भागलपुर
मायागंज अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) के शिशुरोग विभाग में दो अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया गया. इस अवसर पर ऑटिज्म बीमारी पर सेमिनार हुआ. विभागाध्यक्ष डॉ अंकुर प्रियदर्शी ने ऑटिज्म के विषय में विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों में ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. ज्यादातर बच्चों में दो वर्ष तक लक्षण दिखाई पड़ने लगता है. सही समय पर ऑटिज्म का पता लगाना बेहद जरूरी है, ताकि जल्द से जल्द उसका उचित उपचार हो सके. उन्होंने कहा कि यदि बच्चा नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया न दे, नजर से नजर न मिलाये. अकेले खेलना पसंद करे, बोलने में देरी हो, एक ही काम बार-बार करता रहे, खिलौने को एक लाइन में सजाता हो, पंजों पर चलने की आदत हो, तेज आवाज जैसे प्रेशर कुकर की सीटी की आवाज से डर जाता हो, तो ये ऑटिज्म के लक्षण हो सकते हैं. ज्यादा मोबाइल देखने से भी बच्चों में ये लक्षण आ सकते हैं. इसलिए बच्चों को मोबाइल से जितना हो सके दूर ही रखें. ऑटिज्म के उपचार में बिहेवियर थेरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी, सेंसरी इंटीग्रेशन और स्पीच थेरेपी काफी कारगर होती है. दवाई की ऑटिज्म में बहुत जरूरत होती है. समाज के हर अभिभावक, स्कूल के शिक्षकों व डॉक्टरों में ऑटिज्म के प्रति जागरूकता आवश्यक है. इन अवसर पर डॉ राजीव कुमार, डॉ राकेश कुमार, डॉ ब्रजेश कुमार, डॉ पीके यादव, डॉ गौरव सहित विभाग के अन्य चिकित्सक व स्टाफ मौजूद रहे.
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