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bhagalpur news. मानसिक स्वास्थ्य की प्रारंभिक पहचान में शिक्षकों की भूमिका अहम : सिविल सर्जन

सदर अस्पताल परिसर स्थित विक्टोरिया बिल्डिंग सभागार में शिक्षकों के लिए एक दिवसीय विशेष प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया

सदर अस्पताल परिसर स्थित विक्टोरिया बिल्डिंग सभागार में शिक्षकों के लिए एक दिवसीय विशेष प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया. इसमें बच्चों और किशोरों में उभरती मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों की पहचान और शुरुआती हस्तक्षेप पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया. कार्यक्रम में जिले के विभिन्न ब्लॉकों से आये 25 शिक्षकों ने विशेषज्ञों से व्यावहारिक व मनोवैज्ञानिक संकेतों की गहन जानकारी प्राप्त की. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) के अंतर्गत सदर अस्पताल के गैर संचारी रोग (एनसीडी) विभाग द्वारा स्कूली बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य विषय पर यह प्रशिक्षण सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक आयोजित की गयी. कार्यक्रम की शुरुआत टीओइएफआइ द्वारा प्रस्तुत प्रेरणादायक ऑडियो-विज़ुअल्स से हुई, जिसमें बच्चों में तनाव, भावनात्मक बदलाव व सहायता की आवश्यकता को प्रभावी रूप से दिखाया गया. सिविल सर्जन डॉ अशोक प्रसाद ने कहा कि शिक्षक विद्यार्थियों के सबसे निकट होते हैं, इसलिए मानसिक स्वास्थ्य की शुरुआती पहचान में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. सत्रों के दौरान डॉ अशोक प्रसाद, एनसीडीओ एवं मनोचिकित्सक डॉ पंकज मनस्वी एवं डीपीएम मणिभूषण झा ने शिक्षकों से संवाद किया. डॉ प्रसाद ने सुझाव दिया कि विद्यालयों में मासिक या द्वि-साप्ताहिक मेंटल हेल्थ पीरियड शुरू किया जाये, ताकि छात्र अपनी परेशानियां साझा कर सके.

मानसिक विकारों के लक्षण पर हुई चर्चा

मुख्य प्रशिक्षण सत्र डॉ सुरभि सिन्हा (मेडिकल ऑफिसर, एनसीडी) द्वारा संचालित किया गया. उन्होंने एंग्जायटी, डिप्रेशन, लर्निंग डिसऑर्डर, डिस्लेक्सिया, कंडक्ट डिसऑर्डर, एडीएचडी, ऑटिज्म, अब्यूज, नेग्लेक्ट और सब्सटेंस यूज डिसऑर्डर जैसे मुद्दों पर विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने करो और ना करो पर जोर देते हुए बताया कि डांटना, कठोर भाषा और तुलना से बच्चे मानसिक रूप से अधिक असुरक्षित हो सकते हैं. साथ ही मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा (पीएफए) के व्यावहारिक चरण भी सिखाये.

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ पंकज मनस्वी ने कहा कि शिक्षकों की भावनात्मक स्थिरता अत्यंत आवश्यक है. बताया कि हाइपरएक्टिव बच्चों की ऊर्जा को खेल, कला और अन्य रचनात्मक गतिविधियों की ओर कैसे मोड़ा जाये. उन्होंने यह भी कहा कि 18 वर्ष की आयु से पहले बच्चों को निजी मोबाइल नहीं देना चाहिए, क्योंकि इसका मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

स्कूल स्तरीय समाधान पर किया मार्गदर्शन

सदर अस्पताल के मनोवैज्ञानिक निशांत आजाद ने सीओटीपीए, किशोरों में नशे की शुरुआत के कारण, पहचान और रोकथाम पर प्रशिक्षण दिया. कहा कि विद्यालयों में नशा-निवारण शिक्षा को एक आवश्यक घटक के रूप में शामिल किया जाना चाहिए.

प्रश्न-उत्तर सत्र में शिक्षकों ने रखे अपने अनुभव

प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंत में प्रश्न-उत्तर सत्र आयोजित हुआ, जिसमें शिक्षकों ने विद्यालयों में देखे गए वास्तविक मामलों पर सवाल पूछे. विशेषज्ञों ने परिस्थिति-अनुरूप समाधान व मार्गदर्शन दिया. डीपीएम मणिभूषण झा ने कहा कि बदलते सामाजिक वातावरण में बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है और ऐसे प्रशिक्षण अत्यंत उपयोगी है.

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