इस बार कार्तिक अमावस्या 20 अक्तूबर को दोपहर 03.44 बजे शुरू होकर 21 को संध्या 05.55 बजे समापन होगा. 21 अक्तूबर को रात्रि अमवस्या नहीं रहने के कारण स्थिर सिंह लग्न और महानिशीथ काल की पूजा संभव नहीं होगी. जबकि 20 अक्तूबर को प्रदोष काल भी मिलेगा और अमावस्या की रात भी रहेगी. ऐसे में दिवाली का त्योहार इस बार 20 अक्तूबर सोमवार को मनाया जायेगा. इसी दिन भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की पूजा होगी.
पंडित अंजनी शर्मा ने बताया कि दीपावली एवं लक्ष्मी-कूबेर पूजा 20 अक्तूबर सोमवार को मनाया जायेगा. पंचांग के अनुसार, दीपावली हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनायी जाती है. दिवाली के दिन लक्ष्मी-गणेश की संयुक्त पूजा के लिए तीन शुभ मुहूर्त रहेंगे. पहला शुभ समय प्रदोष काल में रहेगा, जो संध्या 5 :46 बजे से रात्रि 8:18 बजे तक रहेगा. वृषभ काल में भी पूजा कर सकते हैं. यह संध्या 7:08 बजे से रात्रि 9:03 बजे तक रहेगा. यह मुहूर्त भी अत्यंत शुभ माना जाता है. दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त संध्या 7: 08 बजे से 8:18 बजे तक है. पूजन के लिए लगभग एक घंटा 11 मिनट का श्रेष्ठ समय मिलेगा.
पंडित समीर मिश्रा ने बताया कि कार्तिक कृष्ण आमावस्या (दीपावली) त्योहार पर नूतन लक्ष्मी, गणेश, खाता-बही, कलम-दवात आदि के पूजन का विधान है. इन दिनों पहली अप्रैल एवं पहली जनवरी से खाता शुरू किया जाता है.
पंडित शंकर मिश्रा ने बताया कि यजमान को पूर्वाभिमुख बैठाये. उसके सामने एक श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर गौर-गणेश, कलश, नवग्रह तथा षोडशमातृका का मंडल बना लें. कलश के पीछे एक छोटी चौकी, पीढ़ा आदि उच्च आसन रखकर लाल कपड़ा बिछायें. उस पर गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति (सोना-चांदी या मिट्टी की) स्थापित करें. मूर्ति के आगे एक पान पर चांदी या सोने का एक सिक्का गंगाजल में धोकर रख दें. सिक्का के बगल में तीन स्थानों पर थोड़ा-थोड़ा अक्षत पूंज रखें. इन अक्षतों की ढेरी पर श्री महालक्ष्मी, महालक्ष्मी व महासरस्वती की पूजा की जाती है. मूर्ति के बगल में एक नये वस्त्र को बिछा कर एक नये कागज की बही पर रोली से उस पर स्वस्तिक बना कर एक छोटे पान पर थोड़ी दही लगा कर बही में चिपका दें. उसी के पास कलम दवात या पेन में मौली बांध कर रख दें. फिर नये कपड़े की एक थैली या रोली से स्वस्तिक बनाकर उसमें पांच गांठ हल्दी, पांच कंजा, पांच कमलगट्टा, पांच दूब एवं पांच सिक्का रख कर बही के पास रख दें. गद्दी के पास की दीवार पर स्वस्तिक बनावे. शुभ-लाभ, रोली या सिंदूर से लिखें. साथ ही वहां श्री गणेशाय नम:, श्रीमहालक्ष्म्यै नम: लिख दें. उसी दीवार पर पंचदशी (15) का यंत्र भी बना दें. यह लक्ष्मी दाता यंत्र है. इसको सिद्ध कर लेने ऋण एवं दरिद्रता का नाश हो जाता है. साथ ही धनधान्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. यूं कुछ लोग 20 व कुछ 21 का यंत्र भी बनाते हैं.
————–कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर रविवार को छोटी दिवाली मनायी गयी. इस दिन हरेक घरों के बाहर गोबर के दीये जलाये गये. इस दिन लोग अकाल मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए यम के नाम का दीपक जलाते हैं. दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन को नरक चौदस, रूप चौदस या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था.
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