखे तो हैं, लेकिन संख्या संतुलित नहीं है. 35 प्रतिशत विधायकों की योग्यता पांचवीं से 12वीं के बीच है, जबकि 60 प्रतिशत स्नातक हैं. पांच ने डिप्लोमा घोषित किया है और सात सिर्फ साक्षर हैं.
उम्र के लिहाज से 41–60 आयुवर्ग वाले विधायक सबसे अधिक हैं 243 में से 143 (59%)। 25–40 आयुवर्ग के युवा उम्मीदवार सिर्फ 38 (16%) हैं. जबकि 62–80 आयु वर्ग के 62 विधायक सदन में पहुंचने वाले वरिष्ठ चेहरों की मौजूदगी बढ़ाते हैं.
महिलाओं की भागीदारी में मामूली बढ़ोतरी
नई विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है, लेकिन बहुत कम. 243 में से 29 महिलाएं विधायक बनी हैं कुल सीटों का सिर्फ 12 प्रतिशत. 2020 में यह आंकड़ा 11 प्रतिशत था.
बिहार की कुल जनसंख्या में आधी आबादी होने के बावजूद महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी इस धीमी गति से आगे बढ़ रही है. क्या यह संकेत बदलाव का है?
एडीआर की रिपोर्ट एक साथ दो तस्वीरें सामने रखती है एक तरफ आपराधिक मामलों वाले विधायकों की संख्या कम हुई है, जो उम्मीद जगाती है दूसरी तरफ करोड़पति विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो राजनीति में बढ़ती धन-संपदा और संसाधनों की भूमिका को दिखाती है.
राजनीति में अपराध और पैसे का दबदबा किस हद तक लोकतंत्र को प्रभावित करता है, यह सवाल एक बार फिर चुनाव परिणामों के साथ सबके सामने है.

