भोजपुर जिले की सात विधानसभा सीटों के लिए तीसरे चरण में 28 अक्तूबर को मतदान होना है. यहां सात सीटें हैं. इनमें से चार सीटों पर भाजपा का कब्जा है. तीन सीटें महागंठबंधन के पास हैं. गंठबंधन के नये समीकरण में दलों का जमीनी आधार बदला है. हर दल में टिकट को लेकर असंतुष्टों का खेमा भी है, जो चुनौती खड़ी कर रहा है. टिकट से वंचित दो विधायक भी मैदान में हैं. मुद्दों और नारों की लहर के बीच मतदाताओं की चुप्पी टूट नहीं रही है. इन सीटों की स्थिति बताती यह रिपोर्ट.
आरके नीरद
वोटर चुप हैं. उम्मीदवार परेशान. नारों और वादों की धूम के बीच भी ऐसा कुछ नहीं है, जिसमें किसी दल या उम्मीदवार की लहर जैसी कोई बात है. चुनावी मुद्दा भले विकास हो, पूरा चुनावी गणित जातीय आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण और उसमें सेंधमारी की रणनीति पर ही टिका हुआ है. जिन सीटों पर किसी जाति का एक से अधिक उम्मीदवार हैं, वहां वोटों के बिखराव को आधार बना कर विरोधी दल अपनी स्थिति के आकलन में लगे हैं.
भोजपुर जिले की सात विधानसभा सीटों में से चार पर करीब-करीब सीधे और तीन पर त्रिकोणात्मक संघर्ष के आसार हैं. तीन सीटों पर भाकपा-माले, तीन पर सपा और एक पर जनाधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने में लगे हैं. दो सीटों पर बागी उम्मीदवार मुकाबले को संघर्षपूर्ण बना रहे हैं. तीन पूर्व विधायकों शाहपुर से भाजपा की मुन्नी देवी तथा जगदीशपुर से राजद के भाई दिनेश और बड़हरा से उसकी के राघवेंद्र प्रपात सिंह का टिकट काटा है. मुन्नी देवी का टिकट काट कर उनके जेठ को दिया गया है. भाई दिनेश निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि राघवेंद्र प्रपात सिंह सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. राजद ने एक सीट संदेश पर अपने पिछले उम्मीदवार का टिकट काट कर उनके छोटे भाई को मैदान में उतारा है. यहां पूर्व मंत्री और विधायक के परिवार के सदस्य भी चुनाव मैदान में हैं और पुराने संबंधों को भी चुनाव में आजमा रहे हैं. पूर्व मंत्री शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी को राजद ने टिकट दिया है. जदयू के पूर्व विधायक सुनील पांडेय की पत्नी गीता पांडेय लोजपा से इस बार तरारी से एनडीए की उम्मीदवार हैं.
पिछले चुनाव में जिले की सात में से पांच सीटों पर भाजपा-जदयू गंठबंधन को जीत मिली थी. इनमें से चार सीटें भाजपा को और एक सीट जदयू को मिली थी. राजद ने दो सीटों पर कब्जा किया था. गंठबंधन की नये समीकरण की दृष्टि से देखें, तो महागंठबंधन के पास तीन और एनडीए के पास चार सीटे हैं.
इस बार भाजपा व महागंठबंधन में राजद ने पांच-पांच सीटें अपने पास रखी हैं. एनडीए में रालोसपा व लोजपा तथा महागंठबंधन में कांग्रेस और जदयू एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
जातीय समीकरण हावी
मतदाताओं में खामोशी है.कोई खुल कर समर्थन या विरोध की बात नहीं कर रहा. सबको मतदान के दिन का इंतजार है. यह चुप्पी उम्मीदवारों के लिए बेचैनी पैदा करने का सबब बनी हुई है.
(इनपुट : आरा से मिथिलेश)
त्रिकोणीय है मुकाबला
शाहपुर विधानसभा सीट भाजपा के पास है. पिछले चुनाव में भाजपा की मुन्नी देवी यहां से जीती थीं. इस बार उनके पति के बड़े भाई विशेश्वर ओझा को पार्टी ने मैदान में उतारा है. हालांकि टिकट कटने के बाद भी मुन्नी देवी के बागी रूप अख्तियार नहीं करने की खबर है. लिहाजा विश्वेश्वर ओझा के लिए मुन्नी देवी बाधा नहीं हैं. राजद ने यहां पूर्व मंत्री और समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी उर्फ मंटू तिवारी को टिकट दिया है. राहुल पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं जनाधिकार मंच के तेजनारायण यादव यहां तीसरा कोण बना रहे हैं. उन्हें यादव मतों का ज्यादा भरोसा है. इस सीट से कुल 14 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. यहां कुल 290967 वोटर हैं, जिन्हें मतदान के दिन का इंतजार है.
अगिआंव में तीन कोण
अगिआंव अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. इस बार इस सीट से 14 उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं. पिछली बार इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार शिवेश कुमार चुनाव जीते थे. भाजपा को इस बार इस सीट पर जीत की उम्मीद है. वहीं महागंठबंधन इस सीट को झटकने की तैयारी में है. भाजपा ने इस बार भी उन्हें यहां से उम्मीदवार बनाया है. वह तीन बार यहां से विधायक चुने जा चुके हैं. लिहाजा क्षेत्र की जनता के बीच यह जाना-पहचाना नाम व चेहरा है. वह पूर्व केंद्रीय मंत्री मुनि राम के बेटे हैं. जदयू ने इस बार प्रभुनाथ राम को मैदान में उतारा है. वह युवा हैं और पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं माले के मनोज मंजिल मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने में जुटे हुए हैं. इस वजह से यहां चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है.
