दीपक राव, भागलपुर
कई बार ऐसा हुआ है कि मानसून केरल तट पर जल्द पहुंचा लेकिन देशभर में उसकी गति और बारिश की मात्रा असमान रही. ऐसी स्थिति धान की खेती के लिए अनुपयुक्त है. धान की खेती 60 साल से सक्रिय रूप से कर रहे हैं.
मृगेंद्र सिंह, किसान, शाहकुंड
2009 में मानसून की शुरुआत तो शानदार थी लेकिन जुलाई और अगस्त में देश के बड़े हिस्सों में बारिश में कमी देखी गयी. इस बार भी चैत, बैसाख व जेठ में कम गर्मी व बारिश अधिक हो रही है. कम गर्मी के कारण खेत खरपतवार से भर गये हैं. कीट-पतंगों का प्रकोप बढ़ेगा. इससे परेशानी बढ़ना तय है.राजशेखर, कतरनी उत्पादक किसान, जगदीशपुर
इससे पहले 2009 में यही स्थिति थी और सूखे का सामना करना पड़ा और खरीफ की फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई. इस बार किसानों को सजग रहना पड़ेगा. हालांकि कतरनी की खेती देर से शुरू होती है. 20 फीसदी तक खेती व उत्पादक पर असर पड़ेगा. अभी से चिंता बढ़ गयी है. सुबोध चौधरी, अध्यक्ष, भागलपुर कतरनी उत्पादक संघ कम गर्मी और असमय बारिश के कारण मूंग की फसल अच्छी है, लेकिन धान की खेती पर असर पड़ना तय है. अधिक गर्मी पड़ने से खेत फट जाता था और मिट्टी सूखी हो जाती थी. पानी पड़ने के साथ मिट्टी मुलायम हो जाती थी. गर्मी में कीड़े व खरपतवार मर जाते थे. इस बार खरपतवार अधिक उग आये हैं. खेती से पहले ही परेशानी दिख रही है. 20 फीसदी तक असर पड़ेगा.कृष्णानंद सिंह, धान उत्पादक किसान, कहलगांव व सबौर
पहले मानसून आने व कम गर्मी होने से धान की खेती पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, बशर्ते किसानों को सजग रहना होगा. दरअसल इस क्षेत्र में अब भी लंबी अवधि वाले धान की खेती होती है. केवल मूंग की खेती से अधिक उत्पादक नहीं ले सकेंगे. सीधी बुआई वाले धान की खेती पहले शुरू करना होगा. रोपा करने वाले को अधिक दिक्कत नहीं होगी.
डॉ संजय कुमार, मुख्य वैज्ञानिक, शस्य विज्ञान, बीएयू, सबौरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है