भागलपुर शहर और इसके कुछ दूर ममलखा की दो तस्वीरें देखकर पहली नजर में कोई भी यही अंदाजा लगायेगा कि शायद हाल में कोई भूकंप आया होगा. क्योंकि, एक ओर सड़क इतनी गहरी दरारों में टूटी है मानो धरती फट गयी हो और दूसरी ओर रास्ता इस तरह उखड़ा पड़ा है कि लगता है जैसे किसी तेज झटके ने उसे चीर दिया है, लेकिन सच इससे बिल्कुल अलग है. यह किसी भूकंप का असर नहीं है, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता का नतीजा है. दोनों तस्वीरें यह बताने के लिए काफी है कि प्रशासनिक उदासीनता लोगों की जिंदगी पर कितना भारी पड़ रही है. प्राकृतिक आपदा के सामने इंसान बेबस जरूर हो जाता है, लेकिन नुकसान की मरम्मत तो प्रशासन की जिम्मेदारी है. अफसोस की बात यह है कि हालात बिगड़ने के बाद भी जिम्मेदार विभागों ने इन सड़कों को दुरुस्त कराने की कोई सुध नहीं ली. नतीजतन, रोजाना आने-जाने वाले आम लोगों को खतरों और परेशानियों से भरे रास्तों पर चलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. गंगा किनारे धंसी सड़क, शासन-प्रशासन चुप मानिक सरकार घाट जाने वाली सड़क गंगा किनारे धंसी है. लंबे-चौड़े दरार के साथ धंसान और नीचे बैठा हिस्सा देखने वालों को सहमा देता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि कई महीनों से शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई. बाढ़ में उजड़े रास्ते की सुध नहीं इधर, मध्य विद्यालय और घोषपुर फुटबॉल मैदान जाने वाला रास्ता बाढ़ के दौरान पूरी तरह उखड़ गया था. सड़क जगह-जगह से टूटकर पपड़ी की तरह छितराई पड़ी है. बच्चों, खिलाड़ियों और ग्रामीणों को रोजाना जान जोखिम में डालकर इस राह से गुजरना पड़ता है. प्रकृति ने तो किया अपना काम, जिम्मेदारों ने नहीं आपदा आने पर नुकसान हो जाना स्वाभाविक है, लेकिन उसे ठीक करना जिम्मेदार विभागों का काम होता है. यहां हालात सुधारने की जगह उपेक्षा ने संकट को और बढ़ा दिया है.
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