सबौर बिहार कृषि विश्वविद्यालय में तिलहन अनुसंधान की गहन शोध प्रक्षेत्र का मंगलवार को वैज्ञानिकों ने भ्रमण किया. सरसों, अलसी और कुसुम अनुसंधान की प्रगति का व्यापक विश्लेषण किया गया. इसे लेकर हुई बैठक की अध्यक्षता अनुसंधान निदेशक डॉ एके सिंह ने की. इसमें अलसी अनुसंधान के अंतर्गत 17 प्रमुख परीक्षणों की समीक्षा की गयी. यह पाया गया कि वर्ष 2023-24 में बीआरएलएस-109-5 (एंट्री-08) में 53 प्रतिशत तेल सामग्री दर्ज की गयी, जो इसे आगे के परीक्षणों में एक मजबूत दावेदार बनाता है. बर्ड फ्लाई कीट नियंत्रण पर भी ध्यान दिया गया. शोधकर्ताओं ने बताया कि पीले स्टिकी ट्रैप सबसे प्रभावी साबित हुए हैं, जिससे इस कीट के नियंत्रण में महत्वपूर्ण सफलता मिली है. अलसी की उतेरा प्रणाली के लिए नये तकनीकी पैकेज विकसित किये हैं. नैनो यूरिया द्वारा नाइट्रोजन प्रबंधन और विभिन्न धान फसलों के बाद रबी फसलों के तुलनात्मक अध्ययन पर भी शोध किया जा रहा है. कुसुम अनुसंधान में पहली बार स्पाइनलेस और स्पाइनी दोनों प्रकार के पौधे का परीक्षण किया गया. साथ ही कुछ प्रविष्टियों में पीले और सफेद रंग के फूल भी देखे गये. वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि इन प्रविष्टियों को आगे की प्रजनन प्रक्रिया के लिए बैगिंग किया जाये. सरसों अनुसंधान में 245 जर्मप्लाज्म एक्सेसन का रखरखाव किया जा रहा है. इससे संकरण और हाइब्रिड विकास कार्यक्रम को गति मिल रही है. कुलपति डॉ डीआर सिंह ने कहा कि हमारा उद्देश्य तिलहन अनुसंधान में बिहार को आत्मनिर्भर बनाना है. अनुसंधान निदेशक डॉ एके सिंह ने कहा कि हम उच्च-उत्पादकता वाली और जलवायु-अनुकूल तिलहन किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. वैज्ञानिकों ने की सिफारिशें – वैज्ञानिकों को अपने विशिष्ट जर्मप्लाज्म को एनबीपीजीआर नयी दिल्ली में पंजीकृत कराने का निर्देश – अलसी और सरसों की उच्च-तेल और रोग-प्रतिरोधी किस्मों के विकास को प्राथमिकता दी जायेगी – कांटे रहित कुसुम और पीले बीज वाली सरसों पर उन्नत अनुसंधान को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया
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