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bhagalpur news. टीएमबीयू में केला के पौधे में होने वाले पनामा रोग से बचाने के लिए फार्मूला तैयार

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में केला के पौधे में होने वाले पनामा रोग के उपचार को लेकर जारी रिसर्च लगभग पूरा होने को है

आरफीन जुबैर, भागलपुर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में केला के पौधे में होने वाले पनामा रोग के उपचार को लेकर जारी रिसर्च लगभग पूरा होने को है. रिसर्च के माध्यम से फार्मूला तैयार किया जा रहा है, ताकि पौधे को रोग से बचाया जा सके. इससे सीमांचल में ज्यादा से ज्यादा किसान केला की खेती से जुड़ सके.

दरअसल, विवि के इस प्रोजेक्ट को डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) के अंतर्गत साइंस एंड टेक्नोलॉजी रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) नयी दिल्ली द्वारा स्टेट यूनिवर्सिटी रिसर्च एक्सीलेंस के तहत चयन किया गया है. पीजी बॉटनी विभाग के शिक्षक डॉ विवेक कुमार सिंह का चयन प्रोजेक्ट के लिए किया गया है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान ने प्रोजेक्ट के लिए 30 लाख रुपये की स्वीकृति प्रदान की है. बताया जा रहा है कि करीब रिसर्च पर दो साल से काम चल रहा है.

केला पौधे के लिए विनाशकारी बीमारी

बताया जा रहा है कि केला के पौधे के लिए पनामा विल्ट रोग मूसा प्रजातियों की सबसे विनाशकारी बीमारियों में से एक बन गया है, जो रोगजनक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम व क्यूबेंस के कारण होता है. ट्रॉपिकल रेस फोर अपनी सभी नस्लों में सबसे रोगजनक है और यह दुनिया भर में वाणिज्यीकृत कैवेंडिश किस्म को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. सीमांचल सहित दुनिया के 10 देशों के 19 प्रमुख उत्पादन स्थलों में फैल चुका है. समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह 2040 तक कुल केला उत्पादन भूमि के 17 फीसदी को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है. इससे वार्षिक 36 मिलियन टन फसल की उपज का नुकसान हो सकता है.

केला के पौधे पर फार्मूला का परीक्षण जारी

पीजी बॉटनी विभाग के कैंपस में कुछ केला का पौध लगाया गया है, इसमें पनामा रोग का असर नहीं होगा. दरअसल, तैयार फार्मूला को पौधे पर परीक्षण किया गया है. डॉ विवेक कुमार सिंह ने बताया कि परीक्षण के बाद लगातार देखा जा रहा है कि केला में लगने वाले पनामा रोग कहीं से प्रभावित नहीं कर रहा है. पौधे बढ़िया ढंग व स्वस्थ है. जड़ की मिट्टी का लगातार परीक्षण किया जा रहा है. कहा कि फार्मूला लगभग तैयार है, लेकिन कुछ बिंदुओं पर काम जल्द ही पूरा हो जायेगा.

अपशिष्ट मशरूम सब्सट्रेट्स और वर्मी कंपोस्ट का उपयोग

पीजी बॉटनी विभाग के शिक्षक सह प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ विवेक कुमार सिंह ने बताया कि रिसर्च में बायोकंट्रोल एजेंट्स, अपशिष्ट मशरूम सब्सट्रेट्स और वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करके एक नयी बायो-फार्मुलेशन विकसित किया जा रहा है. क्योंकि उन घटकों का संयुक्त प्रभाव बहुत अधिक प्रभावी हो सकता है. फ्यूजेरियम विल्ट पर नियंत्रण में बड़ी सफलता दिला सकता है. चूंकि फ्यूजेरियम एक मिट्टी जनित रोगजनक है और इसके रोगजनक स्पोर्स मिट्टी में दशकों तक जीवित रह सकते हैं. ऐसे में पूर्ण नियंत्रण संभव नहीं है. बताया कि इस बीमारी से लड़ने के लिए एक प्रभावी समाधान के रूप में बायोकंट्रोल एजेंटों का उपयोग करना वर्तमान समय की आवश्यकता है. ट्राइकोडर्मा में फ्यूजेरियम के खिलाफ एक शानदार प्रतिकूल गुण मौजूद है और धान की भूसी पर उगे हुए कचरे वाले मशरूम सब्सट्रेट में सिलिका होती है, जो माइक्रोबियल इंटरैक्शन को बढ़ावा देती है. रोगजनक के उपनिवेशण को भी रोकती है. ऐसे शोध से भागलपुर और आसपास के क्षेत्रों के केले किसानों को राहत प्रदान करने में मील का पत्थर साबित होगा.

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