सपा ने मुकाबले को दिलचस्प बनाया
जगदीशपुर सीट राजद की है. पिछली बार उसके उम्मीदवार दिनेश कुमार सिंह उर्फ भाई दिनेश यहां से विधायक चुने गये थे, मगर बार पार्टी ने उन्हें टिकट से बेदखल कर दिया है. पार्टी ने इस बार राम विष्णु सिंह को उम्मीदवार बनाया है. इसे लेकर भाई दिनेश के समर्थकों में भारी आक्रोश है. महागंठधन इस चुनौती से निबटने की रणनीति पर गंभीरता से काम कर रहा है. वहीं एनडीए में यह सीट रालोसपा के खाते में है और उसने राकेश मेहता उर्फ संजय मेहता उसके उम्मीदवार हैं. रालोसपा को पिछड़ी जाति के साथ-साथ अगड़ी जाति के भी वोट पाने की उम्मीद है. वहीं सपा के उदय सिंह भी भाग्य आजमा रहे हैं. भाई दिनेश भी भी चुनाव मैदान में हैं. वह इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं.
बागियों ने बढ़ाई मुश्किल
बड़हरा विधानसभा सीट से पिछली बार राजद के राघवेंद्र प्रताप सिंह चुनाव जीते थे. महागंठबंधन में इस बार भी यह सीट राजद के खाते में है, लेकिन उसने राघवेंद्र प्रताप सिंह की जगह सरोज यादव को मैदान में उतारा है. वहीं राघवेंद्र प्रताप सिंह भी सपा के टिकट पर मैदान में हैं. भाजपा ने आशा देवी को टिकट दिया है. वह इससे पहले जदयू में थीं. सपा और भाजपा दोनों के उम्मीदवार एक ही जाति के हैं. इससे महागंठबंधन को वोटों के बिखराव का भरोसा है. इस सीट से इस बार 12 उम्मीदवार हैं.
जदयू की जीती सीट कांग्रेस के खाते में, माले ने मुकाबले को बनाया रोचक
भोजपुर जिले में तरारी एक मात्र विधानसभा सीट है, जो पिछले चुनाव में जदयू की झोली में गयी थी. यहां से उसके उम्मीदवार के तौर पर सुनील पांडेय चुनाव जीते थे. इस बार वह जेल में हैं. लिहाजा खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. दूसरी ओर महागंठबंधन में यह सीट जदयू ने कांग्रेस को दे दी है. यानी पिछला चुनाव जीतने वाले नेता और पार्टी दोनों इस बार मैदान से गायब हैं. सुनाल पांडेय ने इस बार इस सीट से अपनी पत्नी गीता पांडेय को मैदान में उतारा है. उन्हें लोजपा ने टिकट दिया है. यानी पांडेय के समर्थक इस बार महागंठबंधन के खिलाफ वोट करेंगे.
कांग्रेस ने डॉक्टर अखिलेश सिंह को उम्मीदवारी दी है. जिले में कांगेस को मिली यह अकेली सीट है. पिछले चुनाव में जिले में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी. लिहाजा महागंठबंधन के वोट बैंक की मदद से वह इस बार यहां खाता खोलने में पूरी ताकत झोंक दी है. माले ने सुदामा प्रसाद को यहां टिकट दिया है. प्रसाद की उपस्थिति से यहां चुनावी मुकाबला त्रिकोणात्मक हो सकता है.
विरोध के बीच तीसरा कोण
पिछली बार इस सीट से भाजपा के संजय टाइगर जीते थे. वह इस बार भी उम्मीदवार हैं. महागंठबंधन ने यहां से अरुण कुमार को उम्मीदवार बनाया है. पिछले चुनाव में उनके भाई विजेंद्र यादव भी उम्मीदवार थे. माना जा रहा है कि पिछली बार आपस में ही वोटों के बंटवारे का दोनों भाइयों को नुकसान हुआ था. इस बार राजद ने विजेंद्र यादव को विश्वास में लेकर अरुण कुमार पर दावं लगाया है. वहीं भाकपा माले ने राजू यादव को मैदान में उतार कर उनके लिए चुनौती पेश की है.
पुराने उम्मीदवारों पर भरोसा
आरा सीट पर भाजपा को ज्यादा भरोसा है. इस सीट से पिछली बार उसके अमरेंद्र प्रताप सिंह चुनाव जीते थे. वह इस बार भी मैदान में हैं. महागंठबंधन में यह सीट राजद के खाते है. उसने मो नवाज आलम को उम्मीदवार बनाया है. आलम पिछली बार भी राजद के प्रत्याशी थे और कड़े मुकाबले में हार गये थे. इस लिहाज से पिछले विधानसभा चुनाव के दोनों प्रतिद्वंदी इस बार भी आमने-सामने हैं. वहीं भाकपा माले ने क्यामुद्दीन अंसारी को टिकट देकर मुसलिम वोटों में बिखराव की चुनौती राजद को दी है. हालांकि पिछली बार के मुकाबले इस बार राजद अपने वोट बैंक में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहा है. इस बार इस सीट पर कुल 11 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. इस क्षेत्र के 301310 उम्मीदवार इनके भाग्य का फैसला करेंगे.
चुनावी फैक्ट
मतदान : 28 अक्तूबर
कुल सीटें : 7
कुल प्रत्याशी : 92
कुल वोटर :1960501
2010 का नतीजा
भाजपा : 4
राजद : 2
जदयू : 1
2015 चुनाव का दृश्य
पार्टी सीटें
एनडीए
भाजपा : 5
लोजपा : 1
रालोसपा : 1
महागंठबंधन
राजद : 5
जदयू : 1
कांग्रेस : 1
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