नाथनगर कबीरपुर स्थित चंपापुर दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र में बुधवार को दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन धर्म की उपासना की गई. जिसमें श्रद्धालुओं ने उत्तरी मंदिर में विराजित तीर्थंकर वासुपूज्य की विशेष अष्टधातु प्रतिमा की मंगल द्रव्य से पूजा की. प्रतिमा का दर्शन कर श्रद्धालु इस दौरान भक्तिभाव से जयकारा लगाते हुए वंदना की. विश्व शांति धारा का प्रथम कलश गौतम हेगड़े, चेन्नैई प्रथम कलश अंकुर गंगवाल, भिलवारा, राजस्थान ने किया .
पुणे महाराष्ट्र के डॉ कल्पेश जैन ने अपने प्रवचन में कहा कि ईच्छा के निरोध का नाम तप है. तप शारीरिक दुख नहीं, बल्कि आनंद की अधिकता का नाम है. ज्ञान के बिना का तप नहीं है. जिससे सुख की वृद्धि हो, वहीं तप है. तप से आत्मा उत्थान और सुख की वृद्धि हाे वहीं श्रेष्ट तप है. कहा कि जैसे तपे बिना स्वर्ण नहीं चमकता, वैसे ही तप बिना आत्मा मुक्त नहीं होती है. तपस्वी महासौभाग्यशाली हैं. साथ ही कहा कि तप मजबूरी नहीं, अत्यंत जरूरी है. आप उपेक्षा नहीं चाहते तो किसी से भी अपेक्षा ना करें. गुरु सिखाते भी हैं और अपने जीवन से दिखाते भी है. थोड़ी सी तारीफ में संतुष्ट होने वाले कभी बड़े कार्य नहीं कर पाते. गिराने वालों को भी उठाना सीखो, बहुत आनंद आएगा. छोटी-छोटी बातों को बड़ा बनाकर लड़ना सज्जनों का लक्षण नहीं है. सफलता के लिए ताकत नहीं सही नियत चाहिए. दूसरों को दोष देने वाला कभी निर्दोष नहीं हो पाता. वहीं सिद्ध क्षेत्र मंत्री सुनील जैन ने कहा कि कल उत्तम त्याग धर्म की आराधना की जाएगी. अपनी बुराई सुनकर नाराज नहीं होना, चाहिए बल्कि उसमें सुधार की सोचना चाहिए. अच्छा बनने के लिए सबसे पहले अच्छी सोच चाहिए. इस अवसर पर पदम पाटनी, जय कुमार काला, अशोक पाटनी, प्रकाश बड़जात्या, सुमंत पाटनी, पवन गंगवाल, संदीप कुरमा वाला, मनोज पाटनी, संजय विनायका, राजेश अजमेरा, पीयूष, आलोक बड़जात्या, नवीन छाबड़ा, अजय जैन, राम जैन आदि उपस्थित थे.
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