महाशय ड्योढ़ी, सूजापुर-नाथनगर व सन्हौला पाठकडीह दुर्गा स्थान में जिउतिया पारण के साथ सोमवार को मां दुर्गा की पूजा शुरू हो गयी, जो 18 दिनों तक चलेगी. बांग्ला विधि-विधान से कलश स्थापित की गयी. गाजे-बाजे के साथ मुख्य पुरोहित समेत सात पंडितों ने गंगा तट पर कलश में जल भरा और दुर्गा स्थान में विधि-विधान से स्थापित किया. कौड़ी लूटने के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ महाशय ड्योढ़ी परिसर में कौड़ी लुटायी गयी. कौड़ी लूटने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. मान्यता के अनुसार घर में लूटी कौड़ी रखना शुभ माना. इसी दिन बांग्ला बहुल मोहल्लों के हर घर में कलश स्थापित की गयी. साथ ही महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगा कर सुख-समृद्धि के लिए मां दुर्गा का आह्वान किया. पूर्व पार्षद देवाशीष बनर्जी ने बताया कि महाशय परिवार के निजी देवोत्तर ट्रस्ट की उपाध्यक्ष डॉ दीपछंदा घोष, अमिताभ घोष, मधुमिता घोष का योगदान रहा. पंडित शुभाशीष लाहेरी, दिलीप भट्टाचार्य, मिट्ठू आचार्य, ज्योति भट्टाचार्य, प्रलय भट्टाचार्य, मधु यादव, सार्वजनिक पूजा समारोह समिति के महासचिव दुर्गा पूजा महासमिति के संरक्षक देवाशीष बनर्जी, लालटू बनर्जी, आशीष घोष, सजल सरखेल, तरुण मंडल का सहयोग मिला. बांग्ला विधि में भी अलग पूजन पद्धति महाशय ड्योढ़ी, सूजापुर व सन्हौला के पाठकडीह में पूजा पारंपरिक ढंग से होती है. जिउतिया पर्व के साथ ही दुर्गापूजा की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. यह प्रक्रिया बोधन घट निकालने से शुरू होती है, जिसमें देवी दुर्गा को आह्वान किया जाता है. इसमें श्रद्धालु गंगा नदी से कलश में पानी भर कर लाते हैं. फिर इसे पूजा स्थान में स्थापित किया जाता है. यही प्रक्रिया चतुर्थी व सप्तमी को भी की जाती है. चतुर्थी और सप्तमी को (केला बहू) नौ पत्ते को मां के रूप में गंगा में स्नान करा कर स्थापित की जाती है. सप्तमी के दिन आसपास की महिलाएं पुष्पांजलि करती हैं. अष्टमी को महाभोग व आरती और नवमी को पूजन होता है. दशमी को श्रद्धालु पूजन के बाद मैया की प्रतिमा विसर्जित करते हैं. प्रतिमा विसर्जन के लिए गंगा नदी में नाव पर मां को सात बार चक्कर लगवाया जाता है. इसके बाद महिलाएं सिंदूर खेला करती है और पुरुष एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं.
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